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Written by जनसत्ता: पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश का परिणाम सबसे ज्यादा रोचक रहा। वहां भाजपा की दूसरी बार लगातार जीत का स्पष्ट संदेश है कि जातियों और अल्पसंख्यकों की गोलबंदी से राजनीतिक फायदे उठाने के दिन अब लद गए हैं। भाजपा ने साबित कर दिया कि वह मध्यवर्ग के साथ ओबीसी और अनुसूचित जातियों के बीच अपनी पकड़ लगातार मजबूत करती जा रही है। जनकल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित लोगों में भाजपा ने नया प्रभावशाली वोट बैंक बनाया है, जो जातीय विभाजन से परे है। मुफ्त राशन, उज्ज्वला, किसानों के खाते में धन और पेंशन योजनाओं के सामने घिसा-पिटा मुसलिम-यादव फार्मूला नहीं टिक पाया। यह बात साबित हो गई कि भाजपा का विकल्प नहीं है।
यह सच है कि सत्ता-विरोधी मतों का फायदा अकेले सपा को मिला, कांग्रेस और बसपा को नहीं मिला, पर सपा कार्यकर्ताओं की आपराधिक प्रवृत्ति से भयभीत मतदाताओं ने सुरक्षा के मामले में योगी सरकार की वापसी को आवश्यक समझा। यही कारण है कि सीटें बढ़ने के बावजूद सपा इतनी सक्षम नहीं हो सकी कि वह भाजपा को हरा दे। मतदाताओं की समझ में यह बात आ गई कि राज्य में यदि भाजपा सरकार बनती है तो उनको मिलने वाली सुविधाएं चलती रहेंगी, उनका परिवार आपराधिक तत्वों से पीड़ित नहीं होगा। प्रियंका वाड्रा का 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' अभियान आकर्षक होने के बावजूद कांग्रेस को वोट नहीं दिला सका और न ही दुष्कर्म पीड़ित स्वजनों को टिकट देने की रणनीति काम आई।
भाजपा पूरे देश के राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए चुनौती बन रही है। पंजाब में जिस तरह भाजपा और कांग्रेस को आप ने चित किया है, वह सत्तर साल के परिपक्व लोकतंत्र के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। ऐसा दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हो चुका है। जब सारा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंधी में बह चुका था, राजनीति के बड़े-बड़े किले ध्वस्त हो चुके थे और देश में भगवा लहराने लगा था, तब केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिल्ली में भाजपा को धूल चटा दी थी। दूसरी तरफ भाजपा अपने एजेंडे पर हर तरह से कायम है।
आज चुनाव परिणाम के मद्देनजर भाजपा के लिए अगर दो शब्द देने पड़ें तो वह है- राशन और प्रशासन। राशन को सारे देश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। गरीब को मुफ्त राशन अमृत से कम नहीं। राशन और खाताधारकों के खाते में सीधे पैसे आने से भाजपा का एक शांत मतदाता वर्ग तैयार हुआ है, जिसका सिर्फ कयास लगाया जा सकता है, लेकिन उन्हें चिह्नित कर पाना कठिन है।