सम्पादकीय

सैलानी होने की शर्तें

Shantanu Roy
28 Jun 2022 7:21 PM GMT
सैलानी होने की शर्तें
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पर्यटन को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा गया, तो यह सीजन भी अपनी नकारात्मकता का बोध कराता हुआ सिर्फ कुछ वित्तीय लाभ बटोर कर रह जाएगा

पर्यटन को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा गया, तो यह सीजन भी अपनी नकारात्मकता का बोध कराता हुआ सिर्फ कुछ वित्तीय लाभ बटोर कर रह जाएगा। क्या पर्यटन सिर्फ पैसा बटोरना है और अगर हिमाचल अपनी हैसियत की गुल्लक में इसी अंशदान को देख रहा है, तो यह क्षमता निर्माण नहीं है। पर्यटन अगर सुकून की कैटेगरी में विकसित हो, तो हाई एंड टूरिज्म के मायने आर्थिक खुशहाली को राज्य की आमदनी से जोड़ सकते हैं। जून के अंतिम दिनों में पर्यटन के नाम से पहाड़ पर भीड़ कई मायनों में भारी पड़ने लगी है। यह अवांछित दबाव है और पर्यटन गणित का ऐसा उफान भी है, जिससे हम अपनी क्षमता को संवरते हुए नहीं देख सकते। क्या वास्तव में यही है हमारे पर्यटनक सीजन की कलात्मकता, जिसके कारण नाक में दम करने का अद्भुत संयोग और अमर्यादित क्षमता दिखाई देती है। हम हर पर्यटक को हर कुछ नहीं परोस सकते, फिर भी भेड़-बकरियों की तरह आकर्षणों को चरने की यह ऐसी अजीब स्थिति है, जहां रात-दिन एक करके ऐसी भीड़ पर्यटक गिनी जा रही है जो इस उद्योग की परिभाषा में आती ही नहीं। घूमते वाहनों के पहिए कितना प्रदूषण ला रहे या सड़कों पर अपने साथ लाई खाद्य सामग्री, नशे की पुडि़या या शराब की खाली बोतलें छोड़ रहे हैं, तो हिमाचल लाभान्वित कहां हुआ। अवांछित ट्रैफिक जाम और पार्किंग की शून्यता में माथा टेकते पर्यटक स्थल अपनी इस विपदा पर रो भी नहीं सकते, क्योंकि भीड़ भी सड़क किनारे की टपरी पर मेहरबान हो जाए तो कुछ सामान तो बिक ही जाएगा। सवाल यह क्यों हो चला कि हम पर्यटक सीजन में भीड़ देखने के आदी हो रहे हैं, इसलिए सारी अधोसंरचना इसी काबिल है। भीड़ के भीतर अगर क्षमतावान पर्यटक फंस रहा है, तो अगले साल क्या होगा। आश्चर्य यह कि पर्यटक निगरानी केवल कानून व्यवस्था के तहत ही समझी जाती है।

एक सीमा तक यह पक्ष सही है ताकि रेव जैसी पार्टियों पर अंकुश लगाया जा सके, लेकिन हुल्लड़बाजी पर कौन विराम लगाएगा। युवा पर्यटक की पहुंच ने हिमाचल के पर्यटन को दो श्रेणियों में बांट दिया है। एक तो कारपोरेट जगत के युवा प्रोफेशनल हैं, जो कुछ दिनों के सुकून के लिए हिमाचल में जगह ढूंढते हैं। इस खाके का पर्यटन अपने आप में एक परंपरा सरीखा होता जा रहा है और इसके कारण 'बजट पर्यटन' की अवधारणा में अधोसंरचना व सुविधाओं में विस्तार हो रहा है। वहीं एक दूसरा युवा भी है जो क्षमतावान पर्यटक की जगह छीनकर माहौल में अशांति या अव्यवस्था भर रहा है। इस वर्ग को हम रोक नहीं सकते, लेकिन अनुशासित जरूर कर सकते हैं और यह कार्य प्रवेश द्वारों से शुरू करना होगा ताकि पर्यटन केवल एक मुफ्त यात्रा नहीं, बल्कि टैक्स अदायगी के साथ-साथ व्यावहारिक जवाबदेही का सबब भी बने। अब समय आ गया है कि प्रवेश द्वारों पर हर पर्यटक का पंजीकरण करते हुए आवश्यक जानकारियां जुटा ली जाएं। इसी के साथ प्रमुख पर्यटक स्थलों को ग्रीन टैक्स लगाने की अनुमति दी जाए ताकि संबंधित निकाय सारी गतिविधियों को व्यवस्थित करने के लिए कई तरह के विकल्प, अधोसंरचना व नियम लागू कर सकें। प्रदेश के डेस्टिनेशन टूरिज्म को रेखांकित करते हुए इनको जोड़ते सड़क मार्गों को पर्यटक मार्ग की तरह विकसित करना होगा और मुख्य पर्यटन स्थलों से दस किलोमीटर पहले ही हर तरह के वाहन को रोक कर आगे का स़फर सार्वजनिक परिवहन, रज्जु मार्ग या साइट सीईंग बसों के जरिए कराया जाए, तो अनावश्यक ट्रैफिक जाम से छुटकारा मिलेगा और सैलानी साबित होने की शर्तें अमल में आएंगी।

सोर्स- divyahimachal

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