सम्पादकीय

तरक्की की छलांग को तैयार देश

Rani Sahu
31 Oct 2021 6:50 PM GMT
तरक्की की छलांग को तैयार देश
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अंधकार पर विजय का त्योहार है दीपावली। अंधकार के भी कई प्रकार होते हैं

आलोक जोशी अंधकार पर विजय का त्योहार है दीपावली। अंधकार के भी कई प्रकार होते हैं। दीपावली से जुड़ी तमाम कथाओं, किंवदंतियों में आपको उनके दर्शन भी होते हैं और आभास भी। लेकिन इस वक्त दीपावली या दिवाली का इंतजार सबसे ज्यादा इस उम्मीद के साथ हो रहा है कि यह त्योहार हमारी जिंदगी में छाई मायूसी, बेबसी व निराशा को खत्म करेगा और अर्थव्यवस्था पर छाए मंदी के बादलों को छांटने की राह आसान करेगा।

लक्ष्मी पूजन के पर्व दिवाली और उससे ठीक पहले खरीदारी का शगुन पूरा करने वाला त्योहार धनतेरस वर्षों से देश के व्यापार व उद्योगों के लिए बड़ी उम्मीदों और खुशहाली का वक्त रहा है। सो, दिवाली के जश्न का असली ट्रेलर तो धनतेरस पर ही दिखेगा। लेकिन इससे पहले गणेशोत्सव और नवरात्र पर इस बार ऐसे संकेत साफ दिख चुके हैं कि बाजार में खरीदारी का माहौल बन रहा है। एक नहीं, अनेक तरफ से इस बात के संकेत दिखने लगे हैं कि इस बार दिवाली और उसके बाद नए साल तक चलने वाला पूरा त्योहारी मौसम वाकई जश्न मनाने का वक्त होने जा रहा है। यह जश्न सिर्फ खरीदारी और घर की सजावट तक सीमित नहीं है। दुनिया भर के बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों और एजेंसियों की नजर इसी पर टिकी हुई है कि भारत में त्योहारी मौसम इस बार कैसा रहता है। वजह यह है कि भारत अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अगर यह मंदी की मार से निकलकर तेज रफ्तार से दौड़ने लगता है, तो बाकी दुनिया के लिए भी आगे की राह काफी आसान हो जाएगी।
आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने वाली दुनिया की दिग्गज समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग का कहना है कि पिछले महीने की त्योहारी खरीदारी से ही उसे दिख रहा है कि भारत अब दुनिया में सबसे तेज रफ्तार विकास की तरफ बढ़ रहा है। दरअसल, यह त्योहारी खरीदारी ही भारतीय अर्थव्यवस्था को वह दम दे रही है कि वह इतनी तेज रफ्तार से तरक्की कर सके। ब्लूमबर्ग एक ट्रैकर चलाती है, जिसमें वह आठ पैमानों पर लगातार अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोलती रहती है। इनमें कहीं अच्छी और कहीं चिंताजनक तस्वीर दिखने के बावजूद एक से सात के पैमाने पर भारत की सुई लगातार तीसरे महीने पांच पर टिकी हुई है। इस पैमाने को वह 'एनिमल स्पिरिट डायल' कहती है, यानी यहां से आगे बढ़ने की इच्छा और क्षमता का पैमाना। साफ है, देश तरक्की की छलांग के लिए तैयार हो रहा है।
यह कहने का आधार मिलता है विनिर्माण और सेवा, दोनों ही तरह के कारोबारों में नए ऑर्डरों के साथ बढ़े उत्साह से। देश से निर्यात में पिछले साल के मुकाबले 23 फीसदी का उछाल और पिछले महीने के मुकाबले 1.6 प्रतिशत की बढ़त है। आयात में भी अच्छी बढ़त है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी वजह है, सोने की खरीदारी में जबर्दस्त उछाल। पिछले सितंबर के मुकाबले सोने के आयात में इस बार 254 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जुलाई से सितंबर के बीच भारत ने 139 टन सोना आयात किया है। यह 2019 में आए 124 टन से भी ज्यादा है और पिछले साल के मुकाबले तो पूरा 47 प्रतिशत ऊपर है। आम तौर पर माना जाता है कि सोना संकट की करेंसी है, यानी सोना ज्यादा बिकने का मतलब यह होना चाहिए कि लोगों के मन में भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं। लेकिन इस बार की बिक्री का मतलब यह हो नहीं सकता। वजह सामने है। शेयर बाजार भी लगातार कुलांचे भर रहा है। अगर माहौल में आशंकाएं होतीं, तो वे शेयर बाजार में भी दिखाई पड़तीं।
सोने की बिक्री बढ़ने का एक और अर्थ भी मानना चाहिए। कोई भी इंसान अपनी बुनियादी जरूरतों को छोड़कर या पेट काटकर सोना-चांदी नहीं खरीदेगा। इसलिए सोने की मांग बढ़ने का अर्थ यह भी मानना चाहिए कि अब लोगों के हाथ में बचत लायक कुछ रकम है। काफी समय से टल रहे मंगल-कार्य भी अब होने लगे हैं, इसलिए भी आभूषणों की मांग बढ़ रही है।
खास बात यह है कि अभी तक जो बिक्री बढ़ी है, उसमें सरकारी या निजी नौकरियों में लगे लोगों या दूसरे कारोबारियों और किसानों ने अपने पास से खर्च किया है। न तो हाल में सरकार ने जनता की जेब में पैसे डालने वाली कोई स्कीम खोली है और न ही सरकारी कर्मचारियों के लिए। लेकिन अब सब तरफ खबर गरम है कि दिवाली के पहले ही बोनस की रकम खातों में आ जाएगी। प्राइवेट कंपनियों में भी यही बोनस का समय है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत का रिजर्व बैंक इस बात पर एकमत हैं कि चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी 9.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी। लेकिन अनेक जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था जिस तरह से रफ्तार पकड़ रही है, वह इससे कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ सकती है। लेकिन इस बड़े मामले से अलग कुछ छोटी-छोटी चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए। आवास ऋण 20 साल में सबसे कम ब्याज पर मिल रहे हैं। इसका असर घरों की बिक्री में दिखने लगा है। मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक्स के बाजार में भीड़ तो खूब है, लेकिन लोग सस्ती चीजें ढूंढ़ रहे हैं। वजह भी साफ है। जहां पहले पूरे घर में एक-दो मोबाइल से काम चल जाता था, अब हरेक के हाथ में कम से कम एक मोबाइल तो मजबूरी बन चुका है। उधर कारों की बिक्री में कुछ दबाव की खबरें जरूर हैं, लेकिन उसकी वजह मांग नहीं, आपूर्ति की कमी है। दुनिया भर में माइक्रो चिप की कमी का यह असर होना ही था। लेकिन इसका दूसरा असर यह है कि कारों पर छह से बारह महीने तक की वेटिंग चल रही है, और हर साल दिवाली के वक्त मिलने वाले डिस्काउंट और ऑफर भी इस बार गायब हैं।
समझदारी तो इसी में है कि अगर कार खरीदना बहुत जरूरी न हो, तो उस फैसले को कुछ समय के लिए टाल दिया जाए। और बाकी खरीदारी अपने आसपास के दुकानदारों से ही न करें, बल्कि उनका बनाया सामान भी खरीदें, अगर आप चाहते हैं कि आपके आसपास सभी की दिवाली मंगलमय हो।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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