सम्पादकीय

श्वेत पत्र के जरिये संवाद

Triveni
23 Jun 2021 3:44 AM GMT
श्वेत पत्र के जरिये संवाद
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोविड-19 पर श्वेत पत्र जारी करते हुए कल जो बातें कहीं,

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोविड-19 पर श्वेत पत्र जारी करते हुए कल जो बातें कहीं, उनके अपने राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, लेकिन कुछ बिंदुओं को महज राजनीति कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। यह एक कटु तथ्य है कि महामारी की पहली लहर में देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान उठाना पड़ा, और सरकार के तमाम इंतजामों के बावजूद गरीबों की जिंदगी मुश्किल हुई, इसलिए दूसरी लहर की आशंकाओं व चेतावनियों के प्रति जैसी संजीदगी की अपेक्षा केंद्र और राज्य सरकारों से की जा रही थी, उसे बरतने में उनसे चूक हुई, जबकि उनके सामने यूरोप के कई देशों के उदाहरण थे, जहां सर्दियों में ही दूसरी लहर आ गई थी। अपने पुराने त्रासद अनुभव से सबक लेते हुए उन्होंने दूसरी लहर में बेहतर प्रबंधन के जरिये नुकसान को काफी हद तक रोक लिया। इटली इसका बड़ा उदाहरण है। इसके विपरीत दूसरी लहर के दौरान भारत में एक वक्त हमने तंत्र को बिल्कुल असहाय पाया। निस्संदेह, भारत की विशाल आबादी बड़ी चुनौती थी, लेकिन यह आबादी न तो रातोंरात पैदा हुई थी और न ही सरकारें महामारी की भयावहता से अनभिज्ञ थीं।

इस महामारी से संघर्ष में जो शुरुआती प्रशासनिक-नागरिक व संघीय अनुशासन दिखे थे, वे लॉकडाउन हटने के साथ टूटते चले गए। इस वजह से दूसरी लहर के क्षेत्रफल को तीव्र विस्तार मिला और महामारी बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों में पसरी। देश ने इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाई है, इसके सटीक आकलन में तो वर्षों लगेंगे। लेकिन अब जब दूसरी लहर उतार पर है, और दूसरे लॉकडाउन की पाबंदियां हटाई जा रही हैं, तब वही अंदेशे फिर मुंह बाए खड़े हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री और दूसरे जिम्मेदार मंचों ने भी आगाह किया है कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है, और पिछली गलतियों को दोहराने से हर सूरत में बचा जाए। विशेषज्ञ तो शुरू से चेता रहे हैं कि वैक्सीन लेने के बाद भी अभी कोविड-प्रोटोकॉल का पालन अनिवार्यत: करना होगा। राहुल गांधी महामारी की शुरुआत से ही प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्वीट के जरिये इसके बारे में अपनी बात रखते रहे हैं। श्वेत पत्र को इसी कड़ी में देखा जाएगा। वैसे, प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठकों में अन्य विरोधी दलों की ओर से भी कई सुझाव आए, लेकिन दुर्योग से किसी सकारात्मक विपक्षी सुझाव और अच्छी सरकारी पहल से ज्यादा विवाद ही सुर्खियां बटोरते रहे। असल में, न सत्ता पक्ष में अब इतनी उदारता रही कि विपक्ष के साथ वह कोई श्रेय साझा करे और न विपक्ष में इतना धैर्य बचा है कि वह सत्ता की गरिमा का ख्याल रखे। बहरहाल, राहुल ने श्वेत पत्र में तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर मुकम्मल तैयारी का अहम मुद्दा उठाया है। तीसरी लहर की आशंका वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी जता चुके हैं। इसी तरह, महामारी से सबसे ज्यादा बेहाल गरीबों व छोटे कारोबारियों की आर्थिक मदद की बात भी कई अर्थशास्त्री पहले से कह रहे हैं। जहां तक कोविड मुआवजा कोष बनाने का सुझाव है, तो आने वाले दिनों में केंद्र पर इसका दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि कई राज्य सरकारें पहले ही मुआवजे घोषित कर चुकी हैं। जो भी हो, लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष की अपनी-अपनी भूमिका है। दोनों के रिश्ते आरोपों-प्रत्यारोपों में गर्क न हों, और उनमें रचनात्मक संवाद की भरपूर गुंजाइश रहे, तो इससे जनता का ही भला होता है।


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