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अग्निपथ स्कीम के खिलाफ सड़कों पर गुस्से से उबल पड़े नौजवानों पर न जातिवाद का असर है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
अग्निपथ स्कीम के खिलाफ सड़कों पर गुस्से से उबल पड़े नौजवानों पर न जातिवाद का असर है, न ही सामुदायिक या धार्मिक पहचान का. उनकी तो रोजगार की उम्मीद टूट गई है. वे यह सुनने के लिए तैयार नहीं हैं कि सेना को आधुनिकीकरण की जरूरत है, और इसलिए वह पेंशन पर किया जाने वाला खर्च कम करना चाहती है. अग्निपथ स्कीम इसलिए तैयार की गई है कि पेंशन को समाप्त या बहुत कम किया जा सके.
इससे जो पैसा बचेगा, वह नई प्रतिरक्षा टेक्नोलॉजी में लगाया जाएगा. लेकिन सरकार ऐसा करने के लिए बहुत पहले एक टेक्नोलॉजी फंड भी तो बना सकती थी. सरकार ने ऐसा नहीं किया, और एक बहुत बड़ी सामाजिक बेचैनी को जन्म दे दिया.
इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने भारतीय लोकतंत्र को एक टिकाऊ राजनीतिक स्थिरता प्रदान की है. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह राजनीतिक स्थिरता लगातार जारी सामाजिक उथल-पुथल की चुनौतियों का सामना कर रही है. अतिशयोक्ति का खतरा उठाकर यह भी कहा जा सकता है कि यह राजनीतिक स्थिरता दरअसल सामाजिक अस्थिरता से आक्रांत है.
खास बात यह है कि जो सामाजिक बेचैनियां लगातार देखी जा रही हैं, उनका किरदार जाति-युद्ध या वर्ण-युद्ध का नहीं है. यानी, वे परंपरा की देन नहीं हैं. वे आधुनिकता की ही नहीं, बल्कि भूमंडलीकृत आधुनिकता की देन हैं. उनका जन्म भूमंडलीकरण के गर्भ से उपजी आर्थिक नीतियों की विफलता से हुआ है.
राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक अस्थिरता के समीकरण से निकले दुष्प्रभावों का आलम यह है कि प्रकटत: अच्छे इरादे से बनाई गई योजनाएं भी हिंसक और उत्पाती सामाजिक असंतोषों को जन्म दे रही हैं. सेना के आधुनिकीकरण के लिए घोषित अग्निपथ योजना की प्रतिक्रिया में चल रही हिंसा और आगजनी इसका प्रमाण है.
सवाल पूछा जा सकता है कि क्या अग्निपथ योजना के खिलाफ बेरोजगार युवकों-छात्रों का गुस्सा जायज है? जाहिर है कि किसी भी किस्म की हिंसक कार्रवाई को जायज नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन, यह भी देखना होगा कि युवकों-छात्रों को यह कदम क्यों उठाना पड़ा. आंदोलनरत युवकों का हिंसा और आगजनी का कोई इतिहास नहीं है. वे तो पिछले कई सालों से फौज में भर्ती होने का मंसूबा बांधे हुए थे. अचानक उनमें से कई को पता चला कि नई स्कीम के हिसाब से वे भर्ती की आयु-सीमा पार कर चुके हैं.
सबसे बड़ी बात यह थी कि सत्रह साल का युवक यह कल्पना करने पर विवश हो गया कि वह इक्कीस साल की उम्र में रिटायर जाएगा. आजकल फौज का जवान सत्रह साल काम करके रिटायर होता है. लेकिन उसे आजीवन पेंशन मिलती है. पेंशन के दम पर वह विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में भी गुजर-बसर कर लेता है.
जिन्हें अग्निवीर कहा जा रहा है, उन जवानों को एकमुश्त तकरीबन 11 लाख रुपए की रकम मिलेगी, और उसके बाद वे सड़क पर आ जाएंगे. सोचने की बात है कि हथियार चलाने में, मोर्चाबंदी करने में, अनुशासित तरीके से कोई भी काम करने में एक हद तक प्रशिक्षण पाने के बाद महज 21-22 साल में रिटायर हुआ युवक जब बेरोजगारों की कतार में खड़ा होगा तो उसके क्या परिणाम होंगे, इसका अंदाज लगाने में सरकार के समर्थक भी नाकाम हैं और आलोचक भी.
अगर ऐसा नौजवान राजनीतिक आंदोलन में कूदा, और उसकी पुलिस से टक्कर हुई तो उसका परिणाम क्या होगा? सुरक्षा विशेषज्ञ कर्नल दानवीर सिंह के शब्दों में कहें तो यह युवक पुलिस को चांटे मार-मार कर उनकी राइफलें छीन लेगा. कर्नल दानवीर आगे कहते हैं कि जो पुलिसवाले पत्थरबाजों को काबू में नहीं कर सकते, वे इस प्रशिक्षित ताजादम युवक से कैसे निबटेंगे.
क्या राहुल गांधी को सरकारी एजेंसियों से बचाने के लिए आक्रामक आंदोलन करने वाली कांग्रेस अग्निपथ योजना से नाराज युवकों के आंदोलन को राजनीतिक दिशा देने को तैयार है? क्या उसके पास ऐसा रणनीतिक और सांगठनिक माद्दा है? इन सवालों के जवाब कांग्रेस के प्रवक्ताओं को देने चाहिए.
Rani Sahu
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