सम्पादकीय

सावधान रहें आंदोलनजीवियों से, केवल विरोध के लिए विरोध करने वालों का देशहित से कोई लेना-देना नहीं

Gulabi Jagat
7 Sep 2022 10:01 AM GMT
सावधान रहें आंदोलनजीवियों से, केवल विरोध के लिए विरोध करने वालों का देशहित से कोई लेना-देना नहीं
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राजीव सचान : आज से कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू हो रही है। यह यात्रा कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने में कितनी सहायक होगी, यह भविष्य ही बताएगा। इस यात्रा में कांग्रेस के साथ दो सौ से अधिक ऐसे लोग भी जुड़ रहे हैं, जो मूलतः कांग्रेसी नहीं हैं। इनमें से कुछ के पास राजनीतिक किस्म के अपने संगठन भी हैं, जैसे कि योगेंद्र यादव का स्वराज इंडिया। चंद दिनों पहले उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चे की समन्वय समिति से त्यागपत्र दे दिया था। माना जाता है कि इसका कारण कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना है।
योगेंद्र यादव के साथ प्रशांत भूषण और प्रो. आनंद कुमार भी भारत यात्रा से जुड़ रहे हैं। ये वही लोग हैं, जिन्होंने एक समय अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। अब वे मोदी सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों से लड़ने के लिए कांग्रेस का साथ देना आवश्यक समझ रहे हैं। इसमें हर्ज नहीं, लेकिन कांग्रेस आंदोलनजीवियों से सतर्क रहे तो बेहतर। इसलिए और भी, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद योगेंद्र यादव ने कहा था-कांग्रेस मस्ट डाई।
योगेंद्र यादव ने कांग्रेस के खत्म हो जाने की जरूरत पर इसलिए बल दिया था, क्योंकि उनकी समझ से वह विकल्प तैयार करने में सबसे बड़ा रोड़ा है। लगता है अब कांग्रेस के बारे में उनके विचार बदल गए हैं। यह भी कोई नई-अनोखी बात नहीं। समय के साथ व्यक्ति के विचार बदलते हैं। योगेंद्र यादव भले ही किसान नेता, राजनीतिक विश्लेषक, चुनावी विशेषज्ञ आदि के रूप में जाने जाते हों, लेकिन पिछले कुछ समय में उनकी छवि आंदोलनजीवी की बनी है। यह इस कारण बनी है कि पहले वह इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से जुड़े, फिर नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन से और इसके बाद कृषि कानून विरोधी आंदोलन से।
फिलहाल इसका आकलन करना कठिन है कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से योगेंद्र यादव सरीखे कितने और आंदोलनजीवी जुड़ रहे हैं, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि अपने देश में आंदोलनजीवियों की कमी नहीं। योगेंद्र यादव सरीखी एक और आंदोलनजीवी मेधा पाटकर भी इन दिनों चर्चा में हैं। इसका कारण बीते रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से गुजरात में दिया गया यह बयान है कि उन्हें पिछले दरवाजे से राज्य की राजनीति में लाने की कोशिश की जा रही है। उनका संकेत आम आदमी पार्टी की ओर था।
संयोग (मेधा पाटकर के लिए दुर्योग) से इसी दिन अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर ने अपने एक लेख के जरिये इस पर अफसोस जताया कि किस तरह एक समय वह मेधा के झांसे में आ गए थे और उनकी बातों से प्रेरित होकर उन्होंने नर्मदा परियोजना के विरोध में लिखा था। अपने ताजा लेख में उन्होंने यह भी लिखा, 'यह साफ है कि मैं गलत था। मेधा ने न केवल मुझे, बल्कि हजारों मानवतावादियों को मूर्ख बनाया।' पता नहीं ये हजारों लोग कौन थे, लेकिन यह सबको पता है कि कथित किसान आंदोलन के दौरान किस तरह हजारों किसानों को झूठ का सहारा लेकर मूर्ख बनाया गया।
इससे भी कोई अनभिज्ञ नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किस तरह हजारों लोगों और विशेष रूप से मुसलमानों को मूर्ख बनाया गया। जिस कानून का किसी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं था, उसके बारे में यह झूठ फैलाया गया कि उसके जरिये भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान भी यह झूठ बार-बार दोहराया गया कि इन कानूनों के जरिये किसानों की जमीन छीन ली जाएगी। इन दोनों आंदोलनों में योगेंद्र यादव की सक्रियता किसी से छिपी नहीं। बात हो रही थी मेधा पाटकर की, तो उन्होंने इसका खंडन किया है कि वह गुजरात में आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद की दावेदार हो सकती हैं, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि उन्होंने 2014 में इसी पार्टी की प्रत्याशी के रूप में मुंबई से चुनाव लड़ा था।
मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए जानी जाती हैं। वह इसी नाम से बनाए गए संगठन की संस्थापक सदस्य हैं। उन्होंने दशकों तक इस परियोजना का विरोध किया। धीरे-धीरे उनके इस आंदोलन में कथित पर्यावरणविद, मानवाधिकारवादी आदि शामिल हो गए। इस परियोजना का विरोध इतना अधिक बढ़ा कि विश्व बैंक आर्थिक सहयोग देने के अपने वादे से पीछे हट गया। मेधा पाटकर और उनके सहयोगी यह तर्क दिया करते थे कि इस परियोजना के जो लाभ गिनाए जा रहे हैं, वे सब हवा-हवाई हैं और इससे किसानों को कोई लाभ नहीं होगा और विस्थापित लोगों का जीवन नर्क बन जाएगा।
ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस परियोजना से गुजरात और राजस्थान के लाखों किसानों को सिंचाई के लिए जल और लाखों लोगों को पीने का पानी मिला। एक सर्वेक्षण के अनुसार जिन वनवासियों को विस्थापित किया गया, वे पहले की तुलना में अच्छी स्थिति में हैं। कल्पना कीजिए कि यदि मेधा पाटकर सफल हो गई होतीं तो क्या होता? यह कल्पना इसलिए की जानी चाहिए, क्योंकि उनके जैसे आंदोलनजीवियों के कारण ही तमिलनाडु में तांबा बनाने वाली वेदांता समूह का स्टरलाइट कापर संयंत्र बंद हो गया। इसी के साथ भारत तांबे के निर्यातक से आयातक में तब्दील हो गया। यह भी ध्यान रहे कि आंदोलनजीवियों के कारण ही कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर की परियोजना में अनावश्यक देरी हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि इस परियोजना के विरोध के पीछे कुछ विदेशी गैर-सरकारी संगठन हैं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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