सम्पादकीय

जलवायु व स्वच्छ ऊर्जा

Gulabi Jagat
26 Aug 2022 5:34 AM GMT
जलवायु व स्वच्छ ऊर्जा
x
धरती के बढ़ते तापमान और गंभीर होते जलवायु संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत समेत दुनियाभर में स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है. जलवायु संकट का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का भारी उत्सर्जन है, जो जीवाश्म आधारित ईंधनों के उपभोग का परिणाम है. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां सकारात्मक रही हैं तथा 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर लाने के लिए प्रयास हो रहा है. लेकिन इस प्रयास में जलवायु परिवर्तन ही एक बड़ा अवरोध बन सकता है.
पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन में पाया है कि भविष्य में मौसम के तेवर में बदलाव के कारण देश की सौर और पवन ऊर्जा से संबंधित क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. अध्ययन का आकलन है कि उत्तर भारत में हवा बहने की मौसमी और सालाना गति में कमी आयेगी और दक्षिण भारत में इसमें बढ़ोतरी होगी. वैसी स्थिति में ओडिशा के दक्षिणी तटों तथा आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पवनचक्कियों के लिए बेहतर स्थिति होगी. हरित ऊर्जा के अधिक उत्पादन के लिए बड़ी क्षमता की पवनचक्कियां लगाने का चलन रहा है.
बदलती स्थितियों में कम क्षमता के छोटे-छोटे पवन ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करना होगा. समूचे भारत में हर मौसम में सौर विकिरण में कमी आयेगी. स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित योजनाकारों और उद्यमियों को ऐसे अध्ययनों का संज्ञान लेते हुए संभावित परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए. मध्य और दक्षिण-मध्य भारत में सौर विकिरण में मानसून से पहले के महीनों में, यानी गर्मी में मामूली कमी का अनुमान है. इन क्षेत्रों में सौर ऊर्जा उत्पादन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए.
सिंधु-गंगा के मैदानों में जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर पड़ रहा है. ये क्षेत्र प्रदूषण, अत्यधिक तापमान, पानी की कमी जैसी समस्याओं से भी गंभीर रूप से प्रभावित हैं. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नये सिरे से योजनाओं और नीतियों का निर्धारण होना चाहिए क्योंकि बड़ी आबादी और विकास संबंधी जरूरतों को देखते हुए इस हिस्से में ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में भारत की ओर से भरोसा दिया था कि 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में अधिक उत्सर्जन आधारित गतिविधियों की हिस्सेदारी 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत कम कर दी जायेगी तथा गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50 प्रतिशत बिजली हासिल की जायेगी. यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है, पर तकनीक, शोध, निवेश और व्यापक जन भागीदारी से इसे पूरा किया जा सकता है.
Next Story