सम्पादकीय

ब्लॉगः राज्यसभा चुनाव...सेवा के नाम पर मेवा खाते राजनेता

Rani Sahu
10 Jun 2022 6:06 PM GMT
ब्लॉगः राज्यसभा चुनाव...सेवा के नाम पर मेवा खाते राजनेता
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राज्यसभा के चुनावों में राज्यों के विधायक मतदाता होते हैं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

राज्यसभा के चुनावों में राज्यों के विधायक मतदाता होते हैं। आम चुनावों में मतदाताओं को अपनी तरफ करने के लिए सभी दल तरह-तरह से रिझाते हैं लेकिन विधायकों के साथ उल्टा होता है। उनका अपना राजनीतिक दल उनको फिसलने से रोकने के लिए एक-से-एक अजीब तरीके अपनाता है। सभी पार्टियों को डर लगा रहता है कि अगर उनके थोड़े-से विधायक भी विपक्ष के उम्मीदवार की तरफ खिसक गए तो उनका उम्मीदवार हार जाएगा। कई उम्मीदवार तो सिर्फ दो-चार वोटों के अंतर से ही हारते और जीतते हैं।
विधायकों को फिसलाने के लिए नोटों के बंडल, मंत्रीपद का लालच, प्रतिद्वंद्वी पार्टी में ऊंचा पद आदि प्रलोभन दिए जाते हैं। यदि राज्यसभा की सदस्यता का यह मतदान पूरी तरह दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत हो जाए तो पराए दल के उम्मीदवार को वोट देनेवाले सांसद की सदस्यता तो छिनेगी ही, उसकी बदनामी भी होगी। ऐसा कोई प्रावधान अभी तक नहीं बना है, इसीलिए सभी दल अपने विधायकों को अपने राज्यों के बाहर किसी होटल या रिसोर्ट में एकांतवास करवाते हैं। उन विधायकों के चारों तरफ कड़ी सुरक्षा रहती है। उनका इधर-उधर आना-जाना और बाहरी लोगों से मिलना-जुलना मना होता है। उनके मोबाइल फोन भी रखवा लिए जाते हैं। उनके खाने-पीने और मनोरंजन का पूरा इंतजाम रहता है। उन पर लाखों रु. रोज खर्च होता है।
कोई इन पार्टियों से पूछे कि जितने दिन ये विधायक आपकी कैद में रहते हैं, ये विधायक होने के कौनसे कर्तव्य का निर्वाह करते हैं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि लगभग सभी पार्टियां, आजकल यही 'सावधानी' क्यों बरतती हैं? इसका मूल अभिप्राय क्या है? इसका एक ही अभिप्राय है। वह यह कि आज की राजनीति सेवा के लिए नहीं बल्कि मेवा के लिए बन गई लगती है। ऐसा लगता है कि वर्तमान राजनीति में न किसी सिद्धांत का महत्व है, न नीति का, न विचारधारा का! हालांकि राजनीति में सक्रिय कई लोग आज भी इसके अपवाद हैं लेकिन जरा मालूम कीजिए कि क्या वे कभी शीर्ष तक पहुंच सके हैं? जो लोग सफल हो जाते हैं, वे दावा करते हैं कि सेवा ही उनका धर्म है। लेकिन सेवा के नाम पर वे मेवा ही खाते नजर आते हैं।


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