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हे कृष्ण ! धरती पर फिर क्यों नहीं आते?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
रात के बारह बजने वाले थे...मैं जग रहा था...मेरी निगाहें भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप पर टिकी थीं. विचारों का प्रवाह थमने का नाम नहीं ले रहा था...कृष्ण के कितने रूप...? कितनी लीलाएं? ...और हर लीला में छिपा जीवन जीने की कला का कितना अद्भुत संदेश. वाकई प्रभु श्रीकृष्ण जैसा कोई और नहीं! अचानक दिग्-दिगंत में जयकार उठी...हाथी घोड़ा पालकी..जय कन्हैया लाल की!
जन्माष्टमी की रात मैं पूरी तरह भगवान श्रीकृष्ण में ही खोया रहा. यह कृष्ण की दिव्यता ही है कि हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनका बच्चा लड्डू गोपाल हो जाए! उनके बालपन की अठखेलियों के किस्से याद आते रहे और गीता मेरे कानों में गूंजती रही. महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण ने कोई पांच हजार साल पहले इस धरती पर 125 साल गुजारे.
महाभारत के युद्ध के कोई पैंतीस साल बाद उनके नश्वर शरीर ने धरती से विदा ली और उसी दिन से कलयुग प्रारंभ हो गया. उनके शारीरिक जीवन के भले ही 125 साल रहे हों लेकिन श्रीकृष्ण तो अमर हैं. गीता में वे कहते हैं कि शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा तो अविनाशी है.
इसीलिए श्रीकृष्ण अब भी हमारी चेतना में भी हैं...हमारे अवचेतन मन में भी हैं! वे संस्कारों के महानायक हैं. उनके बाल्यकाल में मौत से बच निकलने का अद्भुत प्रसंग है तो मस्ती की वह धूम भी है जो जिंदगी को खुशियों से भर दे. वे राजा भी हैं और गरीब सुदामा के सखा भी हैं.
समरसता का ऐसा उदाहरण बिरले ही देखने को मिलता है. यह संदेश है कि धन से बड़ा प्रेम है...प्यार है... राग है और अनुराग है! ..और ये प्रेम, प्यार, राग और अनुराग सबके लिए है. वे भगवद्गीता में धर्म की व्याख्या करते हैं तो इंसानियत और कर्म की बात करते हैं. उनका धर्म सबके लिए है. उसमें न कोई जाति है, न पंथ है, न मनुष्य द्वारा निर्मित धर्म है. उनके धर्म का सार इंसान है. समन्वय और एकता की ऐसी मिसाल और कहां मिलती है?
उनका बालपन विनोद और सरसता से भरा है तो युवा काल सामाजिक क्रांतियों से भरपूर है. वे एक तरफ कालिया मर्दन और कंस वध करते हैं तो न्याय के लिए खुद को न्यौछावर भी करते हैं. लोगों की धारणा है कि उनकी 16108 रानियां थीं लेकिन क्या कोई व्यक्ति इतनी पत्नियां रख सकता है? इस प्रसंग को पुराणों के माध्यम से समझना होगा. एक राक्षस था भौमासुर, जो अमर होने के लिए 16 हजार कन्याओं की बलि देना चाहता था.
श्रीकृष्ण ने उन सभी कन्याओं को कारावास से मुक्ति दिलाई और उनके घर वापस भेज दिया. जब वे कन्याएं अपने घरों को पहुंचीं तो समाज ने उनके चरित्र पर सवाल उठा दिया. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना नाम दिया. यह प्रसंग दर्शाता है कि श्रीकृष्ण शोषितों और कमजोर वर्ग को शक्ति प्रदान करते हैं. उन कन्याओं को अपना नाम देते वक्त उन्होंने यह नहीं सोचा कि वे किस जाति, किस धर्म या किस कुल की हैं और उनकी हैसियत क्या है.
जरा सोचिए कि पांच हजार साल पहले द्रौपदी की रक्षा करके श्रीकृष्ण ने महिलाओं के प्रति सम्मान का कितना बड़ा संदेश दिया था. दुर्भाग्य से आज भी चीर हरण हो रहा है. गायों के माध्यम से उन्होंने प्राणियों की सेवा के साथ ही वनों की रक्षा का संदेश भी दिया. इसीलिए मैं भगवान श्रीकृष्ण को सर्वकालिक महान सामाजिक क्रांतिकारी और युगपुरुष मानता हूं.
उन्होंने बताया कि राजनीति कैसी होनी चाहिए. वे राजनीति की रग-रग से वाकिफ रहते हैं तो दर्शन के प्रकांड पंडित भी हैं. उनके पास सुख है, दुख है, आकर्षण है, प्रेम है, गुरुत्व है. उनका व्यक्तित्व बहुरंगी है. अपने भक्तों के लिए वे केवल भगवान नहीं बल्कि उच्च कोटि के गुरु भी हैं. गीता में उन्होंने जो बातें की हैं वे सीधी-सादी भी हैं और गूढ़ रहस्यों से भरी हुई भी हैं. अनमोल और अद्भुत खजाना है भगवद्गीता. स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे ने भी गीता की व्याख्या की.
महान दार्शनिक ओशो और महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम भी गीता से प्रभावित रहे. केवल हिंदुस्तान ही नहीं आज पूरी दुनिया गीता को जीवन सूत्र के रूप में देखती है. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1785 में गीता का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया था. अनुवाद किया था चार्ल्स विल्किन्स ने. उसके बाद फ्रेंच, जर्मन, डेनिश, चीनी सहित 59 से अधिक भाषाओं में भगवद्गीता का अनुवाद हो चुका है.
भगवान कृष्ण की खासियत यह है कि जो जिस भावना से भजे, उस भक्त के पास वे वैसे ही सहज उपलब्ध होते हैं. ब्रज की गोपियों के लिए रास रचैया हैं, माखन चोर हैं, मटकी फोड़ देते हैं...कृष्ण चितचोर हैं! एक ओर वे आदर्श राजा और राजनीतिज्ञ हैं तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्रधारी के रूप में कुशल योद्धा भी हैं. सुदामा के लिए मित्रता की परिभाषा हैं तो ब्रज के लिए प्रेम के अवतार हैं. उनकी बांसुरी जब धुन छेड़ती है तो वे महान संगीतज्ञ नजर आते हैं. वे जीवन दर्शन और कला के बेमिसाल प्रतीक हैं.
रात ढलती जा रही थी और मैं सोच रहा था कि केवल उत्सव मनाने से क्या होगा? हमें कृष्ण को खुद के भीतर बसाना चाहिए. यदि हम ऐसा कर पाएं तो कलयुग के अत्याचारी स्वरूपों का नाश कर पाने में सक्षम होंगे. आज के माहौल में श्रीकृष्ण की वाकई बहुत जरूरत है. मेरी आंखें बोझिल हो चली थीं...मैं सोच रहा था...हे श्रीकृष्ण, एक बार और धरा पर क्यों नहीं आते..?
Rani Sahu
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