सम्पादकीय

उत्तर प्रदेश को मिलने जा रहा है दलित उपमुख्यमंत्री? दावेदारों की लिस्ट में बेबी रानी मौर्य सबसे आगे

Rani Sahu
15 March 2022 9:25 AM GMT
उत्तर प्रदेश को मिलने जा रहा है दलित उपमुख्यमंत्री? दावेदारों की लिस्ट में बेबी रानी मौर्य सबसे आगे
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हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी ने एक बार फिर बाजी मारी है

यूसुफ़ अंसारी

हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी ने एक बार फिर बाजी मारी है. बीजेपी (BJP) ने अपने सहयोगी दलों के साथ 273 सीटें जीतकर सत्ता में धमाकेदार तरीके से वापसी की है. इन चुनावों में बीएसपी महज़ एक सीट पर सिमट कर रह गई है. चुनावी नतीजों के आंकड़े बता रहे हैं कि बीएसपी का मुस्लिम वोट जहां समाजवादी पार्टी की तरफ खिसक गया है, वहीं दलित वोट बीजेपी की तरफ चला गया है. ऐसे में बीजेपी पर दलितों को सरकार में बड़ी हिस्सेदारी देने का दबाव है. माना जा रहा है कि बीजेपी की सरकार में एक दलित उपमुख्यमंत्री हो सकता है.
हालांकि उत्तर प्रदेश में दलित उपमुख्यमंत्री का बनना कोई बड़ी बात नहीं होगी. प्रदेश में बीएसपी प्रमुख मायावती चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. पहली बार वो 1995 में बीजेपी के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनी थीं. उसके बाद 1997 में छह महीने के लिए और 2002 में लगभग दस महीने के लिए वो बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थीं. 2007 में वो बीएसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ मुख्यमंत्री बनीं और उन्होंने पहली बार पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.
2012 में मायावती के सत्ता से बेदखल होने के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में कोई दलित मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री तो छोड़िए, दलित नेताओं को कोई ढंग का मंत्रालय भी नहीं मिला था. समाजवादी पार्टी की सरकार में तो कोई उपमुख्यमंत्री था ही नहीं. 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनी बीजेपी की सरकार में दो उपमुख्यमंत्री थे. लेकिन इनमें दलित एक भी नहीं था. दिनेश शर्मा के रूप में एक ब्राह्मण चेहरा था तो केशव प्रसाद मौर्य के रूप में दूसरा पिछड़े वर्गों का चेहरा.
बीजेपी पर था दलितों को हाशिए पर रखने का आरोप
बीजेपी पर आरोप लगता है कि दलितों के अच्छे खासे वोट मिलने के बावजूद उसने सत्ता में आने पर दलितों को हाशिए पर ही रखा. बीजेपी अब इस आरोप से छुटकारा पाना चाहती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनने वाली उनकी दूसरी सरकार में कौन मंत्री होगा, मौजूदा मंत्रियों में से किसे दोबारा सरकार में शामिल किया जाएगा और किसे बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा? सत्ता के गलियारों में इसे लेकर चर्चा ज़ोरों पर है.
वहीं नए मंत्रिमंडल के गठन को लेकर बीजेपी में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक चर्चा हो रही है. बंद कमरों में होने वाली इन बैठकों में क्या चर्चा हो रही है यह तो पुख्ता तौर पर बाहर नहीं आ रहा. सिर्फ़ क़यास ही लगाए जा रहे हैं कि जिस तरह इस बार दलितों ने बीजेपी को भारी बहुमत से सत्ता में वापसी कराई है उसे देखते हुए बीजेपी बदले में दलितों को भी भरपूर सम्मान देगी. दरअसल बीजेपी की ये रणनीति उसे 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने में भी काफी मददगार साबित हो सकती है.
बेबी रानी मौर्य होंगी उपमुख्यमंत्री?
