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सुप्रीम कोर्ट के फैसले
बहुत सी दुखी और उदास करने वाली खबरों और जीवन की तमाम विद्रूपताओं के बीच कुछ चीजें ऐसी भी होती रहती हैं, जिन पर ठहरकर थोड़ा फख्र करने और खुश होने को जी चाहता है. इस साल 24 जनवरी को गर्ल चाइल्ड डे था और उसके पांच दिन पहले 19 जनवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पॉक्सो के एक मामले में ऐसा फैसला सुनाया था, जिस पर ऐतराज करने और उसे गलत बताने के लिए कानून का विशेषज्ञ होने की कोई जरूरत नहीं थी. सामान्य विवेक और संवेदना वाला कोई भी इंसान उस फैसले से चकित और भ्रमित था.
उस फैसले पर काफी विवाद भी हुआ. लेकिन बात सिर्फ विवाद की नहीं थी. उससे उपजे आक्रोश और असंतोष की भी थी क्योंकि कोई व्यक्ति और समाज चाहे कितना भी क्रूर और असंवेदनशील क्यों न हो, अपने बच्चों के प्रति वो क्रूर नहीं होता. हर कोई बच्चों को सहेजना, संभालना और उन्हें सुरक्षित रखना चाहता है. उनकी परवाह करना चाहता है.
ये फैसला इसलिए भी इतनी तकलीफ का बायस बना क्योंकि ये पॉक्सो कानून से जुड़ा और एक छोटी बच्ची के बारे में था. चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज के एक केस में नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा-
"लड़की के ब्रेस्ट को जबरन छूना भर यौन उत्पीड़न नहीं है. अगर कपड़े के ऊपर से छुआ गया है और 'स्किन टू स्किन टच' नहीं हुआ है तो यह पॉक्सो कानून के सेक्शन 7 के तहत यौन उत्पीड़न और सेक्शन 8 के तहत दंडनीय अपराध नहीं है."
एक 12 साल की बच्ची के साथ यौन अपराध के इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (शील भंग के इरादे से महिला पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग), 363 (अपहरण के लिए सजा) और 342 (गलत तरीके से बंदी बनाकर रखने की सजा) के तहत एक साल के कारावास की सजा सुनाई. साथ ही पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस, 2012) के सेक्शन 8 के तहत तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी. पुष्पा गनेडीवाला ने इस सजा को खत्म करते हुए आरोपी को बाइज्जत बरी कर दिया था.
सिर्फ इसलिए क्योंकि आरोपी ने बच्चे को कपड़े के ऊपर से छुआ था और स्किन टू स्किन टच नहीं हुआ था.
Pixabay Photo
इस फैसले को लेकर देश भर में इतना विरोध और आक्रोश हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए नागपुर बेंच के उस फैसले को रद्द कर दिया. आरोपी वापस सलाखों के पीछे था. उसके बाद उस केस की नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम. त्रिवेदी की बेंच इस केेस की सुनवाई कर रही थी.
अब उस केस का फैसला आ गया है. 9 महीने के रिकॉर्ड समय में केस की सुनवाई पूरी कर तीनों जजों ने अपना फैसला सुनाया है. इस फैसले में कहा गया है कि यौन हमले में हमला करने का इरादा महत्वपूर्ण है, न कि ये तथ्य कि स्किन टू स्किन टच हुआ या नहीं. जजों ने कहा कि पॉक्सो कानून की इस तरह की मनमानी व्याख्या कानून के मकसद और महत्व को कमजोर करती है. पॉक्सो कानून बनाया ही इसलिए गया था कि हम हमने बच्चों को सुरक्षित रख सकें. उनकी सुरक्षा की गारंटी कर सकें और बच्चों के साथ किसी भी तरह के गलत व्यवहार को मामूली अपराध न समझा जाए.
जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम. त्रिवेदी ने एकमत से कहा कि हम नागपुर बेंच के फैसले को गलत मानते हैं और उस फैसले को उलटते हुए जजों ने आरोपी को दो साल कैद की सजा सुनाई है. निचली अदालत ने आरोपी को तीन साल कैद की सजा सुनाई थी, जिसमें से एक साल की सजा वह केस के हाईकोर्ट का फैसला आने तक काट चुका था. पॉक्सो कानून के तहत साबित हुआ अपराध गैरजमानती होता है.
क्या कहता है पॉक्सो कानून
कानून की मूर्खतापूर्ण और मनमानी व्याख्या का ये पहला मामला नहीं है. अपने इसी "स्किन टू स्किन टच" वाले कुतर्क के चलते पुष्पा गनेडीवाला ने पॉक्सो के ही एक अन्य मामले में अजीबोगरीब फैसला सुनाया और कहा कि "एक नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना और (उसके सामने) अपने पैंट की जिप खोलना पॉक्सो कानून के तहत यौन हमला नहीं है, बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए के तहत सेक्सुअल हैरेसमेंट है."
यहां यह स्पष्ट कर दें कि इस केस में उस बच्ची की उम्र पांच साल है. गनेडीवाला ने यह फैसला पिछले मुकदमे के फैसले के सिर्फ चार दिन पहले 15 जनवरी को सुनाया था. एक केस के सुर्खियों में आने के बाद तो मानो लोग जज साहिबा के पुराने अपराधों का बहीखाता ही लेकर बैठ गए थे. 14 जनवरी को ये खबर जरूर छपी थी, लेकिन इसे किसी ने नोटिस नहीं किया और न ही इस पर हंगामा हुआ. लेकिन दूसरे पॉक्सो केस के फैसले के सुर्खियों में आने के बाद इस केस पर भी हंगामा हुआ और इस मामले में भी अटॉर्नी जनरल ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे आने वाले इस तरह के अन्य मुकदमों के लिए एक खतरनाक नजीर बताया.
क्या कहता है पॉक्सो कानून
पॉक्सो कानून के मुताबिक, "बच्चे के अंगों को यौन इरादे से छूना या अपने अंग छुआना." यहां कानून की परिभाषा में अंग विशेषों (छाती, योनि, नितंब) को अलग से रेखांकित करते हुए उसे छूने या छुआने की बात को स्पष्ट किया गया है. इसके बाद यह कानून कहता है, "Any other act with sexual intent" अर्थात यौन इरादों के साथ किया गया 'और कोई भी काम.' पॉक्सो से कई फैसलों में जजों ने कई बार इस बात को अलग से रेखांकित किया है कि यौन इरादे के साथ बच्चे का हाथ तक पकड़ना यौन अपराध की श्रेणी में आता है. इसी बात को सुप्रीम कोर्ट के तात्कालिक फैसले में भी दोहराया गया है कि इंटेंशन मायने रखता है. अपराधी का इरादा क्या था. अगर यौन इरादे के साथ कुछ भी किया गया है तो वो अपराध है और पॉक्सो कानून के तहत दंडनीय है.
फिलहाल पिछले फैसले ने जितना आक्रोश दिया था, इस फैसले ने उतनी ही राहत दी है. एक सक्रिय हस्तक्षेप और फैसले ही न्याय व्यवस्था में हमारा भरोसा कायम रख सकते हैं.
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