- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Cabinet Expansion...
सम्पादकीय
Cabinet Expansion 2021: बड़े मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी क्या उनके लिए सजा है या मोदी की दूरगामी नीति का हिस्सा?
Tara Tandi
8 July 2021 1:18 PM GMT
x
नरेन्द्र मोदी सरकार की बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल का विस्तार कल शाम हुआ,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अजय झा| नरेन्द्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) की बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल का विस्तार कल शाम हुआ, जिसमे 43 मंत्रियों ने, जिसमें 15 कैबिनेट स्तर के मंत्री शामिल हैं, मंत्री पद की शपथ ली. मंत्रिमंडल (Cabinet) का सदस्य कौन होगा, यह तय करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है, जिस बारे में कोई सवाल करना अनुचित है. ख़बरों का बाज़ार गर्म है कि मंत्रिमंडल में किसे और क्यों शामिल किया गया, पर उससे ज्यादा दिलचस्प है कि किसकी और क्यों मंत्रिमंडल से छुट्टी हो गयी. ख़बरें थी कि प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi), गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) और बीजेपी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा (JP Nadda) के साथ पिछले कुछ समय से सभी मंत्रियों के कामकाज की गहन समीक्षा कर रहे थे, जिसके बाद ही मंत्रिमंडल के नए स्वरुप पर फैसला लिया गया.
जिन 12 मंत्रियों की छुट्टी हुयी है, उनमें से प्रमुख नाम हैं रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, डॉ हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल और सदानंद गौड़ा. थावर चंद गहलोत को मंगलवार को ही कर्णाटक का नया राज्यपाल बनाया गया था. मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा में जिनका प्रदर्शन फीका था उनके नाम के नीचे लाल स्याही से लकीर खींच दी गयी. तो क्या यह मान लिया जाए कि रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, डॉ हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल और सदानंद गौड़ा के प्रदर्शन से भी मोदी खुश नहीं थे?
सरकार के साथ संगठन भी बदलता है
अटल बिहारी वाजपेयी के समय से बीजेपी में एक परंपरा सी चली आ रही हैं कि मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल के साथ-साथ ही पार्टी के संगठन में भी फेरबदल किया जाता है. कुछ पदाधिकारियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है और कुछ मंत्रियों को संगठन में काम करने के लिए भेजा जाता है. इस बार भी कुछ ऐसा ही होने की संभावना है. संभव है कि अगले एक-दो दिनों में बीजेपी के संगठन में फेरबदल की भी घोषणा भी हो जाये.
बीजेपी के केन्द्रीय पदाधिकारियों की सूची पर अगर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाता है कि वहां ऐसे नेताओं की जिनका नाम और कद बड़ा हो इन दिनों कमी थी. कुछ बड़े नेताओं का नाम राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की सूची में ज़रूर है, पर पार्टी में उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी नगण्य होती है. कुछ बड़े नेताओं को उपाध्यक्ष सिर्फ इसलिए बनाया जाता है ताकि उन्हें यह ना लगे की पार्टी उनकी उपेक्षा कर रही है. बीजेपी के वर्तमान उपाध्यक्षों की सूची में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, डॉ रमण सिंह और रघुबर दास का नाम भी शामिल है. एक ज़माने में बीजेपी के दिग्गज नेताओं का नाम, जिन्हें पूरे देश में जाना जाता था, पार्टी के पदाधिकारियों की सूची में होता था. पर उनमे से अधिकांश अब केन्द्रीय मंत्री थे.
पार्टी के पधाधिकारियों में सिर्फ अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ही ऐसे नाम हैं जिन्हें कद्दावर नेता की संज्ञा दी जा सकती है. अगले साल आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाला है. पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में जहां साल के शुरूआती महीनों में चुनाव होने वाला है, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में साल के अंत में. जम्मू और कश्मीर में भी अगले साल चुनाव होगा. इसमें से पंजाब के सिवाय बाकी के सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार है, और जम्मू और कश्मीर में फिलहाल राष्ट्रपति शासन है. बीजेपी के लिए इन राज्यों में खासकर जहां उसकी अभी सरकारी है, में चुनाव जीतना काफी अहम् है, क्योंकि इन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम का सीधा प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है.
