सम्पादकीय

बूस्टर डोज़ का वक्त

Rani Sahu
5 Dec 2021 6:57 PM GMT
बूस्टर डोज़ का वक्त
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भारत में कोरोना वायरस के नए स्वरूप ‘ओमिक्रॉन’ का प्रभाव दिसंबर अंत तक सामने आ सकता है

भारत में कोरोना वायरस के नए स्वरूप 'ओमिक्रॉन' का प्रभाव दिसंबर अंत तक सामने आ सकता है। यह प्रभाव तीसरी लहर में भी बदल सकता है। जनवरी, 2022 के आखिर या फरवरी की शुरुआत में तीसरी लहर को महसूस किया जा सकता है। अलबत्ता इसके दूसरी लहर की तरह घातक और जानलेवा होने के आसार नहीं हैं। संक्रमण जरूर फैल सकता है और संभावित तीसरी लहर के 'पीक' के दौरान एक-डेढ़ लाख मामले भी हररोज़ सामने आ सकते हैं, लेकिन मृत्यु-दर सामान्य ही रहेगी। यह आकलन कानपुर आईआईटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक पद्मश्री प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल का है। उन्होंने गणितीय मॉडल सूत्र के आधार पर यह आकलन किया है। दूसरी लहर में भी प्रोफेसर अग्रवाल के आकलन एक हद तक सटीक साबित हुए थे। हालांकि भारत में नए वेरिएंट 'ओमिक्रॉन' का असर बेहद सीमित है। विदेशों से आने वाले यात्रियों के जरिए ही इसके कुछ केस भारत में देखे गए हैं। कर्नाटक में जो 46 वर्षीय स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित पाया गया था, वह अब पूरी तरह स्वस्थ है। उन्हें सांस लेने में कोई कठिनाई या अन्य खतरनाक लक्षण आए ही नहीं। वह आज बैडमिंटन खेल रहे हैं।

गुजरात और मुंबई में भी 'ओमिक्रॉन' के दो संक्रमित मामलों की पुष्टि हुई है। शनिवार, 4 दिसंबर तक देश भर में कोरोना के संक्रमित मामले 8603 ही दर्ज किए गए हैं। मई '21 में दूसरी लहर के 'पीक' के बाद संक्रमण के आंकड़े लगातार घटते रहे हैं। बीते कई सप्ताह से तो संक्रमित मामलों की संख्या 10,000 से कम रही है। फिलहाल यह बेहद सामान्य स्थिति है। हालांकि लद्दाख, उप्र, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, पुड्डुचेरी, केरल आदि राज्यों और संघशासित क्षेत्रों के 18 जिलों में संक्रमण कुछ बढ़ता दिखाई दिया है, लिहाजा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन्हें चेतावनी-पत्र लिखा है और दिशा-निर्देशों का पालन करने को आदेश दिया है। केरल अब भी नाज़ुक संकट बना हुआ है। संक्रमण के 50 फीसदी से ज्यादा मामले केरल से ही आ रहे हैं। इन तमाम परिस्थितियों के मद्देनजर सॉर्स-कोव-2 जीनोमिक्स कन्सोर्टियम (इन्साकॉग) के शीर्ष वैज्ञानिकों ने भारत सरकार से अनुशंसा की है कि भारत में भी 40 साल की उम्र से ऊपर वालों को 'बूस्टर डोज़' देने की शुरुआत की जाए। बेशक देश में कोरोना टीके की दूसरी खुराक करीब 47 करोड़, यानी 36 फीसदी से कुछ ज्यादा आबादी को, दी गई है।
वयस्क आबादी को दूसरी खुराक के साथ-साथ 'बूस्टर डोज़' भी दी जा सकती है, क्योंकि टीकों का भंडार और उत्पादन पर्याप्त संख्या में जारी है। यह डोज़ इसलिए देना जरूरी हो गया है, ताकि 'ओमिक्रॉन' के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडी बन सकें। डॉ. नरेश त्रेहन सरीखे विशेषज्ञ डॉक्टरों ने भी 'बूस्टर डोज़' लगाने का आग्रह किया है। कई डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी ऐसे हैं, जिन्हें फरवरी-मार्च, '21 में ही दोनों खुराकें दी जा चुकी थीं। उनमें या तो एंटीबॉडी समापन के दौर में हैं अथवा इम्युनिटी का संकट हो सकता है। चूंकि कोरोना-काल में ये वर्ग अग्रिम मोर्चे पर योद्धा की तरह लड़ते रहे हैं, लिहाजा उन्हें 'बूस्टर डोज़' के जरिए सुरक्षा-कवच प्रदान करना अपरिहार्य है। देश में जिन्होंने कोरोना टीके की कोई भी खुराक नहीं ली है, उनकी संख्या 15 करोड़ है। टीकाकरण के मौजूदा चरण में वयस्क आबादी के लिए करीब 63 करोड़ खुराक की जरूरत है। राज्यों के पास भी करीब 22 करोड़ खुराक रखी हैं। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने संसद को बताया है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक करीब 30 करोड़ खुराकें प्रति माह उत्पादित कर लेते हैं। सीरम के सीईओ अदर पूनावाला ने भी पुष्टि की है कि टीकों का उत्पादन 35 फीसदी बढ़ा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जिन्होंने 6 महीने पहले टीके की दूसरी खुराक ले ली है, अब उन्हें 'बूस्टर डोज़' दी जा सकती है। ऐसे लोगों का आंकड़ा 4.50 करोड़ के आसपास है। 'बूस्टर डोज़' का प्रयोग अमरीका और ब्रिटेन सरीखे देशों में शुरू किया जा चुका है। वहां जांच और शोध के निष्कर्ष हैं कि विभिन्न टीकों को मिलाकर बनाई जाने वाली बूस्टर डोज़ काफी असरदार साबित हो सकती है। केंद्रीय मंत्री ने फिलहाल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अंतिम निर्णय और सलाह पर इस मुद्दे को छोड़ दिया है। अनुशंसा को गंभीरता से ग्रहण करना चाहिए।
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