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इन दो लोकतंत्रों के बीच मजबूत संबंध दशकों की आपसी समझ-बूझ से बने हैं।
भले ही चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का महत्वाकांक्षी सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम 1970 के दशक के अंत में शुरू हुआ था, लेकिन अब यह एक ऐसी स्थिति में पहुंच चुका है कि विश्व समुदाय और भारत को इस पर ध्यान देना चाहिए। इस घटनाक्रम को बारीकी से देखने की जरूरत है। सैन्य आधुनिकीकरण तथा युद्ध में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए सैन्य संगठन, सिद्धांत, शिक्षण, प्रशिक्षण और कार्मिक नीतियों में सुधार की आवश्यकता थी। इस दिशा में चीन ने जो सुधार किए, उनमें केंद्रीय सैन्य आयोग के गठन और अन्य वैचारिक परिवर्तनों के साथ 1984 में नए सैन्य सेवा कानून का अधिनियमन शामिल था। इसने चीनी पीएलए को पहले जैसी सांस्कृतिक सेना के मुकाबले एक सैन्य चेहरा प्रदान किया।
यह सैन्य सुधार रक्षा अनुसंधान एवं विकास के पुनर्गठन और सैन्य व असैन्य विज्ञान तथा उद्योग को एकीकृत करने के लिए औद्योगिक आधार पर केंद्रित था। हथियारों के उन्नयन के लिए चुनिंदा विदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। रक्षा उद्योग सुधारों के फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय हथियार बाजार में चीन का प्रवेश भी हुआ। हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्री की अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई एक ताजा रिपोर्ट में चीनी सेना के सैन्य-तकनीकी विकास के वर्तमान और संभावित भविष्य के कार्यक्रम और इसकी सुरक्षा व सैन्य रणनीति के सिद्धांतों और संभावित विकास के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। यह खतरनाक बदलाव को दर्शाता है।
चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिनमें लगभग 350 जहाजों और पनडुब्बियों की कुल युद्ध शक्ति है, जिसमें 130 से अधिक सतह पर वार करने वाले लड़ाकू विमान भी शामिल हैं। इसकी तुलना में, अमेरिकी नौसेना के युद्ध बल में 2020 की शुरुआत में लगभग 293 जहाज थे। भूमि आधारित पारंपरिक बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों में, चीन के पास 1,250 से अधिक ग्राउंड-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल और ग्राउंड-लॉन्च क्रूज मिसाइल हैं, जो 500 से 5,500 किलोमीटर तक वार कर सकते हैं। अमेरिका के पास फिलहाल एक तरह का पारंपरिक ग्राउंड-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 70 से 300 किलोमीटर तक वार कर सकती है और उसके पास कोई ग्राउंड-लॉन्च क्रूज मिसाइल नहीं है। एकीकृत वायु रक्षा प्रणालियों के दायरे में चीन सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की उन्नत प्रणालियों वाली दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है, जिनमें रूस निर्मित एस-400, एस-300 और घरेलू स्तर पर तैयार सिस्टम शामिल हैं, जो इसकी मजबूत और एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली का हिस्सा है
हालांकि चीनी परमाणु बलों के विकास का गहन अंतर्दृष्टि के साथ मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। अमेरिकी परमाणु हथियारों के साथ बराबरी या उससे ज्यादा हथियार रखने की कोशिश के बजाय चीन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अमेरिकी हमलों के मद्देनजर उसके पास एक सुनिश्चित जवाबी क्षमता हो। चीन स्वतंत्र रूप से लक्षित कई रीएंट्री वाहन हथियारों की बड़ी संख्या को अपने बेड़े में शामिल कर रहा है। समुद्र, जमीन और वायु से परमाणु हमला करने की क्षमता से उसके परमाणु हथियारों में और बढ़ोतरी होगी, क्योंकि ये नई प्रणालियां सुसज्जित हैं। पीएलए की वायुसेना एक नई वायु-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करके परमाणु मिशन को भी अपना रही है, जो परमाणु सक्षम होने के साथ ही परमाणु-सक्षम एच-20 रणनीतिक बमवर्षक भी हो सकती है। इतनी तेजी से सैन्य विकास के बीच हो सकता है कि चीन ने परमाणु हथियारों में भी निवेश किया हो, जिससे उसके पड़ोसियों को तात्कालिक खतरा है। जैसा कि हम जानते हैं कि पूर्वी लद्दाख में मोर्चे पर तैनात हमारे सैनिकों को लक्ष्य करके चीन ने बैलेस्टिक मिसाइल तैनात कर रखे हैं। चीन द्वारा अभी हासिल की गई सैन्य क्षमता के अलावा उसके द्वारा हाल ही में तैनात की गई मध्य और मध्यवर्ती रेंज की बैलेस्टिक मिसाइलें भी उसकी मंशा के बारे में बताती हैं।
कुल मिलाकर, हालिया रणनीतिक परिदृश्य चीन के वर्चस्ववादी रवैये के ही बारे में बताता है, जिसके तहत वह भारत की सीमा और ताइवान में अपनी सैन्य उपस्थिति जताने के अलावा दक्षिण चीन सागर में भी आक्रामकता का परिचय दे रहा है। वह दक्षिण चीन सागर के एक बड़े हिस्से पर अपनी ऐतिहासिक हिस्सेदारी का दावा करता आया है, हालांकि हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय उसके दावे को खारिज कर चुका है। लेकिन बीजिंग इस कानूनी फैसले को स्वीकारने के लिए भी तैयार नहीं है। आक्रामक रवैये से चीन ने ब्रुनेई, ताइवान, वियतनाम, मलयेशिया और फिलीपींस के साथ अपने संबंधों को और भी जटिल तथा तनावपूर्ण बना दिया है।
विगत चार नवंबर की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने सूचित किया है कि भारत और चीन के बीच तनाव कम करने के लिए कोर कमांडरों की लगातार वार्ताओं के बावजूद बीजिंग ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने दावे के अनुरूप दबाव बनाने के लिए वर्चस्ववादी और सामरिक कदम उठाना जारी रखा है। यही नहीं, भारत को अमेरिका के साथ मजबूत रिश्ता बनाने से रोकने के लिए भी वह प्रयत्नशील है, जिसमें वह विफल हुआ है। पेंटागन का साफ कहना है कि चीन का खासकर भारत के प्रति रिश्ता बेहद आक्रामक और दबाव बनाने वाला है। इसी के तहत उसने सीमा पर तनाव को देखते हुए तिब्बत और शिंजियांग सैन्य जिलों से सैनिकों को लाकर पश्चिमी चीन में तैनात कर रखा है। पेंटागन का यह भी कहना है कि चीन ने पिछले साल चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और भारत के अरुणाचल प्रदेश के बीच के विवादग्रस्त क्षेत्र में सौ घरों का एक गांव बसाया है।
अमेरिका के इस खुलासे में सच्चाई है। कई बैठकों के बावजूद चीन ने डेपसांग घाटी और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई इलाकों से अपने सैनिक हटाने से मना किया है। उससे भी बदतर यह कि हाल ही में एक कानून बनाकर उसने सीमा के गांवों को भारतीय सैनिकों के खिलाफ एकतरफा कदम उठाने को अधिकृत कर दिया है। दोतरफा वार्ताओं के बीच चीन के इस रवैये से परेशानी ही बढ़ेगी। भारत-अमेरिका रिश्तों को पटरी से उतारने की चीनी कोशिश अर्थहीन है, क्योंकि इन दो लोकतंत्रों के बीच मजबूत संबंध दशकों की आपसी समझ-बूझ से बने हैं।
Neha Dani
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