सम्पादकीय

भाई साहब और तीसरी लहर

Rani Sahu
28 Dec 2021 7:03 PM GMT
भाई साहब और तीसरी लहर
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जबसे मैं भाई साहब के सान्निध्य में आया हूं या कि मुझे भाई साहब का सान्निध्य मिला है

जबसे मैं भाई साहब के सान्निध्य में आया हूं या कि मुझे भाई साहब का सान्निध्य मिला है वे अपने को छोड़, मेरे बारे में इतने चिंतित रहते हैं कि मुझे भी अब अपने बारे में सोचने को विवश होना पड़ रहा है। वे मेरे शुभचिंतक होते होते बहुधा इतने चिंतक हो जाते हैं कि वे अपने हित में चिंतन करना तक भूल जाते हैं। जबसे समाज में कोरोना आया है भाई साहब मुझसे बहुधा ऑनलाइन ही मिलते हैं वीडियो कॉलिंग के थू्र कदम कदम पर मुझे कोरोना से बचने के लिए गाइड करते। ऑफलाइन तो इन दिनों उन्होंने अपने से मिलना भी बंद कर रखा है। अब तो उनसे हाथ मिलाने को मेरे हाथों में खुजली होकर अपने आप ही ठीक हो गई है। भाई साहब के कोरोना प्रीकॉशन को लेकर मुहल्ले में हल्ला तो यहां तक है कि जबसे कोरोना आया है, तबसे भाई साहब अपनी बीवी जी से बोले तो अपुन की भाभी तक से भी ऑफलाइन नहीं मिल रहे। उनसे भी ऑनलाइन ही मिल रहे हैं। वैसे भी बीवी से ऑफलाइन मिलने के बहुत खतरे होते हैं।

पर मेरे से भी भाई साहब ऑनलाइन मिलना मेरी समझ से बाहर है जबकि मैं पड़ोसी के हिस्से की भी डोज हजम कर चुका हूं। कल सुबह फिर भाई साहब की वीडियो कॉल आई, 'और क्या कर रहे हो?' वे वीडियो कॉल भी करते रहे और अपनी मूंछें भी ठीक करते रहे। 'कुछ खास नहीं। पिछले कल डिनर कुछ कम पड़ गया था, सो सुबह सुबह ही लंच पर उतर आया हूं', मैंने चपाती में दाल भर उनकी ओर लहरा अपने मुंह में डाली तो वे अपनी मूंछें ठीक करते करते ही कुछ देर अपने होंठों पर जीभ फेरने के बाद बोले, 'तो अब आगे का क्या प्लान है?' 'सोच रहा हूं आज ऑफिस को लंच न ले जाऊं', मैंने अपना आगे का प्लान बताया तो वे गुस्साते बोले, 'यार! कभी पेट से बाहर भी निकला कर! जब देखो तब, बस, पेट! पेट! पेट! अपना पेट भर के किसी को स्वर्ग नहीं मिला है आज तक। दूसरों का पेट भरो तो स्वर्ग मिले।
सुना क्या तुमने कि कोरोना की तीसरी लहर कभी भी अवश्यंभावी है, मृत्यु अवश्यंभावी हो या न! इसलिए मैं तो तुम्हें बस सारी सलाहें छोड़ यही नेक सलाह देता हूं कि प्यारे! अभी से तैयारी शुरू कर दो कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की। फिर बाद में मुझे दोष मत देना कि मैंने तुम्हें वक्त से पहले सचेत नहीं किया था। सच कहूं दोस्त! जबसे तुम्हें अपना दोस्त बनाया है तबसे मुझे अपनी उतनी चिंता नहीं होती जितनी तुम्हारी रहती है। सरकार ने तो अभी से कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने को कमर कसनी शुरू भी कर दी है।' 'आप भाई साहब मेरी कतई टैंशन मत लो ! मेरे पास ऑलरेडी दस बीस मास्क हैं। सैनिटाइजर भी ऑफिस से लाया साल भर का मजे से है', मैंने आधी चपाती एक ही ग्रास में मुंह में ठूंसी तो वे हैरान परेशान, 'यार! इतना बड़ा मुंह कैसे खोल लेते हो?' 'ये तो निरंतर अभ्यास से ही होता है भाई साहब! कहा है न…करत करत अभ्यास के…'। 'मास्क सैनिटाइजर को मारो गोली! नेक सलाह दे रहा हूं। अभी से कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के लिए दाल, चावल, आटा, नमक, मसाले जमा करने शुरू कर दो। कल को कुछ भी हो सकता है। अभी तो नाइट कर्फ्यू ही चल रहा है। कल को जो सुबह का, दोपहर का भी कर्फ्यू लग गया तो…। मैंने तो थोड़ा थोड़ा सब इकट्ठा करना भरना शुरू कर दिया है। विश्वास नहीं होता तो ये देखो', उन्होंने अपने फोन का कैमरा अपने पूजा वाले कमरे में घुमाया तो मैं दंग रह गया। आधा कमरा राशन से भर चुका था। चीनी के बैग के पीछे गणेश जी आधे छुप चुके थे।
अशोक गौतम
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