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समापदकीय
By NI Editorial
असल सवाल है कि नए राष्ट्रपति क्या नई नीति और समाधान का फॉर्मूला लेकर आते हैँ। लोग बदलाव की मांग कर रहे हैं। ऐसे में सिर्फ सत्ताधारी के बदलने से उनका गुस्सा शांत होगा, ऐसा संभव नहीं लगता।
श्रीलंका में कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने फिर आपातकाल लगा दिया है। इस फैसले से जाहिर है कि राष्ट्रपति बदलने से श्रीलंका की मूलभूत समस्या का समाधान नहीं हुआ है। असल सवाल शुरू से यही है कि जो भी नया राष्ट्रपति बनेगा, वह क्या नई नीति और समाधान का फॉर्मूला लेकर आएगा। बीते हफ्ते देश से भागने के बाद गोटबया राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद से अपना इस्तीफा श्रीलंकाई संसद के स्पीकर को भेज दिया था। राजपक्षे के पास इस्तीफा देने का ही एकमात्र विकल्प बचा था। जब श्रीलंका के गुस्से से उबल रहे हैं और बदलाव की मांग कर रहे हैं, तो उनकी भावना की अनदेखी संभव नहीं रह गई थी। लेकिन सत्ताधारी के बदलने से भी उनका गुस्सा शांत होगा, ऐसे संकेत नहीं हैँ। लोग अब सत्ताधारियों की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैँ। गौरतलब है कि राजपक्षे चले गए, लेकिन श्रीलंका का वित्तीय संकट अभी कायम है। बल्कि हालात बदतर होने की खबर है। बिजली की कटौती बढ़ गई है। ईंधन और महंगा हो गया है। अनाज और दवाओं की कमी बनी हुई है। और जब तक ये हाल है, विरोध प्रदर्शनों का दौर भी जारी रहेगा।
इस बीच सत्ताधारियों को लेकर देश में गुस्से की नई लहर आई है। श्रीलंका का राष्ट्रपति निवास हमेशा कड़ी सुरक्षा में रहा। लेकिन नौ जुलाई को ये जगह आम जनता के लिए खुली। तब आम जन को मालूम हुआ कि इस निवास के भीतर राष्ट्रपति का परिवार किस विलासिता के साथ रहता था। राजपक्षे के शासन की नाकामियां तो अब जग जाहिर हैँ। उनकी सरकार धनी लोगों और कॉरपोरेट सेक्टर को टैक्स में बड़ी कटौती दे रही थी। जबकि उसे उन पर टैक्स बढ़ाने की नीति अपनानी चाहिए थी। बढ़े टैक्स से मिले धन का निवेश आम जन में किया जा सकता था और उससे कर्ज चुकाया जा सकता था। लेकिन राजपक्षे ने किसी की सलाह नहीं सुनी। इसकी कीमत उन्हें और पूरे देश को चुकानी पड़ी है। इसकी मार लोगों ने झेली है। इसीलिए सरकार विरोधी आंदोलन धीमा नहीं पड़ रहा है। आपातकाल लगाना शायद इसी आंदोलन को कुचलने का प्रयास है। लेकिन इसमें नया प्रशासन सफल हो पाएगा, इसमें संदेह है।
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Gulabi Jagat
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