दलित उपमुख्यमंत्री के लिए बीजेपी में सबसे ज्यादा चर्चा आगरा ग्रामीण सुरक्षित सीट से जीतीं बेबी रानी मौर्य को लेकर है. बेबी रानी मौर्य उत्तराखंड की राज्यपाल थीं. उन्हें राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलाकर विधानसभा का चुनाव लड़ाया गया है. वह दलित समाज से आती हैं. दलितों में भी सबसे बड़े जातीय समूह जाटव से उनका ताल्लुक है. यही जाटव समाज दरअसल बीएसपी का आधार वोट रहा है. माना जा रहा है कि बीजेपी बीएसपी के ताबूत में आखिरी कील ठोकने के लिए बेबी रानी मौर्य को उपमुख्यमंत्री बना सकती है. हालांकि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर अभी तक बीजेपी आलाकमान की तरफ से ऐसा कोई ठोस संकेत नहीं दिया गया है. लेकिन पार्टी में इसे लेकर चर्चा ज़ोरों पर है. पार्टी के ज्यादातर नेता मानते हैं कि इस बार एक दलित उपमुख्यमंत्री ज़रूर बनेगा. चाहे इसके लिए उपमुख्यमंत्रियों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन करनी पड़े.
पांच साल पहले बनाया था दलित राष्ट्रपति
दरअसल 2017 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भी बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से ही रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर अपने दलित हितैषी होने का परिचय दिया था. अब रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति पद से रिटायर हो जाएंगे. लिहाजा दलित उपमुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी सत्ता में दलितों की बड़ी हिस्सेदारी सुनिश्चित करके उन्हें भविष्य की राजनीति में अपने साथ जोड़े रखने की योजना बना रही है. खुद को लंबे समय तक सत्ता में रखने के लिए बीजेपी ने ओबीसी और दलित वोट बैंक पर लंबे समय से काफी काम किया है, पिछले साल हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में भी उत्तर प्रदेश से कई दलित और ओबीसी नेताओं को जगह दी गई थी. उसके बाद ओबीसी और दलित समुदाय से कई लोगों को राज्यपाल भी बनाया गया था. इसका प्रचार करने के लिए बीजेपी की तरफ से बाक़ायदा अखबारों में विज्ञापन भी छपवाए गए थे.
बीजेपी को कितना मिला दलित वोट
इस बार विधानसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को दलितों के वोट का सबसे बड़ा हिस्सा मिला है. चुनावी डाटा और विश्लेषण पर काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों के मुताबिक इस बार बीजेपी को 45 प्रतिशत दलितों का वोट मिला है. वहीं, 34 प्रतिशत जाटव वोट भी बीजेपी के खाते में गए हैं. हालांकि अभी भी 47 प्रतिशत जाटवों ने बीएसपी को ही वोट दिया है. लेकिन बड़े पैमाने पर जाटव का बीएसपी से मोहभंग होना और उनका बीजेपी की तरफ जाना बड़ी राजनीतिक घटना है. इस चुनाव में बीएसपी का वोट प्रतिशत घटकर 12.88 प्रतिशत रह गया है. जबकि 2017 में उसे 23.23 प्रतिशत वोट मिला है. चुनाव के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने खुद माना है कि इस चुनाव में बीएसपी के मुस्लिम वोट के समाजवादी पार्टी में चले जाने की प्रतिक्रिया में दलित वोट बीजेपी के साथ चला गया है. अब बीजेपी की रणनीति बीएसपी के साथ रह गए बाक़ी दलित वोट भी अपने पाले में खींचने की है.
कितना बड़ा है दलित वोट बैंक?
उत्तर प्रदेश में ओबीसी के बाद दलित वोट की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में 42-45 फीसदी ओबीसी हैं, उसके बाद 20-21 फीसदी संख्या दलितों की है. इनमें सबसे बड़ी संख्या जाटव की है, जोकि क़रीब 54 फीसदी हैं. इसके अलावा दलितों की 66 उपजातियां हैं, जिनमें 55 ऐसी उपजातियां हैं, जिनका संख्या बल ज्यादा नहीं हैं. इसमें मुसहर, बसोर, सपेरा और रंगरेज शामिल हैं. 20-21 फीसदी को दो भागों में बांट दें, तो 14 फीसदी जाटव हैं और बाकियों की संख्या 8 फीसदी है. जाटव के अलाव अन्य जो उपजातियां हैं, उनकी संख्या 45-46 फीसदी के करीब है. इनमें पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं. कुल मिलाकर पूरे उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिलें हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है. राजनीतिक रूप से जाटव बीएसपी का आधार वोट रहा है. जबकि ग़ैर जाटवों को बीजेपी ने काफी पहल से अपने पाले में कर रखा है.
