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श्रीकांत त्यागी प्रकरण में पुलिस-प्रशासन और मीडिया की आक्रामक सक्रियता के नुकसान भी सामने आ रहे हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
सामान्य तौर पर इसको सही ठहराना कठिन है कि जिस व्यक्ति को पुलिस प्रशासन और मीडिया अपराधी घोषित कर चुका, भारी संख्या में समाज के प्रतिष्ठित लोग उसके समर्थन में सड़कों पर प्रदर्शन करें. जिस समय पुलिस श्रीकांत त्यागी के पीछे पड़ी थी, उस पर इनाम घोषित किया जा रहा था, उस समय यह कल्पना कठिन थी. आज स्थिति बदल चुकी है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिलों में श्रीकांत त्यागी के समर्थन में लोग सामने आ रहे हैं.
कुछ लोगों का आरोप है कि त्यागी होने के कारण उसके समाज के लोग अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पुलिस प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार को दबाव में लाने की कोशिश कर रहे हैं. जरा दूसरी ओर देखिये. गौतमबुद्ध नगर यानी नोएडा के भाजपा के सांसद डॉ. महेश शर्मा का पूरा तेवर बदल गया है. पहले वे कैमरे के सामने श्रीकांत त्यागी के विरुद्ध पुलिस अधिकारियों को डांट लगाते देखे जा रहे थे. आज अपने विरुद्ध जनता के गुस्से को देखते हुए क्षमा याचना की मुद्रा में हैं.
श्रीकांत त्यागी के घर पर आने के कारण गिरफ्तार नौजवानों के जमानत होने की सूचना वे स्वयं उसके करीबियों को दे रहे हैं और वायरल ऑडियो क्लिप बता रहा है कि उनकी आवाज में नमनीयता है जबकि सामने वाला बता रहा है कि किस तरह उनकी भूमिका राजनीतिक तौर पर महंगी पड़ने वाली है. जाहिर है, सांसद का तेवर अनायास नहीं बदला है. पुलिस प्रशासन का भी पहले की तरह बयान नहीं सुनेंगे. कुछ सुनाई पड़ रहा है तो यही कि श्रीकांत त्यागी और उसके परिवार के साथ ज्यादती हुई है.
श्रीकांत की गिरफ्तारी के पूर्व तक दिन-रात सुर्खियां देने वाले चैनल भी शांत हैं. तो पूरी स्थिति को कैसे देखा जाए? एक प्रकरण, जो राष्ट्रीय मुद्दा बन गया था उसका यह असर हमें कई पहलुओं पर विचार करने को बाध्य करता है.
वास्तव में श्रीकांत त्यागी प्रकरण में स्थानीय सांसद, पुलिस प्रशासन और मीडिया की आक्रामक सक्रियता किसी विवेकशील व्यक्ति के गले नहीं उतर रही थी. श्रीकांत एक महिला को भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए वीडियो में देखा जा रहा है. इस तरह की भाषा का प्रयोग शर्मनाक है, निंदनीय है. इसे आप अस्वीकार्य सामाजिक अपराध कह सकते हैं. किंतु भारतीय दंड संहिता में यह जघन्य या गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं आता. जिसका जितना अपराध हो उसी अनुसार उसका चित्रण होना चाहिए तथा पुलिस को भी कानून के अनुसार भूमिका निभानी चाहिए.
हमारे देश की समस्या यह हो गई है कि जब भी किसी की सनसनाहट भरी गतिविधि वीडियो या ऑडियो में सामने आती है उसे महाखलनायक बना दिया जाता है और पुलिस, प्रशासन, मीडिया पीछे पड़ जाती है. श्रीकांत प्रकरण में यही हुआ. इसके पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब एक महिला के साथ अभद्र गाली - गलौज के आरोपी पर हफ्ते भर के अंदर 25 हजार का इनाम रख दिया गया हो, संपत्ति की छानबीन आरंभ हो गई हो, पत्नी-बच्चे को उठाकर थाने में 6 घंटे पूछताछ की गई हो.
इसमें घर की बिजली, पानी और गैस तक के कनेक्शन काट देने का भी यह पहला ही मामला होगा. जो लोग यह जानकर कि उसके परिवार में खाने-पीने की व्यवस्था नहीं है मदद करने पहुंचे, उनको भी अपराधी बनाकर जेल में डाल दिया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार कानून का शासन स्थापित करने वाली सरकार मानी जाती है. श्रीकांत त्यागी प्रकरण में उत्तर प्रदेश पुलिस - प्रशासन कानून का शासन स्थापित करने वाले वाली व्यवस्था की भूमिका में थे या कानून के भयानक दुरुपयोग की?
सच यह है कि स्थानीय सांसद अगर अति सक्रियता न दिखाते तो मामला जितने अपराध का था वहीं तक सीमित रहता. महिला थाने में एफआईआर दायर करती, मामला न्यायालय में जाता और न्यायालय साक्ष्य के आधार पर फैसला करता. संभव था सुलह भी हो जाती.
इस कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि श्रीकांत त्यागी की तुलना विकास दुबे से लेकर आनंदपाल सिंह तक से की जाने लगी. यह स्थिति कई मायनों में डराती है. हम सब मनुष्य हैं और हमसे गलतियां होती हैं. गुस्से में मारने तक की धमकियां दे दी जाती है. इसका यह अर्थ नहीं होता कि वह वाकई जान से मारने वाला है.
भारतीय दंड संहिता और अपराध प्रक्रिया संहिता में हर प्रकार के अपराध के लिए कानूनी प्रक्रिया एवं सजाएं निर्धारित हैं. मीडिया, प्रशासन और नेता ऐसे मामलों में अतिवाद की सीमा तक चले गए तो समाज को संभालना कठिन होगा. सामान्य गालीगलौज और मारपीट भी अंडरवर्ल्ड, आतंकवाद का मामला बन जाएगा.
Rani Sahu
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