सम्पादकीय

बंदा बैरागी का एक कुटिया से शुरू होकर महायोद्धा और राजा बनने तक का सफर

Gulabi
9 Jun 2021 8:51 AM GMT
बंदा बैरागी का एक कुटिया से शुरू होकर महायोद्धा और राजा बनने तक का सफर
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Baba Banda Singh Bahadur Death Anniversary वीर बंदा बैरागी के प्रशंसकों को इतिहासकारों से हमेशा यह

डॉ. राज सिंह। Baba Banda Singh Bahadur Death Anniversary वीर बंदा बैरागी के प्रशंसकों को इतिहासकारों से हमेशा यह शिकायत रही है कि उनको इतिहास में उपयुक्त स्थान नहीं दिया गया। हालांकि एक कुटिया से शुरू होकर महायोद्धा और राजा बनने तक का उनका सफर अद्भुत और निराला था। इतिहासकारों से बेशक हमें यह शिकायत हो, लेकिन विभिन्न भाषाओं के विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों ने अपनी कविताओं द्वारा उनको भरपूर सम्मान और श्रद्धांजलि दी। इन साहित्यकारों में तीन प्रमुख कवियों का नाम आता है-नोबेल पुरस्कार से सम्मानित राष्ट्रगान के रचयिता और बांग्ला भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर, स्वतंत्रता सेनानी और मराठी भाषा के साहित्यकार वीर सावरकर तथा राष्ट्रकवि के नाम से प्रसिद्ध हिंदी के कवि मैथिलीशरण गुप्त।


इस बारे में बंदा बैरागी पर गहन अध्ययन करने वाले भारत सरकार में अधिकारी डॉ. राजसिंह बताते हैं कि रवींद्र नाथ टैगोर ने बांग्ला भाषा में लिखी कविता 'बंदी बीर' में बंदा बैरागी की कुर्बानी को बहुत ही माíमक ढंग से प्रस्तुत किया है। वीर सावरकर की मराठी में लिखी कविता 'अमर मृत' की विषयवस्तु भी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता जैसी ही है जिसमें उन्होंने इस महायोद्धा की वीरता, देशभक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा का चित्रण किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता 'वीर वैरागी' में माधव दास बैरागी (बंदा बैरागी) और गुरु गोविंद सिंह जी की वार्ता को अपनी कविता में शामिल किया है।
बंदा बैरागी लक्ष्मण देव, माधवदास, वीर बंदा बैरागी और बंदा सिंह बहादुर के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। इस धर्म योद्धा ने सच्चाई, देशभक्ति, वीरता और त्याग के मार्ग पर चलते हुए नौ जून, 1716 को मानव उत्थान यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस महायोद्धा की विजय यात्र सितंबर 1708 में गुरु गोविंद सिंह जी से मुलाकात के बाद महाराष्ट्र के नांदेड़ से शुरू हुई। उन्होंने 21 फरवरी, 1709 को सोनीपत (हरियाणा) के पास सेहरी खांडा नामक गांव में निंबार्क संप्रदाय और निर्मोही अखाड़े के संत महंत किशोर दास जी के निर्मोही अखाड़ा मठ को अपना प्रथम सैनिक मुख्यालय बनाया। वहीं पर मात्र आठ महीने की अवधि में अपनी सेना का गठन कर लिया। दो नवंबर, 1709 को उन्होंने इसी स्थान से सोनीपत स्थित मुगल ट्रेजरी पर हमला किया और अपनी सेना के खर्चो के लिए आíथक संसाधनों का प्रबंध किया। यहीं से बंदा बैरागी का प्रामाणिक एवं दस्तावेजों पर आधारित इतिहास आरंभ होता है। इससे पहले की उनकी जीवन गाथा जनश्रुति और इतिहासकारों के अनुमानों पर आधारित थी।

