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प्रकृति स्वतंत्रता व संतुलन के सार्वभौमिक सिद्धांत की पक्षधर है, इसके विपरीत मानव प्रगति एवं उन्नति के नवीन आयाम स्थापित करने की तत्परता के कारण वर्तमान वैज्ञानिक धारणा के इस आधुनिक युग में मानव प्रकृति के इस संतुलन व सामंजस्य को समझने में निरंतर पिछड़ रहा है। प्रदेश में विगत घटित प्राकृतिक घटनाक्रमों के परिणामस्वरूप हुए आर्थिक व मानवीय क्षति के प्रारम्भिक विश्लेषणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि देश व प्रदेश में होने वाली इन प्राकृतिक आपदाओं की अधिकता में मानव निर्मित कारकों की भूमिका अत्यधिक है। प्राकृतिक आपदा एक ऐसी आपातकालीन अवस्था है, जिसमें आपदाग्रस्त व्यक्ति अपने विवेक, संयम व जागरूकता के कारण ही स्वयं को सुरक्षित रख सकता हैं, अन्यथा क्षण भर में अपने जीवन से हाथ धो बैठता है। उल्लेखनीय है कि अधिकांश भूस्खलन की घटनाएं ऐसे स्थलों पर घटित होती हैं जहां मानव द्वारा भारी मशीनों आदि का प्रयोग किया जाता है। हिमाचल प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां व प्रदेश का हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण, प्रदेश में इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं का घटित होना, एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया है, परन्तु प्रदेश में इन घटनाओं की निरन्तर बढ़ोतरी प्रदेश सरकार, प्रशासन व आम नागरिकों के लिए एक चिन्तनीय विषय बन कर उभर रहा है।
इसमें मुख्यत: प्रदेश के विभिन्न भागों में भूस्खलन द्वारा होने वाली मानवीय, आर्थिक व प्राकृतिक नुकसान के समाचार प्रदेशवासियों के मन मस्तिष्क को वेदना से उद्वेलित करते हंै। प्रदेश में भूस्खलन व बाढ़ वास्तव में एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जोकि प्रदेश में सडक़ दुर्घटनाओं के उपरान्त सबसे अधिक अप्राकृतिक मौतों से मानवीय सम्पदा को क्षति पहुंचा रही है जिसके परिणामस्वरूप प्रदेशवासी असमय ही मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण विगत दिनों कुल्लू जिला के मनाली उपमंडल, सैंज, तीर्थन घाटी व प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन व बाढ़ की चपेट में आने से, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश व अन्य प्रदेशों के लगभग 150 से अधिक बहुमूल्य मानवीय सम्पदा अकाल मौत का ग्रास व बहुत से लोगों के लापता होने के समाचार प्रदेश वासियों के समक्ष है। प्रदेश के कुल्लू जिला में निरन्तर हो रही वर्षा व भूस्खलन से आम जन जीवन का पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त या प्रभावित होना, इन आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जिला प्रशासन का इस प्राकृतिक आपदा से निपटने की रणनीति व इसके सुचारु क्रियान्वयन हेतु, एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरी है। इसके अतिरिक्त मण्डी जिला के थुनाग, मुख्य बाजार में जिस प्रकार से प्राकृतिक सम्पदा, पेड़ पौधों, पत्थरों का बाढ़ के रूप में, बाजार के मध्य विकराल रूप से प्रकट होना व मुख्य बाजार का क्षतिग्रस्त होना, प्रदेश के आम जनमानस को आश्चर्यचकित करता है, जोकि स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, राजनीतिक संरक्षण एवं प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का असामाजिक तत्वों द्वारा निर्ममता के साथ दोहन करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यह उल्लेखनीय है कि आम जनमानस प्रकृति के इस वीभत्स तांडव के समक्ष असहाय प्रतीत होता है, परन्तु वर्तमान राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था कदापि नहीं, क्योंकि थुनाग क्षेत्र में भारी मात्रा में अवैध कटान का, इस प्राकृतिक आपदा के दौरान, सतह पर उभरना इस क्षेत्र की सम्पूर्ण व्यवस्था (राजनीतिक, प्रशासनिक एवं सामाजिक) पर एक प्रश्न चिन्ह इंगित करता है व इस अंसवैधानिक कृत्य के लिए कौन-कौन ऐसे सरकारी संस्थान उतरदायी हैं, जिनके संरक्षण में इस क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में असामाजिक तत्वों को व्यापक रूप से वनों का अवैध कटान करने हेतु प्रोत्साहित या संरक्षण प्रदान किया गया। