सम्पादकीय

China-US Tension: क्या अमेरिका से दोस्ती के लिए बेचैन हैं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग?

Gulabi
7 Jun 2021 3:36 PM GMT
China-US Tension: क्या अमेरिका से दोस्ती के लिए बेचैन हैं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग?
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China-US Tension

ओम तिवारी। एक कहावत है सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली. कहावत इतनी मशहूर है कि यहां अर्थ बताने की कोई जरूरत नहीं है. अब एक सवाल सामने रखता हूं. दुनिया में चीन की इमेज कैसी है? अब यह एक ऐसा सवाल है जिसका खुद चीन के लोग भी वही जवाब देंगे तो धरती के किसी दूसरे कोने में मौजूद कोई व्यक्ति देगा. चाहे वो विस्तारवाद की नीति हो या लोकतंत्र के दमन का इतिहास हो, सुपरपावर नंबर वन बनने की चाहत हो या नागरिकों के अधिकार के हनन की क्रूर हकीकत हो. चीन की यह इमेज किसी से छिपी नहीं है. चीन के सुप्रीम नेताओं ने देश की ऐसी छवि बनाई है. ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग से लेकर मलेशिया, जापान और भारत तक ऐसा कोई देश नहीं जो चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान नहीं हो. खुद चीन में शिनजियांग प्रांत के उइगर मुसलमानों से लेकर इनर मंगोलिया के मंगोल, तिब्बत के बौद्ध और देश की आम आबादी तक ऐसा कोई नहीं है जिसने साम्यवादी सरकार का जुल्म नहीं झेला हो.

लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कहते हैं कि दुनिया के सामने देश की 'lovable' इमेज बनाने का वक्त आ गया है. चीनी न्यूज एजेंसी के मुताबिक यह बात उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के नेताओं के साथ बैठक में कही. सार संक्षेप यही था कि चीन को अपनी भरोसेमंद, प्यारी और सम्मानजनक छवि तैयार करनी चाहिए. दुनिया से बातचीत में रूखापन नहीं रखना चाहिए, खुले दिमाग और आत्मविश्वास के साथ-साथ बातचीत में नम्र और विनीत भी दिखना चाहिए.
क्या छवि बदलने का दांव खेलकर जिनपिंग अमेरिका को लुभाना चाहते हैं?
अब आप सोच रहे होंगे. चीन को यह क्या हो गया है? इतने सालों में बनाई हुई छवि को रातोंरात चीन आखिर बदलना क्यों चाहता है? अचानक चीन के राष्ट्रपति का यह हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? लेकिन शी जिनपिंग की इस पूरी कवायद की असलियत ठीक उस बिल्ली जैसी ही है जिससे जुड़ी कहावत से यहां बात शुरू हुई थी.
दरअसल, शी जिनपिंग ने जो पासा फेंका है, उसका अंदेशा कई जानकार पहले ही जता चुके थे. ट्रेड टैरिफ को लेकर डोनाल्ड ट्रंप से शुरू हुई लड़ाई जब कोरोना वायरस फैलाने की साजिश और जासूसी के आरोप-प्रत्यारोप तक पहुंच गई तो शी जिनपिंग को उम्मीद थी कि अमेरिका में राष्ट्रपति बदलते ही सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा. शी जिनपिंग ने आस लगाई कि जो बाइडेन से पुरानी जान पहचान के बूते वो दोनों देशों के बीच रिश्ते दुरुस्त कर लेंगे. इसलिए चाहे वो दक्षिण चीन सागर हो या हिंद महासागर हो, भारत हो या ताइवान हो, चीन हर मोर्चे और मुद्दे पर अमेरिका के तमाम विरोध और चेतावनी के बावजूद अपनी हेकड़ी पर अड़ा रहा. रिपब्लिकन सरकार गई तो डेमोक्रेट राष्ट्रपति ने अमेरिका की कमान संभाल ली. ट्रंप के तमाम फैसले बाइडेन ने पलट डाले. लेकिन चीन के खिलाफ अमेरिका की नीति जस की तस बनी रही. पहले तो शी जिनपिंग माहौल भांपते रहे, पहले की तरह अमेरिका के सामने बांहें फड़काते रहे. लेकिन बाइडेन ने कोई नरमी नहीं दिखाई तो चीनी राष्ट्रपति ने छवि सुधारने की नई बाजी खेल दी है.
माना जा रहा है कि शी जिनपिंग अमेरिका से तल्खी कम करने का मन बना चुके हैं. चीनी राष्ट्रपति जानते हैं कि सुपरपावर नंबर टू होने के बावजूद अमेरिका से सीधी टक्कर लेना उन्हें महंगा पड़ सकता है. क्योंकि ट्रंप के जाने के बाद अब बात सिर्फ दोनों देशों की सामरिक शक्ति की नहीं रह गई है. अब सामरिक शक्ति के साथ-साथ अमेरिका कूटनीति में भी चीन पर हावी हो गया है. पहले जर्मनी जैसे जो यूरोपीय देश अपने व्यापारिक रिश्तों की वजह से चीन के साथ नजर आते थे, वो अब अमेरिका को नजरअंदाज करने की भूल नहीं कर सकते. क्योंकि जहां ट्रंप अपनी जिद से WTO और NATO जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों/समूहों और यूरोप के मित्र देशों को हताश कर चुके थे, जो बाइडेन ने हाथ बढ़ाकर न सिर्फ उनसे दोस्ती कायम कर ली है बल्कि नए कारोबारी संभावनाओं का रास्ता भी खोल दिया है.
जो बाइडेन की कूटनीति शी जिनपिंग पर कैसे भारी पड़ गई?
एक तरफ अमेरिका ने अपनी पुरानी कूटनीतिक ताकत बहाल कर ली है तो दूसरी तरफ पहले से अलग-थलग चीन को दोबारा पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया और कंबोडिया जैसे देशों का सहारा रह गया है. रूस चीन का दोस्त जरूर है. लेकिन सोवियत संघ से विघटित देशों पर चीन के बढ़ते प्रभाव और दक्षिण चीन सागर में PLA की जंगी हरकत रूस को पसंद नहीं है. इसलिए शी जिनपिंग जानते हैं कि आगे अमेरिका से तनाव बढ़ा तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, जंग का माहौल बना तो यूरोप में बचे-खुचे दोस्तों का साथ भी छूट सकता है.
यही वजह है कि चीनी राष्ट्रपति अपना रवैया नरम कर बातचीत के हालात बनाने की जमीन तैयार कर रहे हैं. अमेरिका से तनातनी कम कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि शी जिनपिंग को मालूम है कि माहौल बदला तो जो बाइडेन भी अपना रुख बदल सकते हैं. बिजनेस पर बिगड़ी बात दोबारा बनने की गुंजाइश बन सकती है. क्योंकि बात वर्चस्व की ना हो तो अमेरिका भी अपने कारोबारी हितों की अनदेखी नहीं करता.
शी जिनपिंग चीन की नहीं अपनी छवि ठीक करना चाहते हैं
यह एक हकीकत है कि शी जिनपिंग चीन की नहीं बल्कि अपनी छवि बदलने का दांव खेल रहे हैं और इस दांव में उन्होंने मोहरा कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं और अधिकारियों को बना दिया है. क्योंकि दुनिया से बातचीत में अक्खड़पन नहीं दिखाने और विनम्र रहने की सलाह वो पार्टी के अधिकारियों को ही दे रहे थे. बयान से साफ है पहले तो उन्होंने माना कि दुनिया की नजर में चीन की छवि खराब है. फिर इसका पूरा ठीकरा उन्होंने पार्टी के अधिकारियों पर फोड़ दिया.
अब इतना तो सब जानते हैं कि माओत्से तुंग और डेंग शियाओ पिंग के बाद आजाद चीन के तीसरे सबसे बड़े नेता शी जिनपिंग हैं. जिनकी इजाजत के बगैर कम्यूनिस्ट पार्टी क्या पूरे देश में कोई पत्ता नहीं हिलता. फिर कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों को देश की छवि बिगाड़ने की अनुमति किससे मिल गई? क्या अब तक ऐसा होता रहा और वो देखते रहे?
साफ है चीनी राष्ट्रपति सीपीसी की इमेज खराब अपनी छवि चमकाना चाहते हैं. अमेरिका से हाथ मिलाने के मौके तलाश रहे हैं. लेकिन सब कुछ इतना आसान होगा इसकी संभावना थोड़ी कम नजर आती है. क्योंकि पिछले दो वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच बात इतनी बढ़ गई है कि जो बाइडेन के लिए भी यू-टर्न लेना मुश्किल होगा. चाहे वो कोरोना वायरस से जुड़ी अमेरिकी जांच के ऐलान की बात हो या फिर ताइवान और भारत के साथ चीन के गतिरोध का मुद्दा हो. अगर शी जिनपिंग वाकई अपनी छवि सुधारना चाहते हैं तो उन्हें मोर्चे पर पीछे हटना होगा. जिसमें दक्षिण चीन सागर क्षेत्र भी शामिल है और हिमालय का पूर्वी लद्दाख सेक्टर भी शामिल है.
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