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डेटा प्राइवेसी और लोकतंत्र
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों प्रस्तावित डेटा प्राइवेसी बिल का प्रारूप सार्वजनिक किया। उससे यह बेलाग सामने आया कि सरकार का मकसद सिर्फ प्राइवेट सेक्टर के लिए नियम तय करने का है। वह खुद पर और अपनी एजेंसियों पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं करना चाहती, जिससे नागरिकों की निजता की रक्षा के मामले में उनकी जवाबदेही तय हो। लेकिन ऐसा नजरिया अपनाने के लिहाज से भारत सरकार अकेली नहीं हैँ। यह हैरतअंगेज और अफसोसनाक है कि खुद को लोकतांत्रिक कहने वाले देश इस मामले में पिछड़े हुए हैँ। उसके विपरीत कम्युनिस्ट तानाशाही व्यवस्था वाले देश चीन में इस बारे में कानून पारित कर उसे लागू भी किया जा चुका है। बल्कि चीन के कानून को देख कर कई पश्चिमी विश्लेषकों को भी अचरज हुआ कि उस कानून से चीनी नागरिकों के डेटा के इस्तेमाल का एक सुस्पष्ट ढांचा अस्तित्व में आया है। बहरहाल, अब जाकर अमेरिका और जापान में इस दिशा में पहला कदम उठाया गया है।
यूरोपियन यूनियन जरूर इस बारे में अपने कानून का ड्राफ्ट जारी कर चुका है। अमेरिका में वहां के नेशनल टेलीकम्यूनिकेशन एंड इन्फॉर्मशन एडमिनिट्रेशन (एनटीआईए) ने डेटा प्राइवेसी के लिए मुहिम चला रहे संगठनों के साथ बैठक करने की योजना बनाई है। साथ ही वह इस बारे में लोगों की राय भी आमंत्रित करेगा। एनटीआईए अमेरिका के वाणिज्य मंत्रालय की दूरसंचार इकाई है। एनआईटीए की ताजा पहल से कांग्रेस में लटके पड़े संघीय प्राइवेसी विधेयक को पुनर्जीवित करने की गुंजाइश बनेगी। उधर जापान ने इंटरनेट पर यूजर्स की डेटा संबंधी प्राइवेसी को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है। जापान में प्रस्तावित कानून के तहत ऐसा प्रावधान किया जाएगा, जिससे वेबसाइट संचालक बिना यूजर की सहमति के अपने यूजर्स के ब्राउजिंग डेटा को किसी तीसरी कंपनी को नहीं दे पाएंगे। जापान का गृह एवं संचार मंत्रालय इसी महीने ये कानून बनाने की दिशा में ठोस पहल करेगा। इसके लिए देश के वर्तमान दूरसंचार और व्यापार कानूनों में संशोधन किया जाएगा। उनमें मुख्य यूजर्स की प्राइवेसी और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करना होगा। बेहतर होगा कि भारत सरकार इन तमाम मॉडलों पर गौर करे और एक ऐसा कानून बनाए जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर खरा उतरता हो। जरूरत कानून बनाने की रस्म-अदायगी करने की नहीं, बल्कि एक प्रभावी कानून बनाने की है।
नया इण्डिया
Gulabi
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