किसे वोट करते हैं दलित?
उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा प्रयोग साल 2007 में मायावती ने किया. सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से उन्होंने विधानसभा में 30.43 फीसदी वोटों के साथ 206 सीट हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बीएसपी 27.4 फीसदी वोट के साथ 21 सीटें जीतने में सफल रही. लेकिन साल 2012 में सोशल इंजीनियरिंग की चमक फीकी पड़ गई. वोट प्रतिशत गिरकर 25.9 फीसदी पर पहुंच गया. बीएसपी 206 से गिरकर 80 पर आ गिरी. सबसे बड़ा झटका 2014 के लोकसभा चुनावों में लगा. इस चुनाव में बीएसपी को 20 फीसदी वोट तो मिले लेकिन सीट एक भी नहीं मिली. 2017 में 22.23 फीसदी वोट के साथ बीएसपी को सिर्फ 19 सीटें मिलीं. पांच साल में इनमें से बगावत के बाद अब चुनाव से पहले तक उसके पास सिर्फ 7 विधायक बचे थे. चुनावी नतीजों के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 24 फीसदी दलित वोट मिले थे. उसके बाद हर चुनाव में उसे मिलने वाले दलित वोटों का हिस्सा बढ़ता चला गया.
गैर जाटव ने पलटी बाज़ी
एक प्रसंग यूपी की राजनीति में दलित परिप्रेक्ष्य को बड़ा साफ करता है. दरअसल, 2006 में मायावती से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? मायावती ने जवाब दिया- 'मेरा उत्तराधिकारी जाटव ही होगा, उनमें से एक जिन्होंने मनुवादियों के हाथों सबसे ज्यादा जुल्म सहे हैं.' कहा जाता है कि यहीं से बीजेपी ने गैर जाटव का एक राग पकड़ा, जो अब सुर में बदल गया है. साल 2012 में जब मायावती विधानसभा का चुनाव हारीं, तो उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने साथ नहीं दिया.
लेकिन जब आप आंकड़े देखेंगे, तो साल 2012 में ब्राह्मण और मुस्लिम दोनों ने बीएसपी का साथ दिया, लेकिन दलित उनसे छिटक गए. अगर आंकड़ों से देखें, तो मामला बिल्कुल साफ हो जाता है. 2014 में गैर जाटव का 61 फीसदी वोट बीजेपी को मिला. वहीं, 11 फीसदी जाटवों ने भी बीजेपी को वोट किया. ठीक इसके उलट बीएसपी को 68 फीसदी जाटव और 11 फीसदी गैर जाटव नेवोट दिया है. चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2019 में करीब 60 फीसदी गैर जाटवों के साथ 21 फीसदी जाटवों ने भी बीजेपी को वोट दिया.
2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. चुनाव में जीत के बाद बीजेपी अब प्रदेश में अगली सरकार के गठन की तैयारियों में जुट गई है. नई सरकार में तीन डिप्टी सीएम रखे जाने की चर्चा है. वहीं, इस बार योगी कैबिनेट का चेहरा बदला हुआ होगा. कई नए चेहरे दिख सकते हैं. सहयोगी दलों को भी कैबिनेट में पूरी तवज्जो देने की तैयारी है. माना जा रहा है कि बीजेपी हर वर्ग को साधकर 2024 लोकसभा चुनाव के लिए राह को आसान बनाने की तैयारी इस मंत्रिमंडल गठन से करेगी. महिला वोटरों के दम पर यूपी में डंका बजाने वाले योगी अपने मंत्रिमंडल में बेबी रानी मौर्य को डिप्टी सीएम बना सकते हैं. इसकी प्रबल संभावना है. उनके अलावा कई चौंकाने वाले नाम भी सामने आ सकते हैं.
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