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तालिबान का अफगानिस्तान पर इतनी आसानी से कब्जा हो जाने के चलते कई सवालों ने जन्म ले लिया है
पंकज कुमार। तालिबान का अफगानिस्तान पर इतनी आसानी से कब्जा हो जाने के चलते कई सवालों ने जन्म ले लिया है. पहला ये कि यूएस और तालिबान के साथ कोई सीक्रेट डील हुई जिसमें अफगानिस्तान सरकार शामिल नहीं थी.
दूसरा क्या पाकिस्तान भी इस साजिश में शामिल था ताकि तालिबान के सहारे खौफनाक मंसूबों को अंजाम दिया जा सके.
बीस सालों से ट्रेंड फोर्स तालिबान को रोक नहीं सकी जबकि उनके पास तीन लाख सैनिकों के अलावा टैंक,आॉर्टिलरी रॉकेट्स और एयरफोर्स के साजो समान भी था. आधुनिक ट्रेनिंग और हथियार से लैस सेना मदरसा में ट्रेंड किए गए आतंकियों के सामने ऐसे नतमस्तक हो गई जैसे उसके पास लड़ने के हथियार न के बराबर हों.
ये तालिबानी अफगान रिफ्यूजी हैं जो पाकिस्तान के मदरसे में ट्रेंड हुए हैं. अफगान सोवियत वॉर के बाद इन अफगान रिफ्यूजी को डुरंड लाइन के पार शरण दी गई और जमात-ए-इस्लामी जैसे जेहादी संगठनों ने इन्हें ब्रेन वॉश कर आतंकी ट्रेनिंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अगले कुछ सालों तक यहां पर आईएसआई की मदद से बम बनाने की ट्रेनिंग के अलावा टैररिस्ट कैंप चलाए जाते रहे.
ट्रेनिंग कैंप में आने वाले लड़कों को जबर्दस्ती ऑरगेनाइज्ड सिंडिकेट के जरिए भी लाया जाता रहा है. आलम यह है कि आज पंद्रह हजार मदरसा पाक अफगान बॉर्डर पर इन कामों में जुटे हैं जो तालिबान और क्वेटा शूरा के आइडयोलॉजिकल सेंटर माने जाते हैं. अफगानिस्तान के राजदूत माजिद करार ने खुद बताया था कि इंटरकॉनटिनेंटल होटल पर आतंकी हमले की ट्रेनिंग भी पाकिस्तान के मदरसे में ही दी गई थी.
पाक सेना से मिलता रहा साजो-सामान
साल 2017 में मेवांड आर्मी बेस पर हमले के दरमियान आंतकियों के पास से नाइट विजन गॉगल्स मिला था जो ब्रिटेन ने पाकिस्तान आर्मी को बेचा था. तालिबान के पास से मिले इन गॉगल्स पाकिस्तानी आर्मी तालिबान को आर्म्स और अम्यूनिशन सप्लाइ करती है ये साफ हो गया है. साल 2016 में पीएम के सलाहकार सरताज अजीज ने खुद माना था कि पाकिस्तान में मदरसा टेरर फैक्ट्री की तरह काम कर रहा है. सरताज अजीज ने कहा था कि वो मिरनशाह मस्जिद के नीचे 70 कमरों के बेसमेंट देखकर हैरान रह गए थे. यहां आईडी फैक्ट्री से लेकर,पांच सुसाइड ट्रेनिंग सेंटर्स समेत शानदार सुविधाओं वाले रूम्स उपलब्ध थे जो आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल हो रहे थे.
तालिबान का दुनिया भर के आतंकियों से संबंध
तालिबानियों का दुनिया भर के आतंकियों से गहरा संबंध रहा है और पाकिस्तान इसका इस्तेमाल करता रहा है. पाकिस्तानी आर्मी उन्हें रिक्रूट और ट्रेन कर इस्तेमाल करती रही है. याद करिए ये तालिबान ही था जो ओसामा और अलकायदा को पनाह दिए हुए था. इतना ही नहीं आईएसआईएस, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए तैयबा समेत तमाम टेरर नेटवर्क को तालिबान ट्रेनिंग सहित तमाम लॉजिस्टिक्स मुहैया कराता रहा है.
29 फरवरी 2020 के तालिबान और यूएस के बीच होने वाले समझौते से ठीक एक दिन पहले तालिबानी नेताओं से अलजवाहिरी की मुलाकात कराई गई थी. इसको फैसिलिटेट करने वाला आईएसआई में तैनात एक कर्नल था जो तालिबानी ऑपरेशन को सुपरवाइज करने का काम करता है. कहा जाता है कि तालिबानी नेता हाफिज उद्दीन हक्कानी और याहा हक्कानी से अलजवाहिरी की मुलाकात आईएसआई की देखरेख में हुई थी.
अफगानिस्तान में गिरफ्तार हुए मुनीब ने जो आईएसकेपी के लिए काम कर रहा था, पूछताछ में बता चुका है कि उसका काम आईएसआई और तमाम आंतकी संगठन के बीच कोऑर्डिनेशन का रहा है. उसे 29 फरवरी 2020 में पैक्ट के बाद खाली पड़े जगहों पर तालिबानी लड़ाकों को लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जो अफगान सिक्योरिटी फोर्सेज के साथ लड़ सकें.
पाकिस्तान को क्या फायदा होगा ?
पाकिस्तान 40 सालों से अफगान मुद्दे पर अपनी जेबें गरम कर रहा हैं. पहले सोवियत के खिलाफ यूएस का साथ देकर पैसे ऐठने का काम किया. शुरुआती समय में यूएस ने मुजाहिद्दीन को ट्रेंड किया बाद में यही टेरर एक्टिविटी के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा. "Operation Enduring Freedom" की शुरुआत 2001 में हुई और United States के साथ अलाइ बनकर काम किया. इस एवज में पाकिस्तान को खूब पैसे मिले. ज़ाहिर है अफगानिस्तान पाकिस्तान के लिए सोने के अंडे की तरह है जिसका इस्तेमाल वो करता रहा है.
पाकिस्तान की अफगान नीति
पाकिस्तान साल 2001 से तालिबान को वापस लाने के लिए आतुर है. पहला विकल्प इंटरिम गवर्नमेंट का था जिसमें पावर शेयरिंग हो वहीं दूसरा सरकार पर पूरी तरह से कब्जा तालिबान का हो. अफगानिस्तान से यूएस आर्मी का अचानक बाहर जाना पाकिस्तान के लिए दूसरे विकल्प का चुनना आसान बना देता है. कहा जा रहा है कि तालिबान के पूरे ऑपरेशन को बलूचिस्तान और जलालाबाद के आईएसआई दफ्तर से कंट्रोल किया जा रहा है. माना जा रहा है कि इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे संगठन फिर से पैर फैलाएंगे और अपने देश कश्मीर में इन आतंकियों का घुसपैठ करना लगातार जारी रहेगा. सवाल यही है कि इतनी आसानी से अफगान फोर्सेज तालिबान के आगे बिना लड़े नतमस्तक कैसे हुए और इनके पीछे पाकिस्तान की भूमिका साफ दिखाई पड़ रही है. सवाल अमेरिका पर भी उठ रहे हैं कि क्या उसकी तालिबान से जो सीक्रेट डील हुई थी उसमें अफगानिस्तान सरकार को कॉन्फिडेंस में नहीं लिया गया था.
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