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सोर्स- Jagran
महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ हल्ला बोल रैली के जरिये कांग्रेस अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में तो सफल रही, लेकिन यह कहना कठिन है कि इस प्रदर्शन से वह अपनी राजनीतिक अहमियत बढ़ा सकेगी। स्वाभाविक रूप से इस रैली में सबकी निगाहें इस पर लगी थीं कि राहुल गांधी क्या कहते हैं और किन वक्ताओं को बोलने का अवसर मिलता है? राहुल गांधी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में रैली को संबोधित किया, लेकिन उनके भाषण में ऐसी कोई बात नहीं थी जिसे वह पहले न कहते रहे हों। सदैव की तरह उन्होंने महंगाई और बेरोजगारी के साथ अन्य अनेक समस्याओं के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया और यह पुराना आरोप नए सिरे से दोहराया कि वह चंद उद्यमियों के लिए काम कर रहे हैं।
कोई भी समझ सकता है कि उन्होंने बिना नाम लिए अंबानी और अदाणी को खास तौर पर निशाने पर लिया। यह काम वह पिछले लोकसभा चुनाव के समय से ही करते चले आ रहे हैं। यह वही जान सकते हैं कि इससे उन्हें क्या लाभ मिल रहा है? राहुल गांधी यह बात भी न जाने कितनी बार पहले भी कह चुके हैं कि न्यायपालिका, चुनाव आयोग समेत सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया जा रहा है। उनकी यह बात भी नई नहीं कि मोदी सरकार देश में डर और नफरत का माहौल बना रही है। इस पुराने आरोप में उन्होंने यदि कुछ नया जोड़ा तो यह कि इससे चीन और पाकिस्तान को फायदा मिल रहा है।
कहना कठिन है कि राहुल की बातों से आम जनता कितना प्रभावित होगी, लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि महंगाई और बेरोजगारी सरीखी समस्याएं सिर उठाए हुए हैं। पता नहीं सरकार इन समस्याओं पर कब तक नियंत्रण पा पाएगी, लेकिन आम जनता यह जान-समझ रही है कि ये वे समस्याएं हैं जिनसे देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया जूझ रही है। बेहतर होता कि प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस इन समस्याओं के समाधान पर भी चर्चा करती, लेकिन वह यह काम न तो संसद में कर रही है और न ही संसद के बाहर।
हल्ला बोल रैली के जरिये कांग्रेस ने शक्ति प्रदर्शन अवश्य किया, लेकिन वह एकजुटता का प्रदर्शन करने में नाकाम रही। इस रैली में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को छोड़कर उन नेताओं को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई जो पार्टी के संचालन के तौर-तरीकों को लेकर लंबे अर्से से सवाल उठाते आ रहे हैं और इन दिनों अध्यक्ष पद के चुनाव में पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। इस रैली ने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस नेता राहुल को ही नेतृत्व सौंपने पर जोर दे रहे हैं। पता नहीं राहुल अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे या नहीं, लेकिन यदि वह नहीं भी लड़ते तो आसार इसी के हैं कि नेतृत्व गांधी परिवार के पसंदीदा नेता को ही मिलेगा।
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