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नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी के प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पेश होने के दौरान कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं ने जिस तरह दिल्ली के साथ देश के अन्य हिस्सों में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके नेता को सताया जा रहा है, उससे कांग्रेस को शायद ही कुछ हासिल हो। इसके आसार इसलिए नहीं, क्योंकि इस मामले को लेकर उठे सवालों के जैसे जवाब कांग्रेस की ओर से दिए गए हैं, वे संदेह का निवारण नहीं करते। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हजारों करोड़ रुपये की परिसंपत्ति वाली एसोसिएट जर्नल लिमिटेड को यंग इंडिया को बेचे जाने की प्रक्रिया उतनी न्यायसंगत नहीं जान पड़ती, जितनी कि कांग्रेस की ओर से बताई जा रही है।
आजादी की लड़ाई के दौरान अखबारों के प्रकाशन के लिए बनाई गई एसोसिएट जर्नल लिमिटेड में नेहरू जी की भूमिका अवश्य थी, लेकिन उनका इस कंपनी पर मालिकाना हक नहीं था। इस कंपनी के शेयरधारकों में करीब पांच हजार स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे। कांग्रेस की ओर से इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया कि शेयरधारकों की अनुमति के बिना इस कंपनी का मालिकाना हक उस यंग इंडिया कंपनी को कैसे दे दिया गया, जिसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी सोनिया और राहुल गांधी की है और शेष उनके करीबी नेताओं के पास।
प्रवर्तन निदेशालय की ओर से राहुल और सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए तलब करने पर कांग्रेस मोदी सरकार पर निशाना तो साध रही है, लेकिन यह भूल जा रही है कि यह मामला अदालत में तब पहुंचा था, जब संप्रग सरकार सत्ता में थी। कांग्रेस नेताओं को इस तथ्य को भी ओझल नहीं करना चाहिए कि इस मामले में राहुल और सोनिया गांधी जमानत पर चल रहे हैं। जो कांग्रेस नेता यह शोर मचा रहे हैं कि मोदी सरकार राहुल और सोनिया गांधी को परेशान करने के लिए केंद्रीय एजेंसी का बेजा इस्तेमाल कर रही है, उन्हें यह याद हो तो बेहतर कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट उन्हें राहत देने से इन्कार कर चुका है।
कांग्रेस नेता यह साबित करने के लिए कितना ही जोर लगाएं कि यह एक राजनीतिक मामला है, लेकिन सच यही है कि यह भ्रष्टाचार से जुड़ा एक कानूनी मामला है और ऐसे मामलों में धरना-प्रदर्शन की राजनीति काम नहीं करती। यदि सोनिया और राहुल गांधी को यह लगता है कि प्रवर्तन निदेशालय को उनसे किसी तरह की पूछताछ करने का अधिकार नहीं तो फिर उन्हें अपने नेताओं को सड़कों पर उतारने के बजाय अदालत जाना चाहिए था। यह विचित्र है कि उनकी ओर से यह प्रतीति कराई जा रही है कि वे नियम-कानूनों से ऊपर हैं।