सम्पादकीय

राज्यसभा चुनाव में छ्त्रपति शिवाजी महाराज के वंशज संभाजी राजे के खिलाफ उतारा उम्मीदवार, क्या शिवसेना नुकसान उठाने को तैयार?

Rani Sahu
24 May 2022 1:57 PM GMT
राज्यसभा चुनाव में छ्त्रपति शिवाजी महाराज के वंशज संभाजी राजे के खिलाफ उतारा उम्मीदवार, क्या शिवसेना नुकसान उठाने को तैयार?
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राज्यसभा की महाराष्ट्र से छह सीटों के लिए 10 जून को चुनाव (Rajya Sabha Election 2022) होना है

शमित सिन्हा |

राज्यसभा की महाराष्ट्र से छह सीटों के लिए 10 जून को चुनाव (Rajya Sabha Election 2022) होना है. नंबर गेम के लिहाज से बीजेपी के दो और महाविकास आघाडी की तीनों पार्टियों (कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना) के एक-एक उम्मीदवार का जीतना लगभग तय है. छठी सीट के लिए कोई भी पार्टी अकेले अपने उम्मीदवार को नहीं जितवा सकती. ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के शाही परिवार के सदस्य संभाजी राजे (Sambhaji Raje) ने निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ना तय किया और सभी पार्टियों से अपने लिए समर्थन मांगा. ऐसा माना जा रहा था कि महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के परिवार का विरोध करने की कोशिश कोई भी पार्टी नहीं करेगी. इसलिए जिस तरह पिछली बार बीजेपी की मदद से राष्ट्रपति के कैंडिडेट के तौर पर संभाजी राजे राज्यसभा सांसद बनने में कामयाब हुए थे, इस बार भी वे आम सहमति से राज्य सभा के लिए चुन लिए जाएंगे. लेकिन अब महाराष्ट्र की छठी सीट में चुने जाने की राह में संभाजी राजे के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. शिवसेना ने संजय राउत (Sanjay Raut Shiv Sena) के बाद अब दूसरा उम्मीदवार भी उतार दिया है.
शिवसेना ने ना सिर्फ अपना उम्मीदवार उतारा है बल्कि संभाजी राजे के क्षेत्र कोल्हापुर के ही नेता का नाम आगे किया है. अब शिवसेना की ओर से एक के बदले दो (संजय राउत और संजय पवार) उम्मीदवार होंगे. संजय पवार के नाम का खुलासा संजय राउत ने किया है. संजय राउत ने कहा कि संजय पवार की उम्मीदवारी की घोषणा आधिकारिक रूप से सीएम और शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे करेंगे. जब पत्रकारों ने संजय राउत से यह सवाल किया कि शिवसेना का यह फैसला शाही परिवार का एक तरह से अपमान नहीं है? तो संजय राउत ने कहा, 'संभाजी राजे का हम विरोध नहीं कर रहे हैं. हमने उनसे कहा था कि आप निर्दलीय चुनाव लड़ने की बजाए शिवसेना की ओर से उम्मीदवार बनिए. लेकिन संभाजी राजे निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात करते रहे.'
शरद पवार ने जो किया, शिवसेना ने वो नहीं किया- वजह है ये
बता दें कि शरद पवार ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्टी से एक उम्मीदवार खड़ा होगा. उस उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित होने के बाद जो वोट बचेंगे, वे संभाजी राजे के समर्थन में गिरेंगे. लेकिन शिवसेना ने संभाजी राजे का समर्थन ना करने का फैसला किया. राज्यसभा सांसद बनने के लिए 42 वोटों की जरूरत है. महाराष्ट्र का मराठा समाज परंपरागत रूप से शरद पवार का समर्थक रहा है. ऐसे में शाही परिवार के वंशज का समर्थन ना करने की भूल शरद पवार नहीं कर सकते थे. इसलिए उन्होंने संभाजी राजे की उम्मीदवारी का समर्थन किया. लेकिन शिवसेना ने मराठा समाज को नाराज करने का जोखिम मोल ले लिया. ऐसे में मराठा समाज की ओर से शिवसेना के खिलाफ प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं.
