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- सियासत में चीता
Written by जनसत्ता: भारत में चीता के विलुप्त हो जाने की घोषणा सत्तर साल पहले ही कर दी गई थी। अब मध्यप्रदेश में उनके मिजाज के अनुकूल उद्यान विकसित कर उन्हें फिर से बसाने का प्रयास किया गया है। नामीबिया से आठ चीते मंगा कर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े गए हैं। वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि यह उद्यान नामीबियाई चीतों के रहने लायक उपयुक्त जगह है।
उम्मीद की जा रही है कि अगर इन चीतों का वंश बढ़ना शुरू हुआ तो एक बार फिर भारत में चीतों की हलचल दिखाई देगी। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इन चीतों को छोड़ने खुद प्रधानमंत्री पहुंचे थे। यह घटना निस्संदेह प्रसन्नता का विषय है। मगर जैसा कि आजकल हर छोटी बात भी राजनीतिक विमर्श का विषय बन जाती है, चीतों के पुनर्वास का प्रयास भी राजनीतिक रंग में रंग गया।
विपक्षी दल चीता पुनर्वास को लेकर सत्ता पक्ष के श्रेय लेने की कोशिशों को मिटाने में जुट गए। दरअसल, चीतों को उद्यान में छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री ने कह दिया कि पिछली सरकारों ने चीता पुनर्वास के लिए कोई प्रयास ही नहीं किया। इस पर मुख्य रूप से कांग्रेस ने इतिहास के पन्ने खोलने शुरू कर दिए कि कब से भारत में चीतों को बसाने का प्रयास चल रहा है। वर्तमान परियोजना का श्रेय भी उसने खुद लूटने का प्रयास किया।
यह सही है कि कई परियोजनाएं लंबा समय लेती हैं। उनमें वर्षों गहन शोध चलता है। चीता परियोजना के मामले में भी यही हुआ। भारत में चीतों के विलुप्त होने के पीछे उनके अनुकूल वातावरण का न होना और उनके संरक्षण संबंधी प्रयासों में लापरवाही बड़ी वजह रही है। आजादी के पहले से चीतों को बसाने और उनका वंश बढ़ाने की कोशिशें होती रही हैं, मगर इसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
वर्तमान परियोजना के तहत भी पहले गुजरात में अभयारण्य बना कर चीते बसाने का प्रस्ताव था। मगर वहां की जलवायु उनके अनुकूल नहीं पाई गई। इसलिए मध्यप्रदेश में कूनो राष्ट्रीय उद्यान विकसित किया गया। फिर उसमें मंथन चलता रहा कि चीते कहां से मंगाए जाएं। आखिरकार नामीबिया से चीते लाने पर सहमति बनी और अब भारत में चीतों की उपस्थिति बन सकी है। इसलिए इसका श्रेय लूटने के लिए होड़ के बजाय अब कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि कैसे इन चीतों का जीवन सुगम बनाया जा सके और इनका वंश बढ़े।
हमारे देश में कई वन्यजीवों का जीवन खतरे में है। अनेक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और कई विलुप्ति की कगार पर हैं। इसकी वजहें किसी से छिपी नहीं हैं। अभयारण्यों के रखरखाव में लापरवाही और बाहरी लोगों की गतिविधियां बढ़ने से वहां के वन्यजीवों का स्वाभाविक जीवन प्रभावित होता है। फिर मौसम का बदलता मिजाज भी कई जीवों को रास नहीं आता। चीता संवेदनशील प्राणी है।
अगर उसे स्वाभाविक रहन-सहन नहीं मिल पाता, तो उसकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। उसके खानपान की आदतें बदल जाती हैं, चिड़चिड़ा होकर कई बार वह आदमखोर हो जाता है। आजकल अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों को पर्यटन के विकास का एक साधन माना जाता है। इस तरह उद्यानों के आसपास अनेक व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो जाती हैं। सैर-सपाटा करने आए लोग वन्यजीवों के जीवन में बाधा उत्पन्न करते हैं। फिर उनके भोजन-पानी की माकूल व्यवस्था न हो पाना भी आम शिकायतों में एक है। इसलिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान के चीतों का जीवन इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके संरक्षण को लेकर कितनी संजीदगी दिखाई जाती है।