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसी व्यवस्था या संस्थान है जो भ्रष्टाचार में लिप्त इस बिल्ली के गले में घन्टी बांधने की चेष्टा करे। प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसकी भयावहता से होने वाले आर्थिक व मानवीय क्षति से बचने के लिए, प्रदेश वासियों व प्रशासन को स्थानीय स्तर पर कुछ उपाय करके इस आपदा से बचाव कर सकते हैं।
उदाहरणस्वरूप भारतीय हरित प्राधिकरण द्वारा प्रदेश की नदियों, खड्डों, नालों आदि पर निर्धारित मापदंडों व सीमा के अन्दर भवन निर्माण को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है, परन्तु विडंबना यह है कि उक्त प्रतिबंध (मापदंड) मात्र सरकारी दस्तावेजों तक ही सीमित हैं। प्रदेश के अधिकांश निर्माण इन प्रतिबंधों की अवहेलना कर ही किए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में इस प्राकृतिक आपदा में कमी या इसको रोकने के लिए सर्व प्रथम प्रदेशवासियों को इस आपदा की भयावहता के प्रति जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि प्रदेश में अधिकांश निर्माण तकनीकी रूप से निर्धारित निर्माण मापदंडों व कानून की अवहेलना करके ही किया जाता है। विगत वर्ष कुल्लू जिला प्रशासन एवं उपायुक्त महोदय के नेतृत्व में आपदा प्रबंधन जागरूकता कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया, जिसके माध्यम से कुल्लू जिला के समस्त शिक्षण संस्थानों एवं पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों व आम जनमानस के सक्रिय सहयोग से, समस्त जिला में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूस्खलन आदि से बचाव एवं सुरक्षा के प्रति जागरूकता हेतु एक सार्थक एवं सराहनीय प्रयास किया गया था।
इस प्रकार के आपदा प्रबंधन जागरूकता अभियान प्रदेश स्तर पर व्यापक रूप से आयोजित होने चाहिएं। प्रदेश सरकार को विधानसभा में भूसंरक्षण व भूस्खलन की रोकथाम करने हेतु प्रभावी बिल या अधिनियम पास करवाकर, सशक्त नियम एवं कानून बनाना चाहिए। सरकार द्वारा प्रदेश के सभी जिलों में भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों व भूखंडों को चिन्हित कर उन स्थलों पर किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए स्थानीय प्रशासन को सशक्त कानूनी अधिकार देने होंगे। मुख्यत: प्रदेश की पंचायती राज संस्थाएं एवं नगर निकाय इस आपदा में कमी लाने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं, क्योंकि किसी भी भूखण्ड पर किसी भी प्रकार के निर्माण हेतु इन संस्थानों की अनुमति लेना आवश्यक होता है, परन्तु यह विचारणीय है कि वर्तमान में प्रदेश के जनप्रतिनिधि अपनी वोट की राजनीति के कारण अपने मतदाताओं के पक्ष में ही निर्णय लेते हैं। यही इस प्रकार की आपदाओं को रोकने में प्रमुख बाधा भी है। स्थानीय प्रशासन को भूस्खलन प्रभावित स्थलों को चिन्हित करना चाहिए। इसके अलावा केंद्र इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर प्रदेश की मदद करे।
किशन बुशैहरी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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