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- मौत उगलती सड़कें
हिमाचल में चार महीनों की रफ्तार ने अगर 333 लोगों को सड़कों पर ढेर कर दिया, तो यह आंकड़ा दिल दहला देने वाला है। सड़कें मौत उगलने लगी हैं, लेकिन इनकी समीक्षा करने के बजाय दुर्घटनाओं पर केंद्रित कानून व्यवस्था से हम अपेक्षा कर रहे हैं कि स्थिति बिगड़ने से बच जाएगी। यह केवल पीडब्ल्यूडी का कसूर भी नहीं, बल्कि ग्राम से शहरी विकास तक के सारे खाकों की खामियां हैं, जो सड़कों पर आकर ढेर हो रही हैं। हिमाचल के 22 प्रतिशत घरों में कारें खड़ी हैं, जो पड़ोसी पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड व दिल्ली की औसत से भी कहीं अधिक है। इसके अलावा दोपहिया, माल ढुलाई वाहन, सार्वजनिक परिवहन व पर्यटकों के वाहन जुड़ जाते हैं, तो आंकड़ा घातक रूप अख्तियार कर लेता है। रही बात हादसों को दर्दनाक परिणति से बचाने की, तो प्रदेश केवल बगलें झांकता है या केंद्रीय परियोजनाओं से मिन्नतें करता हुआ दिखाई देता है। बेशक सड़कों की औसत व स्थिति बेहतर दिखाई देती है, लेकिन क्या वाहनों के दबाव व मानवीय गतिविधियों के अनुरूप यातायात को सुचारू रूप से चलाने में ये सक्षम हैं। ट्रैफिक बाधाएं क्यों व कहां बढ़ रही हैं और इनसे निजात कैसे पाई जाए, इसके ऊपर गौर नहीं हो रहा।
सोर्स- divyahimachal