बीजेपी के संगठन में बड़े नेताओं की आवश्यकता
इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी के संगठन में कुछ बड़े नेताओं की सख्त आवश्यकता थी. सवाल है कि रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, डॉ हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल और सदानंद गौड़ा को क्या संगठन में स्थान देने के लिए मंत्री पद की जिम्मेदारियों से मुक्त किया गया है और फिर उनके नाम के नीचे भी कामकाज की समीक्षा में लाल स्याही से लकीर खिंची गयी थी. प्रकाश जावडेकर और रविशंकर प्रसाद पूर्व में बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री का पद संभाल चुके हैं और लगता तो यही है कि कम से कम इन दोनों को मंत्री पद से हटाया नहीं गया है, बल्कि पार्टी में कार्य करने के लिए उन्हें मंत्री पद से मुक्त किया गया है.
जहां कल के मंत्रिमंडल विस्तार में उन राज्यों के नेताओं को जहां अगले वर्ष चुनाव होने वाला है, बड़ी संख्या में शामिल किया गया है, रमेश पोखरियाल की छुट्टी काफी दिलचस्प है. पोखरियाल उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और प्रदेश में आठ महीनो बाद चुनाव होने वाला है. माना कि बीजेपी ने उत्तराखंड में काफी प्रयोग किये, 51 महीनों में राज्य को तीन मुख्यमंत्रियों का तोहफा भी दिया, जिसके कारण प्रदेश में पार्टी की स्थिति डांवाडोल होती दिख रही है, पर इन परिस्थितियों में लगता नहीं है कि बीजेपी उत्तराखंड में आत्महत्या करने की तयारी में है और इसी कारण पोखरियाल की छुट्टी की गयी. चुंकि उत्तराखंड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी युवा और अनुभवहीन हैं, संभव है कि पोखरियाल को अपने गृह राज्य में चुनाव की तैयारी करने और धामी को गाइड करने के लिए मंत्री पद से मुक्त किया गया हो. शायद बीजेपी पोखरियाल को आनेवाले समय में प्रदेश अध्यक्ष या फिर कैंपेन कमिटी का मुखिया बनाये.
रही बात सदानंद गौड़ा की, वह पूर्व में कर्णाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें भी केन्द्रीय मंत्री पद से इस लिए मुक्त किया गया है ताकि वह कर्णाटक में अपनी स्थिति सुदृढ़ करें और जब भी पार्टी वर्तमान मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को त्यागपत्र देने के लिए मानाने में सफल हो जाए तो उनकी जगह सदानंद गौड़ा को फिर से कर्णाटक का मुख्यमंत्री बनाया जाए. सदानंद गौड़ा की मंत्रिमंडल से छुट्टी कहीं न कहीं येदियुरप्पा के लिए एक खतरे की घंटी भी हो सकती है.
कोरोना में हर्षवर्धन के काम से खुश नहीं थे मोदी?
बचे डॉ हर्षवर्धन, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में होगा. अगर उनकी भी दरकार पार्टी को ना हो तो लगता तो यही है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके स्वस्थ्य मंत्री के रूप में कार्य से खुश नहीं थे. हर्षवर्धन पिछले 15 महीनों से करोना से जंग में सरकार के सेनापति थे. संभव है कि कोरोना के दूसरे दौर से लड़ने की अग्रिम तैयारी में हुयी कमी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा हो. अगर उन्हें भी पार्टी के संगठन में कोई पद नहीं दिया जाता तो यह साफ़ हो जाएगा कि मोदी ने मान लिया कि उनकी सरकार से करोना से जंग में कुछ कमी रह गयी. बात फिर घूम कर वहीं आ जाती है कि मंत्रिमंडल में किसे शामिल किया जाता है और किसे निकाला जाता है, यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है. वैसे मोदी के बारे में कहा जाता है कि वह दूर की सोचते हैं, इसलिए पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर और अब 2014 से प्रधानमंत्री के तौर पर इतने लोकप्रिय और सफल रहे हैं. देखना रोचक होगा कि क्या केन्द्रीय मंत्रिमंडल से कुछ बड़े मंत्रियों की छुट्टी भी उनकी दूरगामी नीति का हिस्सा है या फिर अन्य मंत्रियों के नाम संदेश है कि वह नाम में नहीं बल्कि काम में विश्वास रखते हैं. अगर किसी का मंत्री के रूप में कामकाज में कमी पायी गयी तो भविष्य में उन्हें भी ऐसे ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
Next Story