वीर सावरकर द्वारा बंदा बैरागी पर मराठी में लिखी हुई कविता 'अमर मृत' ब्रिटिश इतिहासकार टोड द्वारा लिखी पुस्तक पर आधारित है। वीर सावरकर ने भारतीय इतिहास पर मराठी में लिखी गई अपनी पुस्तक 'भारतीय इतिहासतील सहा सोनेरी पाने' में भी बंदा बैरागी की वीरता का वर्णन करते हुए अपनी कविता 'अमर मृत' का जिक्र किया है। इस पुस्तक में बंदा बैरागी के बारे में वे लिखते हैं कि हिंदू इतिहास से उस वीर शहीद का नाम कभी भी नहीं मिटाया जा सकता जिन्होंने मुगलों द्वारा हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का न केवल विरोध किया, बल्कि उन पर सशस्त्र आक्रमण भी किया।
वीर सावरकर लिखते हैं कि बंदा बैरागी मूलत: एक वैष्णव संत थे। उन्हें गुरु गोविंद सिंह जी से पता चला कि किस प्रकार पंजाब में हिंदुओं और सिखों पर मुगल शासकों द्वारा अत्याचार किए जा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने मुगलों से बदला लेने की ठान ली। इस प्रकार इस बहादुर योद्धा ने मुगलों द्वारा अमानवीय तरीकों से हिंदुओं को प्रताड़ित किए जाने के विरुद्ध पंजाब की ओर प्रस्थन किया। अपनी पुस्तक में सावरकर लिखते हैं कि 'तत्त खालसा' के बैनर तले सिखों का एक बड़ा दल बंदा बैरागी की सेना से अलग हो गया, जिसके कारण उनकी सेना कमजोर पड़ गई। यदि ऐसा न हुआ होता तो युद्ध के परिणाम कुछ और होते। इस पुस्तक में वीर सावरकर ने यह भी लिखा कि बुद्धिजीवी लोग अंडमान की जेल में उनके द्वारा लिखी हुई बंदा बैरागी की कुर्बानी की कविता अवश्य पढ़ें।
इस कविता में उन्होंने उस घटना का वर्णन किया जब सात दिसंबर, 1715 को गुरदासपुर नंगल की गढ़ी में महीनों तक मुगल सेना का मुकाबला करते हुए खाद्य सामग्री के समाप्त हो जाने के बाद बंदा बहादुर और उनकी सेना को मुगल सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। बंदा बैरागी को सर्कस के शेर वाले लोहे के पिंजरे में बंद करके लाहौर ले जाया गया। उन्हें करीब दो महीने तक लाहौर में ही रखा गया और फिर फरवरी 1709 में बंदा बैरागी को उनके 740 सैनिकों सहित लाहौर से दिल्ली तक लाया गया। सावरकर के साहित्य को पढ़कर लगता है कि वे बंदा बैरागी के जीवन से अत्यंत प्रभावित थे। वीर सावरकर आगे लिखते हैं कि बंदा बैरागी के रक्तरंजित इतिहास पर मुगल सल्तनत की गर्दन हमेशा शर्म से झुकी रहेगी। ऐसी घटना दुनिया में न पहले कभी हुई और न भविष्य में होगी। सावरकर ने बंदा बैरागी के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है। उन्होंने बैरागी के लिए महावीर, दिव्यत्यागी, रणयोद्धा, प्रकांड देशभक्त, अलौकिक देशप्रेमी तथा कर्मयोगी जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।
विनायक दामोदर सावरकर के साथ-साथ उनके बड़े भाई श्री गणोश दामोदर सावरकर भी बंदा बैरागी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे। उन्होंने भाई परमानंद द्वारा 'वीर वैरागी' नाम से बंदा बैरागी के जीवन पर लिखी हुई पुस्तक का मराठी में अनुवाद किया। भाई परमानंद की इसी पुस्तक की कहानी पर 1930 में वीनस फिल्म्स ने 'वीर वैरागी' नाम से एक चलचित्र का निर्माण किया।
[निदेशक, कंपनी लॉ बोर्ड]
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