सम्पादकीय

कोविड नसीहतों का पिटारा

Rani Sahu
6 Jan 2022 7:11 PM GMT
कोविड नसीहतों का पिटारा
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बंदिशों की ओर बढ़ने की अगली कवायद में हिमाचल ने भी अपनी रात को ताला लगा दिया

अंततः बंदिशों की ओर बढ़ने की अगली कवायद में हिमाचल ने भी अपनी रात को ताला लगा दिया। रात्रि दस बजे से सुबह पांच बजे तक कड़कड़ाती ठंड के बीच केवल कर्फ्यू सतर्क रहेगा, जबकि मौसम की बेरुखी और ओमिक्रॉन के खतरे में वायरस का भय हमारे सामने चौबीस घंटे मौजूद है। पिछले पांच दिनों में कोरोना पॉजिटिव के आठ सौ मामलों ने रफ्तार बढ़ाते हुए जिंदगी के विराम फिर से लिखने शुरू किए हैं। हिमाचल के माथे पर टंगा कोरोना का खतरा अगर 1216 मामलों की गिरफ्त में आशंकाएं बढ़ा रहा है, तो सरकार की पायदान पर चढ़ते कदमों की निगहबानी जरूरी। 'नाईट कर्फ्यू' का आंशिक प्रभाव न भी हो, लेकिन इसका सांकेतिक महत्त्व सचेत करता है। यह उसी परिपाटी को याद करने का पहला आदेश है जो बाजारों व सार्वजनिक स्थलों पर चहकते-महकते माहौल पर अंकुश लगाना चाहता है या जनता खुद ही उसी जीवन में लौट जाए जो पिछले दो साल की कोविड नसीहतों में हर पल को सुरक्षित करती चेतावनी भी है।

हिमाचल मंत्रिमंडल ने 'नाईट कर्फ्यू' के साथ-साथ दिन के बड़े आयोजनों, सिनेमा गतिविधियों और स्टेडियम में खेलते मंजर पर शर्तें लागू कर दी हैं। इसका अर्थ यह है कि मंडी रैली, क्रिसमस और उसके बाद उत्साही माहौल पर ब्रेक लगा कर सरकार इस साधना में चली गई है कि अब कोरोना कहीं फिर असाध्य परिस्थितियां पैदा न करे। हालांकि कोविड नसीहतों ने पाले नहीं बदले, लेकिन सियासी पिटारे जिस तरह इस साल के चुनावी मंजर को उठाना चाहते हैं, उस फितरत में कोरोना को मुड़-मुड़ देखने का अवसर मिलता है। सामाजिक तौर पर व्यावहारिक निरंकुशता का आलम यह है कि बाजार की रौनक में मास्क गायब है, तो हिलोरें लेती मानवीय गतिविधियां अपने आसमान को छूते हुए यह भूल रही हैं कि कोरोना ने हमारे अपने रिश्तों को कितना लील दिया है। बहरहाल मंत्रिमंडल ने सांकेतिक भाषा में ही सही, कोरोना के बाहुपाश में होने की खबर जरूर दी है। इस इत्तला को समझ लें या नजरअंदाज करके पिछले दौर में पहुंच जाएं, यह हम पर निर्भर करता है।
सरकार के अन्य फैसलों की फेहरिस्त में राजनीतिक इश्क की दुकान लगी है। इसीलिए फैसलों की इबादत में प्रदेश का मानचित्र इंगित कर रहा है कि अधिकांश निर्णय किसकी और किस क्षेत्र की परिक्रमा कर रहे हैं। एक साथ 23 नए स्वास्थ्य केंद्र खोलने या इन्हें स्तोरन्नत करने, ग्राम पंचायतों की नई रूपरेखा, बागबानी के मंसूबों में रेखांकित नए सफर और मनाली अस्पताल के सौ बिस्तर तक पहुंचाने की कवायदों में एक ताना-बाना है। जलवाहकों के लिए नियमित होने का शगुन और अलग-अलग श्रेणियों में नियुक्तियों का जाल मनमोहन का खेल दिखा रहा है। यह दीगर है कि पौराणिक कथाओं में महाभारत तक के महाकाव्य को ढूंढते मंत्रिमंडल ने सरस्वती नदी के अदृश्य संदर्भों का पुनर्लेखन शुरू किया है। कुछ और बांध हिमाचल के सीने पर विकास की पगड़ी रखेंगे और तब हम सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने की अदाओं में 'गंगा स्नान' कर लेंगे। आश्चर्य यह कि कुल्लू के पागल नाला, धर्मपुर की सोन व सीर खड्ड या कांगड़ा की मांझी, मनूणी व बिनवा जैसी घातक खड्डों को फ्लडजोन बनने से पहले शांत करने या अवैध खनन से रौद्र होती स्वां, दूसरी नदियां व खड्डों को वैज्ञानिक तर्ज पर साधने के बजाय हमें सरस्वती नदी का पाठ करना है। बांधों से विस्थापन का दर्द आज भी पौंग, भाखड़ा व अन्य जलाशयों के अस्तित्व से बंधा है, मगर हम राजनीति को सींचने के लिए प्रदेश का मर्ज भूल रहे हैं। बेशक सड़क व अन्य अधोसंरचना विकास निगम को पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में चमकाया जा रहा है, लेकिन जिन नीतियों की प्रतीक्षा में चार साल गुजर गए, वहां खेल नीति पर छाया सन्नाटा संशय जरूर पैदा करता है। इससे पहले स्थानांतरण नीति के ढोल भी कुछ यूं ही फटे थे।

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