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“लोकतंत्र मर रहा है, यह सिर्फ हमारी स्मृतियों में शेष रह गया है...” कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को महंगाई, बेरोजगारी, खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी आदि के विरोध में कांग्रेस द्वारा देशभर में विरोध प्रदर्शन की शुरुआत से पहले प्रेस कांफ्रेंस में इन शब्दों का प्रयोग किया
तसलीम खान @TasleemKhan
"लोकतंत्र मर रहा है, यह सिर्फ हमारी स्मृतियों में शेष रह गया है..." कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को महंगाई, बेरोजगारी, खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी आदि के विरोध में कांग्रेस द्वारा देशभर में विरोध प्रदर्शन की शुरुआत से पहले प्रेस कांफ्रेंस में इन शब्दों का प्रयोग किया।
इसके बाद जब कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे तो नेता, कार्यकर्ता, सांसद, पार्टी पदाधिकारियों आदि ने विरोध के रंग काले कपड़े पहनकर विरोध मार्च शुरु किया। जैसा कि बीते कुछ सालों में परंपरा बन चुकी है, जनहित से जुड़े मुद्दों पर किसी भी किस्म के विरोध के रोकने-दबाने के लिए पुलिस बलों का प्रयोग किया गया और तमाम कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया।
केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली पुलिस को मिली 'शाही' सलाह के बाद लोकतांत्रिक कर्तव्यों का पालन कर सत्ता से सवालों के जवाब मांगने का साहस करने वालों के साथ जो सुलूक किया गया उसकी छवियां दुनिया की लोकतंत्र विरोधी सारी काली स्मृतियों की छाया देश पर डाल रही है। इन छवियों को देख अनायास ही जयशकंर प्रसाद की कविता की पंक्तियां याद आती हैं"
जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति सी छायी है
इस अद्भुत देश के लोकतांत्रिक मानस में स्वतंत्रता संघर्ष की वह तमाम घनीभूत स्मृतियां, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण तरीके से असहमति जताने का चलन महत्वपूर्ण घटक थे, वह पड़ोसी देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर फौजी कहर हो या यूरोप में कोई तीन दशक तक अभिव्यक्ति के दमन की काली छायाओं से घुलमिलकर अब भारत के जनतांत्रिक मानस की एक घनीभूत पीड़ा और भय में परिवर्तित हो गयी है।
ऐसे समय में जब विपक्षी दलों को संसद में सरकार, संसद के बाहर संवैधानिक संस्थान और सड़क पर सत्ता के चरणों में शीश नवाने वाली मीडिया 'ब्लैक आउट' करने पर आमादा हो, तो विरोध का तरीका बदलना आवश्यक हो जाता है। संभवत: इसी विचार से कांग्रेस नेताओं ने शुक्रवार के विरोध प्रदर्शन में काले रंग की पोशाकों का इस्तेमाल किया।
वैसे भी काले रंग में किसी से पक्षपात न करने का गुण होता है। विद्धान बताते हैं कि वातावरण की जो भी नकारात्मकता होती है, काला रंग उसे सोख लेता है और उससे सत्य का प्रकाश निखर कर सामने आता है, क्योंकि वैसे भी 'सत्य को बेरिकेड लगाकर नहीं रोका जा सकता।' काले रंग के इसी गुण के कारण ही हमारी न्यायपालिका के सम्मानीय न्यायाधीश काली पोशाक ही पहनते हैं।
पुराणों की बात करें तो काले रंग की महत्ता तो स्वंय शक्ति की देवी मां काली भी प्रस्तुत करती हैं। मां दुर्गा के 9 रूपों में से सातवां रूप तो देवी कालरात्रि का ही है, जिन्हें हम काली के नाम से पूजते हैं। इनकी शक्ति का अनुमान तो इसी से लगा सकते हैं कि सारे देवता इनके सामने हाथ जोड़े खड़े होते हैं।
विख्यात समाजवादी डॉ राम मनोहर लोहिया का बेहद मशहूर कथन है, 'जब सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद आवारा हो जाती है…' ऐसे में सड़कों की खामोशी को तोड़ने, लोकतांत्रिक मर्यादाओं के हनन से सन्न हुए मानस की जड़ता को हिलाने के लिए और जन विरोधी सत्ता को जनता की आवाज सुनाने के लिए काले रंग के परिधानों में सड़क पर निकलना संविधान सम्मत लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों का पालन ही है।
वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब आंदोलनकारियों या अनशनकारियों ने काले कपड़े पहनकर विरोध जताया हो। रंगकर्मी जब-जब समाज की कुरीतियों या सत्ता द्वारा किए जा रहे जनविरोधी कृत्यों के विरोध में मंच पर उतरते हैं तो प्राय: काले रंग के परिधान ही पहनते हैं। विरोधस्वरूप काली पट्टी बांधने का चलन तो कब से है।
शुक्रवार को काले रंग की पोशाकों में जनशक्ति का आह्वान करने वाली कांग्रेस ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे उन मुद्दों को एक बार फिर फलक पर लिख दिया है जिनसे वर्तमान सत्ता तरह-तरह के बहाने बनाकर मुंह मोड़ती रही है।
नवजीवन
Rani Sahu
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