सम्पादकीय

बाल अपराधों को नियंत्रित करेंगे बाल पुलिस थाने

Rani Sahu
5 April 2022 11:10 AM GMT
बाल अपराधों को नियंत्रित करेंगे बाल पुलिस थाने
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बाल अपराध के मामले अब पारंपरिक पुलिस थानों को नहीं सौंपे जाएंगे

रमेश ठाकुर

बाल अपराध के मामले अब पारंपरिक पुलिस थानों को नहीं सौंपे जाएंगे. अलग से व्यवस्था की जा रही है. उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिश पर किशोर अपराध से जुड़े प्रत्येक किस्म के मामलों को सुलझाने के लिए उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में 'बाल मित्न थाना' खोलने का निर्णय हुआ है.
फैसला निश्चित रूप से सराहनीय है, इससे आपराधिक प्रवृत्ति वाले किशोरों को सही रास्ते पर लाने में मदद मिलेगी. देश में जैसे महिलाओं से जुड़े मामलों लिए 'महिला थाने' हैं, डिजिटल धोखाधड़ी रोकने के लिए 'साइबर थाने' बने हैं, ठीक उसी तर्ज पर 'बाल मित्न थानों' को स्थापित किया जाएगा.
बाल अधिकार संरक्षण विषय से जुड़े देशभर के असंख्य कार्यकर्ता लंबे समय से मांग उठाते आए हैं कि छोटे-बड़े अपराधों में नौनिहालों की संलिप्तता पर पुलिस उन्हें वयस्कों की तरह दंडित न करे, बल्कि उनके लिए अलग से थाने बनाए जाएं, और नरमी से काउंसलिंग की जाए, ताकि गलत रास्तों को त्यागकर बच्चे अच्छे संस्कारों की ओर मुड़ सकें
बाल मित्र थाने कैसे होंगे और उनमें तैनाती किन अधिकारियों की होगी, इसका खाका तैयार हुआ है. थानों में सिर्फ सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी की तैनाती रहेगी जिनमें अन्य थानों की तरह एक इंस्पेक्टर या एसएचओ होंगे, स्टाफ में करीब आठ-दस उप-निरीक्षक और एकाध महिला उप-निरीक्षक रहेंगी. शायद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की मौजूदा रिपोर्ट ने ये सब करने पर मजबूर किया है.
बीते एक वर्ष में नाबालिगों द्वारा अंजाम दी गई आपराधिक घटनाओं में 842 हत्या, 981 हत्या का प्रयास, 725 अपहरण केस शामिल हैं. ये संगीन मामले हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश अव्वल है. चोरी की 6081 घटनाएं दर्ज हुई हैं. लूट की 955 और डकैती की 112 घटनाएं भी सामने आईं. ये रिपोर्ट कोरोना काल की है जिस पर सभी राज्यों के बाल संरक्षण आयोग गंभीर हैं.
हाल के वर्षो में आपराधिक वारदातों में बच्चों की संलिप्तता बढ़ी है. सरकार का प्रयास है कि बाल मित्र थानों के जरिए इस अपराध को थामा जाए. थानों में महिला-पुरुष कांस्टेबल सभी सादे कपड़ों में रहा करेंगे. थानों में जब आपराधिक प्रवृत्ति से जुड़े बच्चों के केस आएंगे तो किशोरों को डराने के बजाय अपराध से दूर रखने की कवायद होगी.
प्रत्येक बाल मित्र थाने में आपराधिक बच्चों की काउंसलिंग की भी व्यवस्था का प्रबंध रहेगा. थानों में खिलौनों से लेकर पढ़ने वाली ज्ञानवर्धक पुस्तकें भी होंगी और पुलिसकर्मियों के अलावा बाल कल्याण समिति के लोग भी बच्चों से मिलते रहेंगे.
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