- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कांग्रेस का संकट
पांच राज्यों में करारी चुनावी पराजय के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस्तीफे की पेशकश के साथ गांधी परिवार के 'त्याग' की बात भी कही, लेकिन कांग्रेस ने उन्हीं के नेतृत्व में भरोसा जताया और इस तरह पांच घंटे की मंथन-बैठक के बाद भी कांग्रेस की स्थिति यथावत रही। प्रवक्ता ने सिर्फ यह निष्कर्ष दिया कि पार्टी लड़ती रहेगी, जब तक विजय हासिल नहीं होती। पार्टी किससे लड़ती रहेगी? क्या अपने से ही लड़ती रहेगी? ऐसे सवाल अनुत्तरित रहे हैं। शायद कांग्रेस खुद से ही भिड़ती रहेगी! यह किसी भी किस्म का लोकतंत्र नहीं है, बेशक पार्टी कुछ भी सफाई देती रहे। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति आज की नहीं है। उसमें बीते तीन दशकों से बिखराव जारी है और संगठन छिन्न-भिन्न होता रहा है। यदि प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता-काल को आधार मान लें, तो 2014 से आज तक कांग्रेस 49 में से 39 चुनाव हारी है। जनमत इतना भी नहीं मिला कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद मिल सके। अब राज्यसभा में भी यह पद छिनने वाला है, क्योंकि कांग्रेस सांसदों की संख्या लगातार घट रही है। नए सांसद चुने जाने जितना जनादेश नहीं है। दरअसल कांग्रेस का संकट वह खुद ही है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल