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सम्पादकीय
पाकिस्तान में अनहोनी के आसार, सेना को निशाना बनाकर इमरान खान ने लांघी सीमा
Gulabi Jagat
6 Sep 2022 5:10 PM GMT
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विवेक काटजू : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी यानी पीटीआइ के मुखिया इमरान खान ने आखिरकार वह हद पार कर दी, जिसके बारे में पाकिस्तान में सोचा तक नहीं जाता। उन्होंने फैसलाबाद की एक रैली में पाकिस्तान के अगले सेना प्रमुख की नियुक्ति को लेकर जो कुछ कहा, उसकी गुंजाइश पाकिस्तान की ताकतवर सेना कभी नहीं देगी कि राजनीतिक बिरादरी का कोई व्यक्ति उसके विषय में ऐसी टीका-टिप्पणी करे।
इमरान ने भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ ही पूरे शरीफ खानदान के अलावा आसिफ अली जरदारी को भी निशाने पर लिया, जिनके बेटे मौजूदा सरकार में विदेश मंत्री हैं। उन्होंने अपने सियासी तख्तापलट के बाद बनी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसके शासन में लोगों की दुश्वारियां बढ़ी हैं। ये बातें उनके समर्थकों को रास आ रही थीं। उनका जनाधार बना हुआ था।
ऐसी राजनीतिक टिप्पणियों के बारे में कुछ भी अजीब नहीं था, लेकिन फैसलाबाद में इमरान कुछ ज्यादा आगे ही बढ़ गए। उन्होंने कहा कि नए चुनाव कराने की उनकी मांग इसीलिए खारिज कर दी गई, क्योंकि शरीफ परिवार और जरदारी एक दब्बू सेना प्रमुख की नियुक्ति करना चाहते हैं। ज्ञात हो कि सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है। इमरान ने कहा कि ये भ्रष्ट नेता किसी मजबूत और देशभक्त सेना प्रमुख को नहीं चाहते, जो उनकी संपत्ति के स्रोत के बारे में उनसे सवाल कर सकें। उन्होंने कहा कि अगले सेना प्रमुख की नियुक्ति पूरी तरह योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। उनकी ऐसी टिप्पणियां किसी राजनीतिक बम की तरह थीं, जिन्हें मौजूदा सैन्य नेतृत्व के साथ ही वर्तमान सरकार को निशाना बनाकर फेंका गया।
इमरान की टिप्पणी पाकिस्तानी सेना को अखरना स्वाभाविक है। पाकिस्तानी सेना ने खुद को देशभक्ति के पर्याय रूप में कुछ ऐसे पेश किया है कि केवल वही एकमात्र संस्थान है, जो देश के स्थायी शत्रु यानी भारत से मुल्क की रक्षा करने में सक्षम है। वह यह दिखाती आई है कि उसके जनरल खासकर सेना प्रमुख ईमानदार और काबिल हैं, जबकि नेता केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं और जनकल्याण में उनकी कोई रुचि नहीं। यही कारण है कि शहबाज शरीफ सरकार द्वारा अगले सेना प्रमुख की नियुक्ति को लेकर इमरान खुलेआम जो सवाल उठा रहे हैं, वे सेना में अधिकांश वर्गों को स्वीकार्य नहीं।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख के चयन की प्रक्रिया स्पष्ट है। सेना मुख्यालय द्वारा चार-पांच वरिष्ठ जनरलों के नाम भेजे जाते हैं। प्रधानमंत्री उनमें से एक पर मुहर लगाते हैं। जब कोई व्यक्ति चुन लिया जाता है तो सेना निर्णय का सम्मान कर एकजुटता प्रदर्शित करती है। सेना प्रमुख भले ही प्रधानमंत्री द्वारा चुने जाते हों, मगर उनके लिए सेना के हित ही सर्वोपरि होते हैं और सरकार या प्रधानमंत्री के राजनीतिक हितों की उन्हें बहुत ज्यादा परवाह नहीं होती। वह स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए स्वयं को पाकिस्तान के मुख्य रक्षक की भूमिका में देखता है।
