सम्पादकीय

पुलिस अशांति का प्रीतिभोज

Rani Sahu
3 Dec 2021 7:03 PM GMT
पुलिस अशांति का प्रीतिभोज
x
पुलिस पे बैंड के मसले पर हिमाचल सरकार की नीयत व नसीहत से वर्दी कितनी सुधरती है

पुलिस पे बैंड के मसले पर हिमाचल सरकार की नीयत व नसीहत से वर्दी कितनी सुधरती है, इस पर एक अप्रत्यक्ष गतिरोध देखा जा रहा है। पूरा घटनाक्रम जेसीसी बैठक के सुहावने मौसम पर ओलावृष्टि तो कर ही रहा है, क्योंकि पुलिस महकमे के भर्ती नियमों पर यह एक तोहमत की तरह सरकार के कर्मचारी फ्रेंडली माहौल को कुपित कर चुका है। सेवा नियमों की छतरी तले अगर पुलिस सिपाहियों का आकाश टूटा है, तो इस मंजर के लिए पुलिस के मुखिया क्या कर रहे हैं। जिस लाल कालीन पर चल कर पुलिस कर्मियों की वार्ता का स्टेज सजाया गया था, उसकी मान्यता का क्या करें। राजनीति के लंगर में पुलिस अशांति का प्रीतिभोज खिलाते-खिलाते हिमाचल सरकार उलझ गई है। इसका दोहरा नुकसान है। एक तो जेसीसी बैठक के दौरान बटोरी गई सारी सहानुभूति, प्रश्ंासा व साधुवाद अब आंदोलनों के नए कीचड़ से गंदा हो रहा है, तो पुलिस महकमे की बागडोेर पर भी छींटे पड़ रहे हैं। हैरानी यह कि पुलिस जवान सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं और इधर विभागीय नसीहतें भी मुर्झा सी गई हैं। पुलिस भर्ती के नियम 2015 से ही नापसंद किए जा रहे हैं और यह इसलिए भी कि जब सामान्य कर्मचारियों के सेवा नियम व शर्तें माकूल हो रही हैं, तो एक वर्ग को यह राहत देने के लिए अतीत की फांस क्यों। संशोधित पे बैंड आठ से दो साल करने की आकुलता तो समझी जा सकती है, लेकिन इसके प्रति बरता गया रवैया सही नहीं माना जा सकता।

निश्चित रूप से ऐसा रवैया सरकार की नेकनीयत को बदनाम कर रहा है। पुलिस भर्ती अब परिवारों की जोर-आजमाइश में तबदील होने की जिद्द पर अड़ी है और आक्रोश रैली के नाम पर सरकार पर दबाव डाल रही है। यह विषय अब चिंता के सुर में अपनी हद से बाहर हो रहा है, तो सरकार को ऐसी अनुशासनहीनता पर शिकंजा कसना होगा, वरना ताल ठोकने का यह मंजर अभिशप्त ही करेगा। यह इसलिए भी कि प्रदेश की सत्ता को अपनी वर्षगांठ मनाते हुए या पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को बुलाते हुए, यह संकोच रहेगा कि आक्रोश की करवटें कहीं दामन पर चोट न कर दें। जाहिर तौर पर पुलिस पे बैंड का मसला इतना बड़ा हो गया है कि स्पष्ट रूप से इसके साथ और सामने दो पक्ष बन गए। अगले कुछ दिनों में विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले मसले की हवा न निकाली गई, तो विपक्ष भी ऑक्सीजन भर सकता है। दरअसल चार उपचुनावों में मिली हार के बाद सत्ता व संगठन के बीच जिस शांति से संधि हुई है, उसके विपरीत सरकार के प्रदर्शन पर मीन मेख निकालते कुछ कर्मचारी वर्ग सामने आ चुके है। आगामी चुनावों से पूर्व सत्ता को बतौर सरकार तथा संगठन को ऐसी शाबाशियां चाहिएं, जो हार के दर्द का उपचार बन जाएं। सरकार ने जेसीसी बैठक के संबोधन तो उदात किए, लेकिन इसकी छननी से कर्मचारी आक्रोश की रेत बिखर गई। आश्चर्य यह कि 7500 करोड़ की दिवाली मना कर भी सरकार के खिलाफ धमाके हो रहे हैं। सत्ता के सामने निर्दोष साबित होने का सबसे बड़ा मंजर जेसीसी की बैठक रही, लेकिन पुलिस आक्रोश से जुड़ी अनुशासनहीनता खलल डाल रही है। यह नड्डा आगमन, शीतकालीन सत्र या सरकार के चार साल पूर्ण होने के समारोह के लिए सही नहीं है। आत्मचिंतन के कठिन दौर में हिमाचल भाजपा अपनी साधना से सरकार को साध पाती है या संगठन के स्वरूप में आकर्षण पैदा कर पाती है, देखना होगा। बहरहाल, मुख्यमंत्री जयराम ने सरकार की डोर केंद्र के हवाले कर दी है, इसलिए वह किसी मंत्री को हटाने के प्रश्न पर दिल्ली से मुखातिब हो जाते हैं। मंत्री हटाए जाते हैं या नहीं, लेकिन मंत्रियों के प्रभार बदलने की आवश्यकता को नजरअंदाज करके सत्ता पक्ष अपने अंतिम वर्ष का वर्षफल सही नहीं कर सकता।

divyahimachal

Next Story