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By: divyahimachal
सुक्खू सरकार की इच्छाशक्ति का जोरदार प्रदर्शन कांगड़ा हवाई अड्डा के विस्तार के साथ नत्थी हो गया है और एक बार फिर इस आशय का प्रमाणपत्र मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने दिया है। कांगड़ा एयरपोर्ट अब सियासी बिसात से कहीं आगे हकीकत की जमीन पर राज्य के भविष्य को नई आवाज दे रहा है। बुधवार के वर्चुअल संबोधन में शाहपुर से पालमपुर तक के संदेश में विकास का एक नया नक्शा मुखातिब रहा, तो ड्रोन तकनीक के क्षेत्र में हुआ शंखनाद परिवर्तन की दिशा में अग्रसर होने का रास्ता चुन रहा है। बहरहाल बुधवार के कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री की वर्चुअल उपस्थिति में हिमाचल के विकास की मजबूरी भी परिलक्षित हुई है या यूं कहें कि सरकार के इरादों का जोश अंतत: कनेक्टिविटी की बाधाओं में विभाजित हो जाता है। ऐसे में बड़े हवाई अड्डे का ख्वाब पिछले दो दशकों से झूलता रहा है। जमीनों की पैमाइश से कहीं अधिक नाप नपाई राजनीति कर गई, लेकिन संभावनाओं के अक्स टूटते रहे।
नए-नए प्रस्तावों के नगीने पेश करके समय और सपनों को बांटा गया, लेकिन यह पहली सरकार है जो पहले दिन से इस कोशिश में है कि कांगड़ा हवाई अड्डे को सियासी मुकदमा बनाने के बजाय पर्यटन की मंजिल पर खड़ा किया जाए। इसी बहाने विकास और विस्थापन की नई चर्चा हिमाचल में शुरू हुई है। यह फोरलेन परियोजनाओं से होती हुई कांगड़ा एयरपोर्ट के प्रवेश पर खड़ी है और इसी संदर्भ में मुख्यमंत्री का यह आश्वासन आया है कि विस्थापित परिवारों को सरकार पूरी तरह से बसाएगी। विकास में विस्थापन मायूस जरूर करता है, लेकिन इसे योजनाबद्ध तरीके से अवसर में बदला जाए तो भविष्य के पैमाने, रोजगार की संभावना और जीवनशैली की पद्धति प्रभावशाली हो जाएगी। दरअसल हिमाचल में अबतक मुआवजा राशि और पुनर्वास का स्थायी प्रबंधन करने में नीतिगत चूक होती रही है। अगर पौंग बांध परियोजना के बदले एक सैटेलाइट एवं औद्योगिक शहर की बुनियाद रखी गई होती तो देहरा से नूरपुर के बीच बीबीएन या परवाणू जैसा शहर बस जाता।
कहना न होगा कि कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार के संकल्प के साथ न्यू गगल के विकास का मंसूबा परिलक्षित होना चाहिए ताकि आवास के बदले आवास और व्यापार के बदले व्यापार मिल सके। प्रदेश अगर एक मुकम्मल पुनर्वास नीति बनाए, तो यह भविष्य के शहरों, निवेश केंद्रों और आर्थिक संभावनाओं का एक खुशहाल परिदृश्य खड़ा कर सकती है। प्रदेश की चार महत्त्वपूर्ण फोरलेन परियोजनाओं और प्रमुख नेशनल हाई-वे के साथ-साथ कम से कम आधा दर्जन निवेश या पुनर्वास शहर बसा कर सरकार विस्थापितों को दर्द भुलाने का विकल्प दे सकती है। इसकी शुरुआत गगल एयरपोर्ट विस्तार से हो सकती है। यह कांगड़ा-धर्मशाला के बीच एक नया व्यापारिक, औद्योगिक केंद्र के साथ-साथ आवासीय बस्ती के निरूपण से संभव होगा। हिमाचल में हाईवे टूरिज्म की संभावनाओं में तमाम विस्थापित लोगों को रोजगार देना होगा। हिमाचल में कश्मीरी व तिब्बती शरणार्थियों के लिए सरकारी नौकरियों में अवसर आरक्षित हो सकते हैं, तो आइंदा किसी भी प्रकार के विस्थापन के बदले प्रभावित परिवारों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए। बहरहाल सुक्खू सरकार ने विकास के मानदंड बदले हैं और इरादों में इच्छाशक्ति का परिचय देना शुरू किया है, लेकिन मंजिलें समयबद्ध रणनीति और इसकी पूर्णत: से ही तय होंगी। जाहिर तौर पर कांगड़ा एयरपोर्ट अगर एक तपके को विस्थापन की वजह से निराश कर रहा है, तो कहीं यह परियोजना हिमाचली विकास की सदियां भी बदल देगी। अब कोशिश हिमाचल की दूरियां मिटाकर अनावश्यक खर्च घटाने की होनी चाहिए। दो तीन शहरों और दर्जनों कस्बों-गांवों को मिलाकर विकास के केंद्रीयकरण को राहत देकर इसे हर छोर की सहभागिता में परिपूर्ण करना होगा। इस दृष्टि से नगर नियोजन की अवधारणा को व्यापक परिदृश्य में देखना होगा तथा क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों की स्थापना में आगे बढऩा पड़ेगा।
Rani Sahu
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