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- चीरहरण की सीबीआई जांच
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मणिपुर बीते 87-88 दिनों से जल रहा है। बाजार, मकान, घर, गली-मुहल्लों में सन्नाटा पसरा है। इस बीच जो विध्वंस किए गए हैं, आगजनी से बहुत कुछ ‘राख’ किया गया है, उनके जले-टूटे अवशेष ही साक्ष्य हैं। अपने-अपने इलाकों में छात्र और महिलाएं भी क्रमश: बंदूक लेकर और मशाल जला कर पहरेदारी में जुटे हैं। सेना और सुरक्षा बलों के जूतों की आवाज सुनाई देती है अथवा कहीं-कहीं गोलियां, ग्रेनेड चलाने के विस्फोट सुनाई देते हैं। मणिपुर करीब तीन माह के बाद भी अशांत और तनावपूर्ण है। विश्वास नहीं होता कि 17 जुलाई के बाद कोई मौत नहीं हुई होगी! बहरहाल केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई जांच का निर्णय सही दिशा में, सटीक कदम है। दो महिलाओं का चीरहरण, उन्हें नग्न अवस्था में घुमाना, एक 21 वर्षीय युवती के साथ सामूहिक बलात्कार, घटना का वीडियो वायरल होना, राष्ट्रव्यापी गुस्सा और देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ की क्षुब्ध टिप्पणी आदि व्यापक घटनाक्रम हैं, जिनकी गहराई में जाना जरूरी है। भारत सरकार ने सर्वोच्च अदालत से अनुमति मांगी है कि चीरहरण कांड का संपूर्ण ट्रायल, मणिपुर के बजाय, असम में किया जाए। मौजूदा हालात में मणिपुर प्रशासन से निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की उम्मीद रखना भी फिजूल है। राज्य सरकार से ही मणिपुर के लोगों का भरोसा टूट चुका है। मोहभंग हो चुका है। ऐसे में सीबीआई जांच ही एकमात्र विकल्प था, लेकिन उसे भी समयबद्ध किया जाए, क्योंकि सीबीआई जांच लंबी खिंच जाती है। सीबीआई वायरल वीडियो, उसके कैमरे और वीडियो बनाने वालों की भी जांच करेगी। प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है और कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं।
मणिपुर का यथार्थ यह है कि करीब 65,000 लोग विस्थापित हो चुके हैं और 50,000 से अधिक बेघर हुए हैं। करीब 3000 लोग घायल हुए हैं, जबकि मौतों की संख्या 165 तक पहुंच चुकी है। राज्य में करीब 5000 हिंसक घटनाएं हुई हैं। करीब 24,000 लोग राहत-शिविरों में शरण लिए हैं। वहीं महिलाओं ने 32 शिशुओं को जन्म दिया है और अब भी कई गर्भवती औरतें शिविरों के भीतर हैं। पुलिस ने 12,740 लोगों को एहतियात के तौर पर गिरफ्तार किया है और 252 संदिग्ध चेहरों की पहचान की गई है। मणिपुर में सेना और सुरक्षा बलों की 124 कंपनियां तैनात हैं और पहरेदारी कर रही हैं। इन आंकड़ों पर गौर करें, तो किसी युद्ध का बिम्ब मन में उभरता है। जातीय टकराव में हिंसा और हत्याओं की इतनी घटनाओं की जांच सीबीआई कैसे करेगी? अथवा चीरहरण कांड तक ही सीमित रहेगी? मणिपुर में 5100 से अधिक आगजनी की घटनाएं हो चुकी हैं। यह मैतेई बनाम कुकी, नागा समुदायों के बीच तनाव और टकराव के ही नतीजे हैं, लेकिन मणिपुर म्यांमार, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन सरीखे पड़ोसी देशों से घिरा हुआ है।
म्यांमार के नागरिक 72 घंटे के लिए कभी भी मणिपुर में घुस सकते हैं। कोई वीजा नहीं। सीमाएं खुली हैं। ऐसा निर्णय भी भारत सरकार ने किया होगा! म्यांमारी नागरिक लौटते हैं या नहीं, इसका रिकॉर्ड अधूरा है। म्यांमार का सबसे ताकतवर ड्रग और हथियारों का सिंडिकेट मणिपुर में ही सक्रिय है। अफीम की खेती और आधुनिक, स्वचालित हथियारों की तस्करी के अड्डों और उनकी सक्रियता की जानकारी राज्य और केंद्र सरकार दोनों को है, लेकिन सभी शुतुरमुर्ग बने हैं। मणिपुर में आज भी 40 उग्रवादी समूह मौजूद हैं, यह भी सरकारें जानती हैं। मणिपुर का संकट सिर्फ जातीय टकराव नहीं, बहुआयामी है। बेशक संसद में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी। भारत सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
By: divyahimachal
Rani Sahu
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