सम्पादकीय

आए बड़े विकट दिन

Gulabi
7 March 2022 6:25 AM GMT
आए बड़े विकट दिन
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कच्चे तेल और गैस की महंगाई का असर आम मुद्रास्फीति पर होना तय है
By NI Editorial
कच्चे तेल और गैस की महंगाई का असर आम मुद्रास्फीति पर होना तय है। अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि जो हालात बन रहे हैं, उनकी वजह से धनी देशों में रोजमर्रा की जिंदगी मंहगी होगी। इससे वहां दिक्कतें होंगी। लेकिन गरीब देशों में तो भुखमरी के हालात बन सकते हैँ।
कोरोना महामारी के कारण बनी स्थितियों से उबर रही दुनिया अभी एक और झटके को सहने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन ये झटका उसे लगा है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उस पर प्रतिबंध लगाने का जो सिलसिला पश्चिमी देशों की तरफ से चलाया जा रहा है, उसके बड़े विकट परिणाम होने वाले हैँ। यूरोपीय बाजारों पर गौर करें, तो वहां प्राकृतिक गैस की कीमत रोज नए रिकॉर्ड छू रही है। जबकि अभी तक रूस से वहां होने वाली गैस की सप्लाई पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है, क्योंकि प्रतिबंध लगाते हुए पश्चिमी देशों ने उन रूसी बैंकों को अभी बख्श रखा है, जिनके जरिए कच्चे तेल और गैस के बदले भुगतान होता है। कच्चे तेल और गैस की महंगाई का असर आम मुद्रास्फीति पर होना तय है। जबकि पहले ही मुद्रास्फीति काफी ऊंचे स्तर पर रही है। अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि जो हालात बन रहे हैं, उनकी वजह से धनी देशों में रोजमर्रा की जिंदगी मंहगी होगी। इससे वहां दिक्कतें होंगी। लेकिन गरीब देशों में तो भुखमरी के हालात बन सकते हैँ। अब इन चेतावनियों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अपनी आवाज मिला दी है।
उसने कहा है कि यूक्रेन में युद्ध के कारण गेहूं, अन्य अनाज, ऊर्जा और कमोडिटी की कीमतों में जो वृद्धि हुई है, उससे आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और बढ़ जाएगा। उससे महंगाई बढ़ेगी। इन झटकों का दुनियाभर में प्रभाव पड़ेगा। गरीब परिवारों के लिए भोजन और ईंधन खर्च का अनुपात ऊंचा होता है। जाहिर है, उनके लिए समस्या और गहरा गई है। आईएमएफ ने कहा है कि अगर संघर्ष बढ़ता है तो आर्थिक क्षति और अधिक विनाशकारी होगी। रूस पर प्रतिबंधों का वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजारों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। आईएमएफ की सलाह है कि मौद्रिक अधिकारी उचित प्रतिक्रियाओं को जांचने के लिए घरेलू मुद्रास्फीति में बढ़ती अंतररार्ष्ट्रीय कीमतों के हिस्से पर निगाह रखेँ। आईएमएफ ने सरकारों को सलाह दी है कि वे अपनी गरीब आबादी की मदद के लिए वित्तीय सहायता दें। रोजमर्रा की बढ़ती लागत को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए ऐसी राजकोषीय नीति की आवश्यकता होगी। सवाल है कि क्या भारत सरकार अब इस पर गौर करेगी? महामारी के दौरान उसने वित्तीय सहायता की सलाह को नजरअंदाज किए रखा। सिर्फ मौद्रिक उपायों पर जोर दिया। अगर वह उसी राहत पर चलती रही, तो भारत के आम लोगों की मुश्किलें अनंत हो जाएंगी।
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