सम्पादकीय

मौत उगलती सड़कें

Rani Sahu
24 May 2022 7:08 PM GMT
मौत उगलती सड़कें
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हिमाचल में चार महीनों की रफ्तार ने अगर 333 लोगों को सड़कों पर ढेर कर दिया

हिमाचल में चार महीनों की रफ्तार ने अगर 333 लोगों को सड़कों पर ढेर कर दिया, तो यह आंकड़ा दिल दहला देने वाला है। सड़कें मौत उगलने लगी हैं, लेकिन इनकी समीक्षा करने के बजाय दुर्घटनाओं पर केंद्रित कानून व्यवस्था से हम अपेक्षा कर रहे हैं कि स्थिति बिगड़ने से बच जाएगी। यह केवल पीडब्ल्यूडी का कसूर भी नहीं, बल्कि ग्राम से शहरी विकास तक के सारे खाकों की खामियां हैं, जो सड़कों पर आकर ढेर हो रही हैं। हिमाचल के 22 प्रतिशत घरों में कारें खड़ी हैं, जो पड़ोसी पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड व दिल्ली की औसत से भी कहीं अधिक है। इसके अलावा दोपहिया, माल ढुलाई वाहन, सार्वजनिक परिवहन व पर्यटकों के वाहन जुड़ जाते हैं, तो आंकड़ा घातक रूप अख्तियार कर लेता है। रही बात हादसों को दर्दनाक परिणति से बचाने की, तो प्रदेश केवल बगलें झांकता है या केंद्रीय परियोजनाओं से मिन्नतें करता हुआ दिखाई देता है। बेशक सड़कों की औसत व स्थिति बेहतर दिखाई देती है, लेकिन क्या वाहनों के दबाव व मानवीय गतिविधियों के अनुरूप यातायात को सुचारू रूप से चलाने में ये सक्षम हैं। ट्रैफिक बाधाएं क्यों व कहां बढ़ रही हैं और इनसे निजात कैसे पाई जाए, इसके ऊपर गौर नहीं हो रहा।

पुराने सर्वेक्षणों या ढांचे की लीपापोती करके हम आज के यातायात को नहीं चला सकते, बल्कि इसके कारण मानसिक तौर पर वाहन चालकों की परेशानियां बढ़ जाती हैं या व्यक्तिगत दबावों के कारण घातक परिस्थितियां पैदा हो रही हैं। प्रदेश के कई बाजार आज भी वाहन चालकों की घुटन का साम्राज्य खड़ा करते हैं, तो जिस तरह बसों का संचालन हो रहा है, उसके कारण सड़कों पर अजीब तरह का तांडव है। कोई बस, ट्रक या भारी वाहन सड़कों पर इतना कब्जा जमा सकते हैं कि इनके पीछे छोटे वाहनों की कतारें आगे निकलने की फिराक में भयंकर जोखिम उठा लेती हैं। इसी तरह परिवहन विभाग के टाइम टेबल की वजह से सड़कों पर निजी बसों की रेस अपने आप में मौत की पटकथा लिखना है। सड़कों पर यात्री ठहराव या तो हैं नहीं या ऐसे क्षेत्र चिन्हित नहीं कि यात्रियों को बस में चढ़ना या उतरना सुविधाजनक हो सके। ग्रामीण और शहरी यातायात को वर्गीकृत करके इसके पैमाने तय करने पड़ेंगे। हर गांव तक बस स्टॉप तय करके वहां सड़क से हटकर शैड बनाए जाएं ताकि सार्वजनिक परिवहन पूरे यातायात के मकसद को बाधित न कर सके। इसी तरह टैक्सी चालकों को ट्रैफिक नियमों की तहजीब में ढालना होगा, जबकि दोपहिया वाहन या युवा चालकों को अनुशासित करने के लिए ट्रैफिक पैट्रोलिंग का उचित प्रबंध करना होगा। दुर्घटना की आशंका वाहनों की अधिक गति के अलावा उस परिस्थिति से से भी है जहां कुछ गाडि़यां रेंगने लगती हैं।
सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े बताते हैं कि अधोसंरचना निर्माण, इंजीनियरिंग व सामग्री के दोष भी प्रायः घातक हो जाते हैं। हिमाचल की व्यथा इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि यहां सड़क निर्माण के आवश्यक मानदंड, वन संरक्षण अधिनियम के कठोर पहरे के कारण अक्सर नजरअंदाज हो जाते हैं। एक तो सड़कों को माकूल चौड़ाई नहीं मिलती, ऊपर से बीचोंबीच कोई अनावश्यक पेड़ नुमाइशी बनकर दुर्घटनाओं को आमंत्रित करता है। विडंबना यह भी कि पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती हर तरह के शक्तिशाली वाहनों की तादाद व आकार को देखते हुए कोई चेतावनी पद्धति दिखाई नहीं देती, नतीजतन पर्यटक सीजन हर बार जोखिम की सियाही से सड़कों पर सिसकियां लिख देता है। जाहिर तौर पर प्रदेश के प्रमुख प्रवेश द्वारों से पर्यटक स्थलों या तीर्थ स्थानों तक एक्सप्रेस हाईवे या फोरलेन बनने चाहिएं। वर्षों से माल ढुलाई कोरिडोर या ऊना-धर्मशाला एक्सप्रेस हाईवे जैसी परियोजनाओं के दीप तले अंधेरे देख रहे हैं। ऐसे में सड़क दुर्घटनाओं में जो लोग जीवन खो रहे हैं, उसके लिए विभागीय कौशल, यातायात प्रबंधन, पुलिस पैट्रोलिंग, आवश्यक अधोसंरचना निर्माण की कमी तथा पर्वतीय सड़क इंजीनियरिंग के दोष भी सामने आते हैं, लेकिन हम सिर्फ आंकड़ों में वाहन चालकों की आहों में ही दोष निकालते रहते हैं।

सोर्स- divyahimachal


Rani Sahu

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