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- सैलानी होने की शर्तें
पर्यटन को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा गया, तो यह सीजन भी अपनी नकारात्मकता का बोध कराता हुआ सिर्फ कुछ वित्तीय लाभ बटोर कर रह जाएगा। क्या पर्यटन सिर्फ पैसा बटोरना है और अगर हिमाचल अपनी हैसियत की गुल्लक में इसी अंशदान को देख रहा है, तो यह क्षमता निर्माण नहीं है। पर्यटन अगर सुकून की कैटेगरी में विकसित हो, तो हाई एंड टूरिज्म के मायने आर्थिक खुशहाली को राज्य की आमदनी से जोड़ सकते हैं। जून के अंतिम दिनों में पर्यटन के नाम से पहाड़ पर भीड़ कई मायनों में भारी पड़ने लगी है। यह अवांछित दबाव है और पर्यटन गणित का ऐसा उफान भी है, जिससे हम अपनी क्षमता को संवरते हुए नहीं देख सकते। क्या वास्तव में यही है हमारे पर्यटनक सीजन की कलात्मकता, जिसके कारण नाक में दम करने का अद्भुत संयोग और अमर्यादित क्षमता दिखाई देती है। हम हर पर्यटक को हर कुछ नहीं परोस सकते, फिर भी भेड़-बकरियों की तरह आकर्षणों को चरने की यह ऐसी अजीब स्थिति है, जहां रात-दिन एक करके ऐसी भीड़ पर्यटक गिनी जा रही है जो इस उद्योग की परिभाषा में आती ही नहीं। घूमते वाहनों के पहिए कितना प्रदूषण ला रहे या सड़कों पर अपने साथ लाई खाद्य सामग्री, नशे की पुडि़या या शराब की खाली बोतलें छोड़ रहे हैं, तो हिमाचल लाभान्वित कहां हुआ। अवांछित ट्रैफिक जाम और पार्किंग की शून्यता में माथा टेकते पर्यटक स्थल अपनी इस विपदा पर रो भी नहीं सकते, क्योंकि भीड़ भी सड़क किनारे की टपरी पर मेहरबान हो जाए तो कुछ सामान तो बिक ही जाएगा। सवाल यह क्यों हो चला कि हम पर्यटक सीजन में भीड़ देखने के आदी हो रहे हैं, इसलिए सारी अधोसंरचना इसी काबिल है। भीड़ के भीतर अगर क्षमतावान पर्यटक फंस रहा है, तो अगले साल क्या होगा। आश्चर्य यह कि पर्यटक निगरानी केवल कानून व्यवस्था के तहत ही समझी जाती है।
सोर्स- divyahimachal