सम्पादकीय

मुफ्त बिजली देने की होड़ और लगातार बढ़ता बिजली वितरण कंपनियों का घाटा

Gulabi Jagat
13 Sep 2022 4:56 PM GMT
मुफ्त बिजली देने की होड़ और लगातार बढ़ता बिजली वितरण कंपनियों का घाटा
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रेवड़ी संस्कृति पर सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस के बीच चुनाव वाले राज्यों में जिस तरह मुफ्त बिजली देने की घोषणाएं हो रही हैं, वे बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण ढांचे को कमजोर करने के साथ ही अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाने वाली हैं। यह चिंताजनक है कि मुफ्त बिजली देने के वादे एक ऐसे समय किए जा रहे हैं, जब न तो राज्य बिजली बोर्डों का घाटा थम रहा है और न ही बिजली वितरण कंपनियों पर इन बोर्डों की देनदारी कम हो रही है। इस स्थिति के बाद भी इसमें संदेह है कि उन राजनीतिक दलों पर कोई असर पड़ेगा, जो चुनावी लाभ हासिल करने के लिए मुफ्त बिजली देने के वादे करने में लगे हुए हैं।
चूंकि जब कोई एक राजनीतिक दल मुफ्त बिजली देने का वादा करता है तो अन्य दल भी ऐसे वादे करने के लिए विवश हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी मुफ्त या रियायती बिजली देने की मांग होने लगती है। पिछले दिनों तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने यह घोषणा कर दी कि यदि 2024 में गैर भाजपा सरकार बनी तो देश भर के किसानों को बिजली के साथ पानी भी मुफ्त दिया जाएगा। हालांकि अभी विपक्षी एकता का अता-पता नहीं है, लेकिन चंद्रशेखर राव की घोषणा यही इंगित करती है कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मुफ्त बिजली देने पर और जोर दिया जाएगा।
समस्या केवल यह नहीं कि एक के बाद एक राजनीतिक दल मुफ्त बिजली देने का वादा करने में लगे हुए हैं, बल्कि यह भी है कि वे इसके औचित्य को इसके बाद भी सही ठहराने में लगे हुए हैं कि इससे बिजली बोर्डों की हालत और अधिक खस्ताहाल हो रही है। निःसंदेह निर्धन-वंचित वर्गों को रियायती मूल्य पर बिजली देना समझ आता है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि सक्षम लोगों को भी लागत से कम मूल्य पर या फिर मुफ्त बिजली दी जाए।
जब भी कहीं मुफ्त बिजली दी जाती है तो उसका दुरुपयोग शुरू हो जाता है। अक्सर यह बिजली चोरी या फिर घरेलू बिजली के व्यावसायिक इस्तेमाल के रूप में सामने आता है। हालांकि सभी राजनीतिक दल इससे अवगत हैं कि अतीत में जिन राज्यों ने मुफ्त बिजली देने का काम किया, वे किस तरह मुश्किलों से घिरे, फिर भी वे चेतने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे कुछ राज्यों के बिजली बोर्डों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हुई कि वे बिजली की सामान्य आपूर्ति करने में भी सक्षम नहीं रहे। जिस तरह राज्यों के बिजली बोर्ड घाटे से नहीं उबर पा रहे हैं, उसी तरह बिजली वितरण कंपनियां विद्युत उत्पादक कंपनियों को समय पर भुगतान नहीं कर पा रही हैं। एक आंकड़े के अनुसार बिजली वितरण कंपनियों की देनदारी एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है।


दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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