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- हादसों की कड़ियां
Written by जनसत्ता: यह पिछले कुछ दिनों से लगातार सड़क हादसों की आने वाली खबरों की एक कड़ी भर है, जिसमें चालक की मामूली गलती, लापरवाही या फिर सड़क की स्थिति की वजह से नाहक ही कई लोगों की मौत हो गई। उत्तराखंड में कोटद्वार-रिखणीखाल-बीरोंखाल मार्ग पर सिमड़ी के पास करीब पचास बारातियों को लेकर जा रही बस अनियंत्रित हो गई और पूर्वी नयार नदी की घाटी में जा गिरी।
हादसे के वक्त अंधेरा घिर चुका था। ऐसे में खाई जैसी जगह में बचाव कार्य किस तरह चला होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। हो सकता है कि पहाड़ी इलाकों में बस चालकों को दुर्गम सड़कों पर वाहन चलाने का अभ्यास रहता है। लेकिन यह अलग से कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए कि एक पल की बहुत मामूली चूक भी बस के सभी यात्रियों के लिए जानलेवा हो सकती है।
इस घटना में यही हुआ और इसकी कीमत कई लोगों की मौत के रूप में सामने आई। सवाल है कि इस बेहद तकलीफदेह घटना पर सिर्फ अफसोस जता कर क्या इस गंभीर होती जा रही समस्या का हल निकाला जा सकता है!
हाल के दिनों में अन्य जगहों से भी इसी तरह के कई हादसों की खबरें आर्इं। मंगलवार को ही गुजरात के वड़ोदरा शहर में एक कंटेनर ट्रक चालक ने एक तिपहिया वाहन को टक्कर मार दी, जिसमें दस लोगों की मौत हो गई। बीते शनिवार को उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ट्रैक्टर-ट्राली के सड़क किनारे पानी से भरे गड्ढे में पलट जाने से छब्बीस लोगों की जान चली गई।
विडंबना यह है कि एक तरह से ऐसे हादसों का सिलसिला जैसा चल रहा है, मगर इसकी रोकथाम के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं देखने में आता है, सिवा इसके कि घटना के बाद दुख जता दिया जाए या फिर जांच के निर्देश दे दिए जाएं। उत्तराखंड या किसी भी पहाड़ी राज्य में ऊंचे पहाड़ों के बीच बनी सड़कों पर सफर के खतरे जगजाहिर हैं।
कई बार बहुत छोटी चूक भी सड़क पर वाहन चलाने के अनुभव पर भारी पड़ जा सकती है। इसलिए सुरक्षा के बहुस्तरीय इंतजाम की जरूरत होती है। मगर क्या सरकारों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत लगती है?
गौरतलब है कि पहाड़ी इलाकों में अगर सामान्य स्थितियों में वाहन अनियंत्रित हो या चालकों की लापरवाही हो तो उसे रोकने के लिए सड़क किनारे 'पैराफिट' यानी सुरक्षा दीवार या 'क्रैश बैरियर' का होना जरूरी है। दुर्घटना के लिहाज से हर संवेदनशील जगह की पहचान कर मजबूत 'पैराफिट' होने चाहिए। यह व्यवस्था पहाड़ी इलाकों में होने वाले हादसों को कम कर सकती है।
बाकी मैदानी इलाकों में होने वाली दुर्घटनाएं भी आमतौर पर यातायात नियमों को धता बता कर या फिर शराब पीकर वाहन चलाने के चलते होती हैं। इसके अलावा, क्षमता से ज्यादा सवारियां भर लेना, वाहनों का दुरुस्त नहीं होना, तेज रफ्तार आदि भी हादसों की वजह बनते हैं। देश भर में सड़क यातायात के लिए एक समूचा तंत्र काम करता है। बाकायदा नियम-कायदे बनाए गए हैं।
फिर भी आए दिन इतनी बड़ी तादाद में हादसे क्यों सामने आते हैं? हर साल सड़क दुर्घटनाओं में हजारों लोगों की जान नाहक ही चली जाती है, जिन्हें बहुत साधारण सावधानियों के बूते रोका जा सकता है। केवल बहुत अच्छी सड़कें बनाने से सुरक्षित सफर तय नहीं हो सकता। जरूरत इस बात की है कि हादसों को रोकने के लिए हर जरूरी उपाय के साथ उन पर चलने वाले वाहनों को भी बेलगाम होने से रोका जाए।