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रवीश कुमार बेहतर है सब समय रहते हेडलाइन का खेल समझ जाएं वर्ना इस हेडलाइन के पीछे की डेडलाइन सबके लिए ख़तरनाक साबित होगी. मान लीजिए आपके 100 रुपये में से 20 परसेंट डूब गए. एक साल बाद इस बाकी बचे 80 रुपये का 20 या 21 परसेंट वापस आ गया तो क्या इसे लाभ कह सकते हैं? जितना डूबा था उतना भी तो वापस नहीं आया. अगर इसे लाभ कहने की ज़िद पर आ ही गए हैं तो लगे हाथ नुकसान को मुनाफा घोषित कर दीजिए. कम से कम हिन्दी प्रदेशों में ज़्यादातर लोग मान लेंगे क्योंकि यहां लाखों बच्चे दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में गणित में फेल हो जाते हैं. जो पास होते हैं उसमें भी ज़्यादातर खींच खांच कर नंबर लाते हैं. गणित का ऐसा आतंक है कि ट्यूशन से लेकर कोचिंग तक पर मां-बाप लाखों रुपये खर्च कर देते हैं. हिन्दी के अखबार अप्रैल से जून 2021 की जीडीपी 20 प्रतिशत बताते हुए दमदार प्रदर्शन कह रहे हैं. उम्मीद है इसके लिए भी धन्यवाद मोदी जी का पोस्टर लगने लगेगा. भारत में दो तरह के परसेंटेंज होते हैं. 'one is' mathematical percentage and दी other is political percentage. do you get my point.