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- बिम्सटेक के कदम
Written by जनसत्ता: बिम्सटेक की वर्चुअल बैठक श्रीलंका की मेजबानी में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। बिम्सटेक की यह पांचवीं बैठक थी। चार साल बाद हुई यह बैठक भूराजनीतिक और सामरिक दृ ष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण रही। अपना प्रतीक और झंडा मिलना इस बैठक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल गई। आज जब विश्व व्यवस्था रूस-यूक्रेन युद्ध तथा अमेरिका-रूस के शीत युद्ध की वापसी से प्रभावित हो रही है, बिम्सटेक देशों का आपसी सहयोग और समन्वय के लिए प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है।
इस संगठन के सदस्य देश भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यामां, थाईलैंड तथा श्रीलंका हैं, जो कि बंगाल की खाड़ी में अवस्थित हैं। भारत की भूराजनीतिक और भूसामरिक दृष्टि से यह संगठन बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो कि भारत की विदेश नीति का मुख्य बिंदु 'पड़ोसी प्रथम' तथा 'एक्ट ईस्ट पालिसी' को एक साथ साधने में मदद कर सकता है।
यह संगठन सार्क का एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जो पाकिस्तान के अड़ियल रवैए की वजह से ठंढे बस्ते में पड़ा हुआ है। बिस्मटेक के सभी सदस्य चीन के विस्तारवादी और नवउपनिवेशक नीति से प्रभावित हैं, इसलिए यह एक ऐसा मंच है, जिससे भारत इन दक्षिण एशियाई देशों को साथ लेकर चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लग सकता है।
बिम्सटेक के सात देशों और इसके आसपास में विश्व की कुल आबादी का बाईस फीसद हिस्सा निवास करता है। इन देशों का संयुक्त रूप से सकल घरेलू उत्पाद 2.7 खरब डालर है। विश्व में व्यापार की जाने वाली कुल सामग्री का एक चौथाई हिस्सा बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरता है। भारत इस मंच की उपयोगिता भली भांति समझता है, इसलिए हमारे प्रधानमंत्री ने सदस्य देशों के आपसी सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। सचिवालय की क्षमता बढ़ाने के लिए दस लाख डालर और प्राकृतिक आपदा सहयोग कोष के लिए तीस लाख डालर की मदद के योगदान देने की बात की।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से संबंधित सतत विकास के लिए नालंदा विश्विद्यालय की शोधवृत्ति योजना का विस्तार करने, समुद्र विज्ञान में अनुसंधान बढ़ाने का आश्वाशन दिया। साझी भौगोलिक संबद्धता, समृद्ध ऐतिहासिक संबंध तथा प्राकृतिक और मानव संसाधनों की प्रचुरता, बिम्सटेक देशो के आपसी तालमेल को बढ़ाने में मदद करेंगे। सदस्य देशों का आपसी समन्वय न सिर्फ भारत बल्कि सभी सहयोगी देशों के लिए लाभदायक होगा।
बिम्सटेक की वर्चुअल बैठक श्रीलंका की मेजबानी में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। बिम्सटेक की यह पांचवीं बैठक थी। चार साल बाद हुई यह बैठक भूराजनीतिक और सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण रही। अपना प्रतीक और झंडा मिलना इस बैठक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल गई। आज जब विश्व व्यवस्था रूस-यूक्रेन युद्ध तथा अमेरिका-रूस के शीत युद्ध की वापसी से प्रभावित हो रही है, बिम्सटेक देशों का आपसी सहयोग और समन्वय के लिए प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है।
इस संगठन के सदस्य देश भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यामां, थाईलैंड तथा श्रीलंका हैं, जो कि बंगाल की खाड़ी में अवस्थित हैं। भारत की भूराजनीतिक और भूसामरिक दृष्टि से यह संगठन बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो कि भारत की विदेश नीति का मुख्य बिंदु 'पड़ोसी प्रथम' तथा 'एक्ट ईस्ट पालिसी' को एक साथ साधने में मदद कर सकता है।
यह संगठन सार्क का एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जो पाकिस्तान के अड़ियल रवैए की वजह से ठंढे बस्ते में पड़ा हुआ है। बिस्मटेक के सभी सदस्य चीन के विस्तारवादी और नवउपनिवेशक नीति से प्रभावित हैं, इसलिए यह एक ऐसा मंच है, जिससे भारत इन दक्षिण एशियाई देशों को साथ लेकर चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लग सकता है।
बिम्सटेक के सात देशों और इसके आसपास में विश्व की कुल आबादी का बाईस फीसद हिस्सा निवास करता है। इन देशों का संयुक्त रूप से सकल घरेलू उत्पाद 2.7 खरब डालर है। विश्व में व्यापार की जाने वाली कुल सामग्री का एक चौथाई हिस्सा बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरता है। भारत इस मंच की उपयोगिता भली भांति समझता है, इसलिए हमारे प्रधानमंत्री ने सदस्य देशों के आपसी सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। सचिवालय की क्षमता बढ़ाने के लिए दस लाख डालर और प्राकृतिक आपदा सहयोग कोष के लिए तीस लाख डालर की मदद के योगदान देने की बात की।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से संबंधित सतत विकास के लिए नालंदा विश्विद्यालय की शोधवृत्ति योजना का विस्तार करने, समुद्र विज्ञान में अनुसंधान बढ़ाने का आश्वाशन दिया। साझी भौगोलिक संबद्धता, समृद्ध ऐतिहासिक संबंध तथा प्राकृतिक और मानव संसाधनों की प्रचुरता, बिम्सटेक देशो के आपसी तालमेल को बढ़ाने में मदद करेंगे। सदस्य देशों का आपसी समन्वय न सिर्फ भारत बल्कि सभी सहयोगी देशों के लिए लाभदायक होगा।