पाकिस्तानी सेना अपनी और खासकर अपने मुखिया की यही छवि जनता के बीच भुनाती आई है। इमरान इसी छवि को धूमिल करना चाहते हैं, क्योंकि माना जा रहा है कि उनके पसंदीदा जनरल फैज हमीद अब शीर्ष पद की होड़ में पिछड़ गए हैं, जिन्हें बाजवा पहले ही आइएसआइ के मुखिया पद से चलता कर चुके हैं। असल में हमीद के चलते ही इमरान और बाजवा में तनातनी बढ़ी थी, क्योंकि इमरान ने हमीद के स्थानांतरण का प्रतिरोध किया था। यह स्थिति तब बनी, जब इमरान को सेना की सहायता से ही सत्ता मिली थी।
सेना ने इमरान की टिप्पणी पर तल्ख बयान में कहा, 'फैसलाबाद में एक राजनीतिक रैली के दौरान पीटीआइ के चेयरमैन द्वारा सेना के शीर्ष नेतृत्व के प्रति अनावश्यक एवं अपमानजनक टिप्पणी से पाकिस्तानी सेना हैरान है।' उसने कहा कि इमरान एक ऐसे समय सेना के शीर्ष नेतृत्व को 'बदनाम और कमजोर' करने पर तुले हैं, जब सेना देश की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए अपनी जान दांव पर लगा रही है। उसने शिकायती लहजे में कहा कि इमरान सेना प्रमुख की चयन प्रक्रिया को 'स्कैंडलाइज' करने पर आमादा हैं।
पाकिस्तान सरकार ने भी इमरान के बयान की निंदा की। यकीनन, पाकिस्तान के विभिन्न संस्थानों में इमरान के समर्थक भी अब पीटीआइ से पल्ला झाड़ने का प्रयास करेंगे। ऐसा माना जाता है कि इमरान को सेना में कुछ वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिकारियों का समर्थन रहा है। वे भी अब इमरान को लेकर एहतियात बरतेंगे, क्योंकि उन्हें राजनीतिक रूप से अपरिपक्व और सियासी बोझ के रूप में देखा जाएगा। ऐसे आसार और प्रबल संभावनाएं हैं कि फैसलाबाद वाले बयान पर इमरान को कानूनी कार्रवाई का भी सामना करना पड़े। इमरान का जनाधार होने के बावजूद अब सेना उनकी सत्ता वापसी में अड़ंगा लगाएगी। इससे पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और अस्थिर हो जाएगी।
यह विवाद तब सामने आया है जब पाकिस्तान भयंकर बाढ़ से दो-चार है। तमाम लोग बाढ़ की भेंट चढ़ गए हैं। एक तिहाई पाकिस्तान डूबा हुआ है। खेत जलमग्न हैं। करीब 10 अरब डालर से अधिक का बुनियादी ढांचा तबाह हो गया है। 'कंगाली में आटा गीला' वाली स्थिति यह है कि बाढ़ तब आई, जब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट है। मुल्क बाहरी मदद का मोहताज हो गया है। वह आइएमएफ से लेकर सऊदी अरब और यूएई के आगे कटोरा लिए खड़ा है। इतने भारी संकट के बावजूद भारत के प्रति उसका शत्रुता भाव नहीं घटा और वह भारत से आयात के लिए तैयार नहीं, जिस पर उसने कश्मीर में संवैधानिक परिवर्तन के बाद प्रतिबंध लगा दिया था।
पाकिस्तान में बाढ़ पीड़ितों के प्रति संवेदना जताकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सही संदेश दिया। प्रश्न यह है कि क्या सहायता सामग्री भेजी जानी चाहिए? ध्यान रहे कि शहबाज शरीफ ने भारत पर जम्मू-कश्मीर में जनसंहार का मिथ्यारोप मढ़ा है। इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि मदद के बावजूद पाकिस्तान आतंकी हरकतों से बाज आए। इससे मोदी को ही शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। पठानकोट, उड़ी और पुलवामा हमलों की कड़वी स्मृतियां भूले नहीं भुलाई जा सकतीं। इसीलिए मोदी ने हमदर्दी तो दिखाई, पर मदद की पेशकश न करके राजनीतिक एवं कूटनीतिक स्तर पर बिल्कुल सही किया।
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)
Gulabi Jagat
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