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कवि, कथाकार व संपादक अशोक जैन की ‘ज़िंदा मैं’ नाम से चुनिंदा लघुकथाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ है
कवि, कथाकार व संपादक अशोक जैन की 'ज़िंदा मैं' नाम से चुनिंदा लघुकथाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की अनेक लघुकथाएं प्रकाशित होकर चर्चित हो चुकी हैं। 'ज़िंदा मैं' अशोक जैन की प्रतिनिधि, प्रतिरोधमूलक लघुकथा है, जिसमें बड़े भाई द्वारा की गई फज़ीहत का, छोटे भाई द्वारा किया गया प्रतीकात्मक विरोध पाठक की स्मृतियों में स्थान बना लेता है। लघुकथाओं में संकेतों और प्रतीकों का सहज प्रयोग रचना-प्रवाह को कहीं शिथिल नहीं होने देता। लंबी प्रतीक्षा के बाद आया अशोक जैन का यह लघुकथा संग्रह अपनी वस्तु और प्रस्तुति, दोनों दृष्टियों से पाठकों का कंठहार बनेगा, ऐसी उम्मीद है। अमोघ प्रकाशन, गुरुग्राम से प्रकाशित इस लघुकथा संग्रह का मूल्य केवल 80 रुपए है।
इस संग्रह में कुल 41 लघुकथाएं संकलित हैं। ज़िंदा मैं, डर, मुक्ति मार्ग, गिरगिट, बुखार, बंटवारा, अपने-अपने स्वार्थ, मजे, पोस्टर, बूढ़ा बरगद, टूटने के बाद, आर-पार, …और उसने कहा, खाली पेट, अपराध बोध, खुसर-पुसर, पैंतरे, झुग्गियों की आग, जेबकतरा, दाना-पानी, अकेलापन, मौकापरस्त, प्राइवेसी, संकल्प, माहौल, मुआवजा, बोध, चेतना, मिसाल, गुहार, अपने-अपने दुख, समाधान और आत्म-निर्णय शीर्षक से संकलित लघुकथाएं पाठकों को रोचक लगेंगी, ऐसी आशा है। अधिकतर लघुकथाएं आकार में छोटी हैं, जो सरपट अपने लक्ष्य की ओर दौड़ती प्रतीत होती हैं। पाठक सरल भाषा में लिखी गई इन लघुकथाओं को अंत तक पढ़ना चाहेगा। यह लघुकथा संग्रह संग्रहणीय है।
Divyahimachal
Rani Sahu
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