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- शिक्षा का व्यवसायीकरण...
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली सतत प्रक्रिया है, जिससे मनुष्य का न केवल बौद्धिक विकास होता है, बल्कि उसका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। अनेक शिक्षाविदों के द्वारा समय-समय पर किए गए शोध इसका प्रमाण हंै। हमारे देश में शिक्षा का क्या महत्त्व है, यह शायद किसी को बताने की जरूरत नहीं है। हर रोज ग्रामों और शहरों में भारत के करोड़ों बच्चे हर सुबह अपनी पीठ पर बस्ता लेकर अपना भविष्य संवारने स्कूल जाते हैं। हर माता-पिता की इच्छा रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर एक महान और काबिल इनसान बने और दुनिया में उनका और अपना नाम खूब रोशन करे। माता-पिता के इन सपनों को पूरा करने में हमारे स्कूल और हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है। स्पष्ट सी बात है कि किसी भी देश की संपन्नता उस देश की जनसंख्या के साक्षरता अनुपात पर ही निर्भर करती है। यद्यपि संपन्नता को मापने के लिए साक्षरता के अतिरिक्त अनेकों अन्य आयाम भी होते हैं, परंतु हम पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं कि बिना शिक्षा के किसी देश, राज्य या परिवार की प्रगति संभव हो ही नहीं सकती। शिक्षा के बिना मानव पूंछ विहीन पशु के समान है, क्योंकि शिक्षा ही मनुष्य में सभ्यता एवं संस्कृति के निर्माण में सहायक होती है और मानव को अन्य चौरासी लाख प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ भी बनाती है। अब जरा विडंबना देखिए कि लोगों के जीवन को गढ़ने वाली ये पाठशालाएं आजकल एक समृद्ध व्यवसाय का रूप ले चुकी हैं जिसने अच्छी शिक्षा को पैसे वालों की धरोहर बना कर रख दिया है। अब साधारण तथा मध्यमवर्गीय परिवार इन फाइव स्टार से दिखने वाले स्कूलों को दूर से टकटकी लगाकर ललचाई आंखों से देखते हैं और सोचते हैं कि काश, उनका बच्चा भी ऐसे स्कूलों में पढ़ पाता। यह हाल केवल शहरों में होता तो भी भाता, परंतु आजकल तो गांवों में भी शिक्षा का व्यवसायी और व्यापारीकरण हो रहा है। हर गली-मोहल्ले में दो-चार किराए के कमरों में हिंदी में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई हो रही है, जिसे यदि इंग्लिश न कह कर हिंगलिश माध्यम कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। आज यदि सरकारी स्कूलों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो हम देखेंगे कि इन स्कूलों में केवल निर्धन वर्ग के लोगों के बच्चे ही पढ़ने के लिए आते हैं क्योंकि प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं में फीस के रूप में एक बड़ी रकम वसूली की जाती है, जिन्हें केवल पैसे वाले धनाड्य लोग ही अदा कर पाते हैं।
सोर्स- divyahimachal