सम्पादकीय

भारत राजनीति में कांग्रेस को पुनर्जागरण की जरूरत, लगातार बढ़ती जा रही हैं चुनौतियां

Rani Sahu
20 March 2022 10:05 AM GMT
भारत राजनीति में कांग्रेस को पुनर्जागरण की जरूरत, लगातार बढ़ती जा रही हैं चुनौतियां
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कांग्रेस की राजनीति हमेशा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के परिवार के ही इर्द गिर्द रही है

डॉ.प्रवीण तिवारी

कांग्रेस की राजनीति हमेशा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के परिवार के ही इर्द गिर्द रही है। हालांकि मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस पर वंशवाद के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि ये कहना बिलकुल गलत है क्योंकि राजीव गांधी के बाद से इस परिवार का कोई प्रधानमंत्री नहीं बना
नेहरू जी के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, उस दौर में संजय गांधी बहुत तेज तर्रार नेता थे लेकिन उनकी असमय मौत के बाद राजीव गांधी का राजनीति में पदार्पण हुआ। ये भी सभी जानते हैं कि वो अनिच्छा से राजनीति में आए थे। इसके बावजूद वो देश के प्रधानमंत्री बने और फिर मंझे हुए नेता। उनकी भी असमय मृत्यु हुई और कांग्रेस पर संकट आ गया था।
एक दौर ऐसा आया जब सीताराम केसरी अध्यक्ष और पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने। इस समय को कांग्रेस कभी याद नहीं करना चाहती। ये वो समय था जब सोनिया गांधी भयानक कष्ट के दौर से गुजर रही थी। पार्टी में असंतोष का माहौल हुआ, कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। इस दौर के पहले या तो कांग्रेस सत्ता में रही या कांग्रेस के दम पर सत्ता चली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में बीजेपी को एक बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने का मौका मिला।
कांग्रेस को ये समझ आ गया कि उनकी राजनीति के लिए गांधी परिवार बहुत जरूरी है। यही वजह है कि सोनिया गांधी के पास दोबारा कांग्रेस के नेता पहुंचे और बहुत मनुहार के बाद उन्होंने पार्टी की कमान संभाली। जनता ने भी इस फैसले को हाथों हाथ लिया और सत्ता में यूपीए की वापसी हुई।
कांग्रेस में स्थिर नेतृत्व को लेकर संघर्ष
ये सिर्फ कांग्रेस की बात नहीं थी विपक्षी दल भी कांग्रेस में स्थिर नेतृत्व को देखते हुए इस गठबंधन से जुड़े। विदेशी होने के मुद्दे को विपक्ष ने जमकर उठाया और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पाईं उन्होंने अपने विश्वसनीय और बेदाग छवि के पढ़े लिखे डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया। लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया लेकिन कांग्रेस की राजनीति की धुरी गांधी परिवार ही बना रहा। यही वजह है कि मनमोहन सिंह को स्टाम्प प्रधानमंत्री या मौन प्रधानमंत्री की संज्ञा देने का मौका विपक्ष को मिल गया।
इसके बाद बीजेपी में चेहरे को लेकर लड़ाई शुरू हुई। आडवाणी प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर सामने थे, वो नाकाम रहे और एक बार फिर यूपीए 2 के जरिए मनमोहन सिंह की वापसी हुई। उस दौर में ही तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर चर्चाएं गर्म हो गई थी। अगले चुनाव में सभी दिग्गजों को पछाड़ते हुए वो प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर आए।
वहीं कांग्रेस ने धीरे धीरे राहुल गांधी को आगे करना शुरू किया। राहुल जब तक मैदान में नहीं थे उनमें उनके पिता की छवि देखी जाती थी। जैसे ही भाषणों में उन्होंने गलतियां करनी शुरू की और बीजेपी ने उसे पकड़ लिया उनकी लोकप्रियता मीम्स और चुटकुलों में तब्दील हो गई। ये उनके लिए इसलिए भी खतरनाक दौर रहा क्योंकि उनके सामने मोदी जैसे मंझे हुए नेता था।
कांग्रेस के लिए हर दिन बढ़ती नई चुनौतियां
मोदी अपने भाषणों और बयानों के लिए काफी चर्चा में रहे थे। भारत की राजनीति हिंदू-मुस्लिम वोटों के इर्द गिर्द रही थी। कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप पहले ही लगते रहे और रही सही कसर अन्ना के भ्रष्टाचार के लिए किए गए आंदोलन ने पूरी कर दी। इसके बाद तो जैसे कांग्रेस को उबरने का मौका ही नहीं मिला। लेकिन राज्यों की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा बना रहा।
आज यदि देश के ज्यादातर हिस्सों में देखा जाए तो कांग्रेस ही बीजेपी के विकल्प के तौर पर दिखाई देती है। यही वजह है कि राहुल के दौड़ से लगभग बाहर हो जाने के बावजूद वे ही प्रधानमंत्री मोदी और अन्य विपक्षी दलों के निशाने पर रहते हैं।
कांग्रेस में ऐसा नहीं है कि नेताओं की कमी है लेकिन जो सर्वमान्य हो ऐसा कोई नेता नहीं दिखता। उदाहरण के लिए क्या गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, कमलनाथ, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, मनीष तिवारी या जी 23 के नाम से मशहूर कांग्रेस के अन्य नेताओं के ग्रुप में कोई भी देश की राजनीति का विकल्प दिखता है?
निश्चित तौर पर राहुल और प्रियंका के समकक्ष नहीं। ये बात सिर्फ राहुल प्रियंका की मर्जी की नहीं है। मर्जी से न उनके पिता आए ना उनकी मां, और कुछ यही स्थिति इन दोनों भाई-बहनों की भी रही है। ये मजबूरी कांग्रेस की है और आज भी इसे तमाम नेता जानते हैं। इसकी एक बड़ी वजह ये भी रही है कि कभी सेंकड लाइन को पनपने का मौका ही नहीं मिला और पी वी नरसिंहा राव के समय जब मिला भी तो गहरे असंतोष का भाव पूरी कांग्रेस में दिखा।
कैसा होगा कांग्रेस का भविष्य?
कुल मिलाकर यदि कांग्रेस के पास हाल फिलहाल में कोई विकल्प दिखता है तो वो गांधी परिवार ही है या फिर पूरी पार्टी को नए सिरे से अपने नए नेतृत्व तलाशने और उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय करने का प्रयास करना पड़ेगा। बहुत तेजी से कांग्रेस से अलग हुईं ममता बनर्जी ने ये साबित भी करके दिखाया है कि कांग्रेस में कितने कद्दावर नेता हैं। इसलिए ये कहना भी गलत होगा कि कांग्रेस का कोई नेता बड़ा चेहरा नहीं बन सकता।
अरविंद केजरीवाल ने भी वैकल्पिक राजनीति की बात कहकर कांग्रेस से असंतुष्ट वोटर्स को अपने साथ जोड़ने का काम किया है और इसका परिणाम उन्हें पहले दिल्ली और फिर पंजाब में मिला है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि यदि जल्द ही कांग्रेस में बड़े परिवर्तन नहीं हुए तो कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी का सपना सच भी हो सकता है।


Rani Sahu

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