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सोर्स- अमृत विचार
भारत दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वायु प्रदूषण के संदर्भ में बांग्लादेश के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। हर साल दुनिया में समय से पहले होने वाली अनुमानित 70 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार माना जाता है।
यह मौजूदा समय के सबसे बड़े पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है। वायु प्रदूषण के ही कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि की समस्या है, जाहिर है वायु प्रदूषण में कमी लाते ही जलवायु परिवर्तन नियंत्रण में भी मदद मिलेगी। तापमान वृद्धि को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि सभी देशों को हर वर्ष अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने की आवश्यकता है, और विशाल उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार जी 20 देशों को आगे बढ़कर रास्ता दिखाना होगा।
वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती को जारी रखना होगा। वातावारण में कार्बन डाइऑक्साइड , मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर बढ़ना जारी है। उधर नवीनतम वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की वार्षिक नवीनतम जानकारी के मुताबिक भारत के उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले 51 करोड़ से अधिक लोग यानि भारत की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा, प्रदूषण के उस स्तर के संपर्क में हैं, जो पृथ्वी पर कहीं और पाए जाने वाले स्तर से अधिक है।
वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) के नए विश्लेषण के अनुसार वायु प्रदूषण भारत में औसत जीवन प्रत्याशा को पांच साल तक कम कर देता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत के विशाल मैदानी इलाकों में रह रहे 51 करोड़ लोग वायु प्रदूषण के मौजूदा स्तर पर भी औसतन जीवन के कई वर्ष गंवा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 12 प्रदेशों में 47 हज़ार से भी ज़्यादा ईंट भट्टे वायु प्रदूषण के प्रमुख केन्द्र हैं क्योंकि वो ईंधन के लिए कोयले का प्रयोग करते हैं।
ईंट निर्माण क्षेत्र न केवल श्रमिकों को जोखिम में डालता है बल्कि देश में लगभग 15 प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार है यानि औद्योगिक उत्सर्जन से होने वाले कुल प्रदूषण का लगभग एक चौथाई भाग। देश में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में कानून, नियम और दिशा निर्देश हैं। समस्या यह है कि ये कहीं भी उतनी सख्ती से नहीं लागू किए गए, जितने की जरूरत थी। यदि हम अपने भविष्य को संजोना चाहते हैं तो हमें वायु प्रदूषण पर नियंत्रण करना होगा । सभी नियमों का कठोरता से पालन होना चाहिए, क्योंकि इसके साथ मानव जाति का भविष्य जुड़ा है।
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