मराठा समाज के आक्रोश का सामना कर सकेगी शिवसेना?
मराठा आरक्षण के लिए लगातार आंदोलन करने वाले मराठा क्रांति मोर्चा के नेता विनोद पाटील ने शिवसेना के इस फैसले को खेदजनक बताया है. मराठा युवाओं से संबंधित छावा संगठन के प्रमुख धनंजय जाधव ने चेतावनी के स्वर में कहा है कि शिवसेना को यह खेल महंगा पड़ेगा. मराठा समाज संभाजी राजे के साथ संजय राउत के इस व्यवहार को कभी माफ नहीं करेगा. यानी एक बात साफ है राज्यसभा चुनाव के बाद जो स्थानीय निकायों के चुनाव आने वाले हैं, उनमें मराठा समाज के मतदाता शिवसेना के खिलाफ अपनी नाराजगी खुल कर दिखाने वाले हैं. महाराष्ट्र में मराठा समाज की तादाद करीब 32 फीसदी है.
संभाजी राजे के कथित अपमान का शिवसेना को कितना नुकसान?
शिवसेना का वोट बैंक जातीय आधार पर कभी नहीं रहा. शिवसेना को वोट हिंदुत्व के नाम पर मिलता रहा है. बालासाहेब ठाकरे ने कभी जातीय गणित के आधार पर राजनीति नहीं की. जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और महाराष्ट्र में पहली बार बीजेपी-शिवसेना युति की सरकार बनी थी तो बालासाहेब ठाकरे ने एक ब्राह्मण मनोहर जोशी को महाराष्ट्र का सीएम बनाया था. फिर बाद में एक मराठा नेता नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाया.
इस वजह से ब्राह्मण और मराठा समेत हर जाति से लोग शिवसेना को सिर्फ इसलिए सपोर्ट करते रहे हैं क्योंकि शिवसेना में जाति के आधार पर पक्षपात या भेदभाव कभी नहीं हुआ. लेकिन अब शिवसेना ने छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज संभाजी राजे का समर्थन ना कर के मराठा समाज को नाराज कर दिया है.
मराठा, ब्राह्मण और ओबीसी समाज,शिवसेना के कितने हाथ, कितने साथ?
सोशल बेस कैलकुलेशन में मराठा आम तौर से शरद पवार की एनसीपी के बाद कांग्रेस के समर्थक रहे हैं. ब्राह्मणों की एक बहुत बड़ी तादाद देवेंद्र फडणवीस की वजह से बीजेपी के पक्ष में चली गई है. ओबीसी में बीजेपी के पास पंकजा मुंडे और चंद्रशेखर बावनकुले जैसे चेहरे हैं तो एनसीपी में छगन भुजबल, धनंजय मुंडे जैसे नेता हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले खुद ओबीसी नेता हैं. ऐसे में ओबीसी भी बड़ी तादाद में शिवसेना के हाथ नहीं है, साथ नहीं है. हिंदुत्व के नाम पर जो शिवसेना का वोटबैंक है वो बड़ी तादाद में बीजेपी के साथ है. शिवसेना के मराठी माणूस के नाम पर मिलने वाले वोट पर सेंध लगाने के लिए राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस तैयार बैठी है.
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम महाराष्ट्र और देश के हर समाज के लिए सम्माननीय है. लेकिन शिवसेना के नेतृत्व ने उनके वंशज संभाजी राजे का समर्थन ना करते हुए ना सिर्फ मराठा समाज को नाराज किया है बल्कि महाराष्ट्र के हर समाज से जुड़े कई लोगों को नाराज कर दिया है. इसका अंजाम शिवसेना को आने वाले चुनावों में भुगतना होगा. फिलहाल यह बताना मुश्किल है कि नुकसान कितना होगा.

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

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