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- भाई साहब और तीसरी लहर
जबसे मैं भाई साहब के सान्निध्य में आया हूं या कि मुझे भाई साहब का सान्निध्य मिला है वे अपने को छोड़, मेरे बारे में इतने चिंतित रहते हैं कि मुझे भी अब अपने बारे में सोचने को विवश होना पड़ रहा है। वे मेरे शुभचिंतक होते होते बहुधा इतने चिंतक हो जाते हैं कि वे अपने हित में चिंतन करना तक भूल जाते हैं। जबसे समाज में कोरोना आया है भाई साहब मुझसे बहुधा ऑनलाइन ही मिलते हैं वीडियो कॉलिंग के थू्र कदम कदम पर मुझे कोरोना से बचने के लिए गाइड करते। ऑफलाइन तो इन दिनों उन्होंने अपने से मिलना भी बंद कर रखा है। अब तो उनसे हाथ मिलाने को मेरे हाथों में खुजली होकर अपने आप ही ठीक हो गई है। भाई साहब के कोरोना प्रीकॉशन को लेकर मुहल्ले में हल्ला तो यहां तक है कि जबसे कोरोना आया है, तबसे भाई साहब अपनी बीवी जी से बोले तो अपुन की भाभी तक से भी ऑफलाइन नहीं मिल रहे। उनसे भी ऑनलाइन ही मिल रहे हैं। वैसे भी बीवी से ऑफलाइन मिलने के बहुत खतरे होते हैं।