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मुंबई में इमारतें ढहना तथा लोगों का बड़ी संख्या में जान गंवाना राज्य तथा स्थानीय प्रशासन के लिए लगता है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
मुंबई में इमारतें ढहना तथा लोगों का बड़ी संख्या में जान गंवाना राज्य तथा स्थानीय प्रशासन के लिए लगता है एक सामान्य घटना हो गई है। मुंबई ही क्यों महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में भी हालात अच्छे नहीं हैं। प्रशासन को बस हादसों का इंतजार रहता है। साल-दर-साल होने वाले इमारती हादसों से कोई सबक सीखना नहीं चाहता और न ही इसके लिए प्रशासन में किसी की जवाबदेही तय होती है।
मुंबई के कुर्ला इलाके में मंगलवार को नाईक नगर सोसायटी में एक आवासीय इमारत की एक विंग ढह गई। इसमें अब तक 19 लोगों की जान जा चुकी है और मलबा साफ करते-करते यह तादाद बढ़ सकती है। देश में 2017 से 2021 तक इमारतें ढहने के 1161 बड़े हादसे हुए हैं जिनमें 1200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। जहां तक मुंबई का सवाल है, तो बृहन्मुंबई महानगरपालिका के आंकड़े बताते हैं कि देश की व्यावसायिक राजधानी में 2018 से 2021 के बीच इमारतें या मकान ढह जाने की छोटी-बड़ी 1810 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 99 लोगों की मौत हुई और 376 जख्मी हुए।
मुंबई अकेला ऐसा शहर नहीं है, जहां इमारतें गिरने की घटनाएं होती हों। 25 अगस्त 2020 को रायगढ़ में पांच मंजिला इमारत ढहने से 2016 लोग मारे गए थे। चार फरवरी को पुणे में एक निर्माणाधीन मॉल ढह गया और पांच गरीब मजदूरों की जान चली गई। हाल के दशकों में मुंबई में सबसे भयावह हादसा 27 सितंबर 2013 को मझगांव में हुआ था। यहां पांच मंजिला इमारत ढहने से 61 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
इमारतें गिरने की सबस ज्यादा घटनाएं मुंबई में होती हैं। मुंबई पर आबादी का बोझ क्षमता से कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। इतनी विशाल आबादी के लिए नियमों को ताक पर रखकर अंधाधुंध निर्माण कार्य पहले भी हुए और अब भी हो रहे हैं। निर्माण कार्यों का स्तर अक्सर घटिया होता है। कम से कम जगह में अधिक से अधिक निर्माण कार्य खतरनाक होते हैं। मगर मुंबई में रोकने वाला कोई नहीं है। अन्य शहरों में स्थिति कुछ बेहतर कही जा सकती है।
इमारतों या घर के निर्माण के लिए राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों में कायदे-कानूनों की कमी नहीं है, मगर उनका पालन नहीं किया जाता। इमारत की मजबूती तथा गुणवत्ता को परखे बिना ही प्रशासन उसे रहने योग्य करार देता है। जजर्र इमारतों तथा अवैध निर्माण को ढहा देने के बजाय नोटिस देकर प्रशासन अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है।
कुर्ला में मंगलवार को जो इमारत गिरी, वह जर्जर थी। रहने योग्य नहीं थी। हादसे के प्रति महानगरपालिका प्रशासन का रवैया न केवल अमानवीय बल्कि अफसोसजनक भी है। बृहन्मुंबई मनपा अधिकारियों ने यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि संबंधित इमारत में रहने वाले फ्लैट मालिकों को 2013 से लगातार नोटिस भेजे जा रहे थे मगर वह घर खाली करने को तैयार नहीं थे तथा अपने जोखिम पर उस इमारत में रह रहे थे
दूसरे शब्दों में मनपा ने इमारत के लोगों को बेमौत मरने के लिए छोड़ दिया। जब प्रशासन को मालूम था कि इमारत रहने के लिए सुरक्षित नहीं है, तब कानूनी अधिकारों का उपयोग करते हुए उन्हें खाली क्यों नहीं करवाया गया?
मुंबई में 14 हजार इमारतें पचास से सौ साल पुरानी हैं। हर वर्ष एक-दो इमारतें ढहती हैं। लोग जान गंवाते हैं। लेकिन इन भवनों को न तो ढहाया जाता है और न ही खाली करवाने की कोशिश होती है। ताजा दुर्घटना ने भवन निर्माण तथा उनकी देखरेख संबंधी कायदों को नए सिरे से बनाने की आवश्यकता पुन: जता दी है। पुरानी इमारतों तथा नए निर्माण को लेकर कानून इतना सख्त होना चाहिए कि कुर्ला जैसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
Rani Sahu
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