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राजीव मंत्री।
बीते दिनों मास्को सहित रूस के कई शहरों में मेट्रो स्टेशनों से लेकर एटीएम कियोस्क जैसे सार्वजनिक स्थलों पर लोगों की लंबी-लंबी कतारों की फोटो इंटरनेट मीडिया पर वायरल थीं। भीड़ का एक बड़ा कारण यह था कि एपल, गूगल, वीजा, मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और पेपाल जैसी कंपनियों ने रूस में अपना परिचालन बंद कर दिया था। यूक्रेन पर रूसी हमले के विरोध में लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण इन कंपनियों ने यह कदम उठाया था। लोग मेट्रो जैसी सेवाओं के लिए आनलाइन भुगतान के अभ्यस्त हो गए थे, लेकिन एकाएक लगे इस प्रतिबंध ने उन्हें नकदी का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया। इसी कारण मेट्रो स्टेशनों पर लंबी कतार लग गईं। तमाम अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान के लिए बढ़ी नकदी की जरूरत से एटीएम कियोस्क के बाहर भी लोग कतारबद्ध दिखे। इसमें कोई संदेह नहीं कि भुगतान नेटवर्क से जुड़ी पश्चिमी कंपनियों ने अपनी इन सेवाओं को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रूस में वित्तीय लेनदेन पर आघात किया है। इस परिदृश्य ने एक नई बहस छेड़ दी है कि पश्चिमी संस्थाओं पर पूरी तरह निर्भरता अपनी वित्तीय संप्रभुता के लिए कितनी घातक है? यदि भारत के समक्ष ऐसी स्थितियां उत्पन्न हुईं तो उस स्थिति में क्या होगा? शुक्र है कि भारत के संदर्भ में इसका जवाब वैसा नहीं होगा जैसा रूस के मामले में देखने को मिला। इसका श्रेय जाता है भारत सरकार की दूरदर्शी नीतियों को, जिसने समय से रुपे कार्ड और यूपीआइ जैसी भुगतान प्रणालियों को न केवल अपनाया, बल्कि उन्हें आवश्यक प्रोत्साहन भी प्रदान किया। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम यानी एनपीसीआइ की यह दोहरी पेशकश ऐसे किसी भी संकट में भारत के लिए वरदान सिद्ध होगी।