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- पुलिस अशांति का...
पुलिस पे बैंड के मसले पर हिमाचल सरकार की नीयत व नसीहत से वर्दी कितनी सुधरती है, इस पर एक अप्रत्यक्ष गतिरोध देखा जा रहा है। पूरा घटनाक्रम जेसीसी बैठक के सुहावने मौसम पर ओलावृष्टि तो कर ही रहा है, क्योंकि पुलिस महकमे के भर्ती नियमों पर यह एक तोहमत की तरह सरकार के कर्मचारी फ्रेंडली माहौल को कुपित कर चुका है। सेवा नियमों की छतरी तले अगर पुलिस सिपाहियों का आकाश टूटा है, तो इस मंजर के लिए पुलिस के मुखिया क्या कर रहे हैं। जिस लाल कालीन पर चल कर पुलिस कर्मियों की वार्ता का स्टेज सजाया गया था, उसकी मान्यता का क्या करें। राजनीति के लंगर में पुलिस अशांति का प्रीतिभोज खिलाते-खिलाते हिमाचल सरकार उलझ गई है। इसका दोहरा नुकसान है। एक तो जेसीसी बैठक के दौरान बटोरी गई सारी सहानुभूति, प्रश्ंासा व साधुवाद अब आंदोलनों के नए कीचड़ से गंदा हो रहा है, तो पुलिस महकमे की बागडोेर पर भी छींटे पड़ रहे हैं। हैरानी यह कि पुलिस जवान सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं और इधर विभागीय नसीहतें भी मुर्झा सी गई हैं। पुलिस भर्ती के नियम 2015 से ही नापसंद किए जा रहे हैं और यह इसलिए भी कि जब सामान्य कर्मचारियों के सेवा नियम व शर्तें माकूल हो रही हैं, तो एक वर्ग को यह राहत देने के लिए अतीत की फांस क्यों। संशोधित पे बैंड आठ से दो साल करने की आकुलता तो समझी जा सकती है, लेकिन इसके प्रति बरता गया रवैया सही नहीं माना जा सकता।
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