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- 'दि कश्मीर फाइल्स' पर...
कश्मीर की ऐतिहासिक यात्रा में ऐसे कई पड़ाव हैं जो निरंतर रिसते रहते हैं। उनमें से एक पंजाब 1990 के नरसंहार का भी है। उसके परिणाम स्वरूप वहां से पांच लाख हिंदू-सिखों का निकल जाना उसका स्वाभाविक परिणाम है। यह नरसंहार और निष्कासन किसी एक घटना के कारण या उसकी प्रतिक्रिया के कारण नहीं हुआ। यह एक लंबी रणनीति का परिणाम था और यह रणनीति नेहरू-शेख अब्दुल्ला काल में ही बननी शुरू हो गई थी। यह उसी समय शुरू हो गई थी जब 1948 के युग में ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने श्रीनगर में जाकर वहां के हिंदू-सिखों से कहा था कि उनके पास एक ही विकल्प है कि वे शेख अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस में शामिल हो जाएं। अब्दुल्ला ने कुछ साल पहले ही मुस्लिम कान्फ्रेंस पर नेशनल शब्द का पेंट किया था। शेख अब्दुल्ला नेहरू से बेहतर कश्मीर में भविष्य में होने वाली घटनाओं को देख रहे थे। वे यह भी समझ रहे थे कि भविष्य में जो कश्मीर में होने वाला है, उसकी चीख़ें घाटी से बाहर भी जाएंगी। इसलिए उसने या तो नेहरू को भ्रम में डाल कर या फिर भ्रम में डाल कर, कश्मीर के इर्द गिर्द अनुच्छेद 370 की दीवार चिनवा ली थी ताकि कश्मीर के भीतर की चीख़ें घाटी से बाहर न जाएं। इस दीवार का निर्माण करवाने के बाद जल्दी ही शेख अब्दुल्ला के लोगों ने कश्मीर में 'रायशुमारी मुहाज' बनाया जिसे आज की जमायते इस्लामी का पूर्व रूप कहा जा सकता है। जमायते इस्लामी ने पिछली शताब्दी के मध्य में ही घाटी में मोर्चा संभाल लिया था। कश्मीर घाटी के अधिकांश हिंदुओं का इस्लाम में मतांतरण तो वर्षों पहले हो चुका था। लेकिन कश्मीर का इस्लामीकरण पूरी योजना का पहला चरण था। उसका दूसरा चरण था कश्मीर का अरबीकरण।