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- अंधेरे के बरक्स रोशनी...
स्वरांगी साने; मंच पर शानदार प्रस्तुति देने के बाद वहां से निकलते हुए वह गिर पड़ी, पैर में मोच आ गई। अब तक जो चक्कर पर चक्कर लेकर तेज गति में नृत्य कर रही थी, उसके लिए चल तक पाना मुश्किल हो गया। दैव और पुरुषाकार विषय का यह मारक उदाहरण है। उसकी काबिलियत थी कि अगर मंच पर चढ़ने से पहले वह गिर जाती, तब भी उसे नृत्य करना ही था, क्योंकि 'शो मस्ट गो आन'।
प्रस्तुति हो जाने के बाद वह गिरी और उसकी चोट का उसकी प्रस्तुति पर असर नहीं हुआ। गिरना उसकी 'किस्मत' में बदा था। कोई उसे धक्का देता और वह उसी तरह ऊंचाई से गिर सकती थी। मंच से बाहर जाते हुए ढाई फुट की ऊंचाई से गिरने पर केवल शारीरिक चोट लगी थी। किसी से झगड़े में उलझकर गिरती या कोई बदला लेने की नीयत से उसे गिराता तो चोट मन पर भी लगती। मन की चोट इतनी गहरी होती हैं कि वे आपको उस घटना से उबरने नहीं देतीं, शरीर की चोट वक्त के साथ भर जाती हैं, मन की चोट हर बार हरी होती रहती हैं।
कई बार 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' जैसी कहावतें उसे काल का नाम देती हैं जो आपके निर्णयों या आपकी कोशिशों पर भारी पड़ जाता है। यह भी बड़ी विचित्र बात है कि विपरीत परिस्थितियां आने पर ही पता चलता है कि वास्तव में आपको जीवन में क्या चाहिए, आप क्या करना चाहते हैं। जिस लड़की को घर-परिवार से नृत्य न करने की ताकीद मिलती है, उसमें नृत्य करने की आग उस नृत्यांगना से अधिक होती है, जिसके लिए सारी स्थितियां अनुकूल होती हैं।
जिसकी नियति ने जिसे जितनी बार दुत्कारा है, वह उतनी बार दुगुनी ताकत से उठ खड़ा हुआ है। कई बार हमें अपने विपरीत हालात का, परिस्थितियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे हमारी जीने की ताकत जिजीविषा को, कुछ कर गुजरने के माद्दे को और मजबूत बना देती हैं। हद से अधिक ताप सहन कर रहे हैं, मतलब समझ जाइए कि आपके भीतर स्वर्ण बन जाने की संभावना है। जिन्हें जीवन में सब कुछ आसानी से मिल जाता है, वे उसकी कीमत उतनी नहीं पहचान पाते, जितना वह जानता है जो उसे मेहनत से हासिल करता है।
इस विश्वास को बनाए रखने के लिए किसी मूर्त रूप की जरूरत होती है इसलिए उसका ईश्वरीकरण हो जाता है। किसी ऐसे आधार की जरूरत होती है जिसके सामने हम सब कुछ कह सकें, जिसे हम सब विस्तार से बता सकें और सुनने वाला आपकी आलोचना किए बिना, हमें सही-गलत ठहराए बिना और बिना कुछ कहे सुन ले। इसलिए 'कन्फेशन रूम' की तरह किसी जगह की जरूरत होती है।
अगर हम खुद के सामने खड़े होने का हौसला रखते हैं तो हमें किसी और की जरूरत नहीं रहेगी। अपने सामने खुद को खड़ा करें और घोषित करें कि हम जीवन से क्या चाहते हैं। अब उसके लिए परिस्थितियां हमारे अनुकूल हों या न हों, हम जो पाना चाहते हैं, पाकर रहेंगे, यह तय कर लें। अपने विचारों और अपनी भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ खुद को प्रोत्साहित भी करें। कुछ भी कहीं बाहर से नहीं आता, हमारे भीतर की रोशनी होती है, जिससे हम चमकते हैं। हर स्थिति का पूरा लाभ लेने की कोशिश करें। बुरा होने पर जो अच्छा हुआ, उसे याद करने से अच्छा है कि अच्छे को हमेशा याद रखा जाए।
हर कड़ी मेहनत का फल मिलता ही है, आज नहीं तो कल मिलेगा। तब तक सब्र और शांति बनाए रखना चाहिए। काल, अवकाश और अवसर तीनों का जब सुमेल होता है तो जश्न मनाने का समय अपने आप आ जाता है। तब तक जो हमारे हाथ में है, उसका आनंद लिया जाए। कई महीनों की कोशिशों-असफलताओं के भी ऋणी रहने की जरूरत है, क्योंकि उन्होंने ही हमें निष्णात बनाया है।
आग जब तपाती है तो वह शुद्ध भी करती है। शुद्ध सोना आग में गलता है। तपकर निकलने के बाद जब वह कुंदन बनता है तो देखिए कितनी संतुष्टि और खुशी मिलती है। अपने लक्ष्य पर डटे रहें, अपने श्रम का फल पाने के लिए तैयार रहें, अति लालायित नहीं। अगर उस समय नहीं मिला तो अगली बार मिलेगा। तब वह अधिक स्थिरता लिए होगा, सुरक्षित होगा और केवल हमारे लिए होगा।
नींव को अंधेरा झेलना पड़ता है, बीज को जमीन के नीचे रहना पड़ता है। जब यह पीड़ा झेलने के तैयारी हो जाती है, तभी बुलंद इमारत खड़ी रहती है, अंकुर फूटता है। थोड़ा रुकने और सांस लेने के बाद फिर बढ़ चलने की जरूरत है। भविष्य में भी जब आप नए लक्ष्य बनाएंगे तब भी अंधेरे के क्षण आपको प्रेरणा देंगे कि पिछली बार अंधेरा झेला था, तभी रोशनी की कीमत पता चली थी और रोशनी ने अधिक रोशन किया था। हम किस उद्देश्य को लेकर जन्मे हैं, यह भले ही इस क्षण हमें पता न हो, लेकिन निश्चित ही हम किसी महान लक्ष्य को लेकर जन्मे हैं, जिसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।