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महान व्यक्तित्व के धरती पर आने का संयोग सहस्त्र वर्षों से व्याप्त समाज के अंधकार को समाप्त करने के लिए ही होता
महान व्यक्तित्व के धरती पर आने का संयोग सहस्त्र वर्षों से व्याप्त समाज के अंधकार को समाप्त करने के लिए ही होता है. जब-जब अज्ञान रूपी अंधकार बढ़ता है, किसी ना किसी महापुरुष का संबल मिल ही जाता है. सदियों से महामानव धरती पर अवतरित होकर लोगों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं. तिथियां भी उनके अनुग्रह से अछूती नहीं रह पाती. हर वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा को जब सारी दुनिया उत्साहित होकर गंगा स्नान की महत्ता से अपने संचित पुण्यों में और वद्धि हेतु अग्रसर होती है, सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र दर्शन के लिए लालायित रहती है और पवित्र लहरों में स्नान कर पापों से मुक्ति चाहती है.
वह दिन किसी पर्व से कम नहीं होता और वह दिन किसी पुण्यात्मा के जन्म से जुड़ा हो तो और भी आलौकिक हो जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के इस त्योहार का संबंध गुरुनानक जैसे महान संत के जन्म के साथ जुड़ा है. अमावस्या की रात्रि के घोर अंधकार के पश्चात् जिन प्रातः स्मरणीय पवित्र आत्मा संत ने हम पथ भ्रष्टों को ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित किया, मार्ग दिखाया और अपनी अमृत संजीवनी तुल्य वाणी से जन-जन की चेतना को लौटाया, उन्हें दर्पण के सामने खड़ा करके उनके वास्तविक स्वरुप को दिखाया, वह तपः पूत कोई और नहीं नानक थे.
नानक व्यक्ति नहीं संस्था थे, युग प्रवर्तक थे, युग दृष्टा थे, वे भारत के अमृत संदेश के प्रथम दूत थे. उनकी वाणी अमृतवर्षिणी थी, उनका दर्शन अमृतोपम था, उनके वचनों में साक्षात् वाग्देवता का निवास था. अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत दे सब बंदे, सब मनुष्य उस ईश्वर की ही संतान हैं, सब में उसी परम पिता का नूर है, परमतत्व जिसका वाचक ओम है, केवल एक है, वह सत्य है, सदा रहने वाला है, सृष्टि का रचयिता है, सर्वत्र है, सबमें व्याप्त है, वह निर्भय है, उसकी किसी से शत्रुता नहीं, उसका अस्तित्व काल के प्रभाव से मुक्त है, वह जन्म नहीं लेता स्वतः प्रकाशित है, उसे गुरु की कृपा से प्राप्त किया जा सकता है.
ऐसे गुरु नानक का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को सम्वत् 1526 को कालूचन्द पटवारी के घर हुआ था. इनकी माता का नाम तृप्ता था. कहते हैं गुरुनानक रामचन्द्र जी के पुत्र लव के वंशज थे, इनकी जन्मपत्री बनाते हुए पंडित ने इनके पिता से कहा था, तुम्हारा पुत्र संसार में धर्म का नाद गुंजाएगा. धर्म-संप्रदाय से ऊपर उठकर सभी उसकी पूजा करेंगे. वह भगवान का सच्चा भक्त होगा. हुआ भी यही, बाल्यवस्था में खेलते समय भी ये आंखें मूंदकर प्रभु के ध्यान में लग जाते थे. जब यह शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, इनको लिखने के लिए दिया गया, किंतु इन्होंने कुछ नहीं लिखा.
जब पंडित ने इनसे पूछा तो नानक ने कहा कि कलम लेकर परमेश्वर का नाम लिखो, जिसका कोई अन्त नहीं पा सकता, उसको भूलकर मनुष्य मोहजाल में फंसकर अपना नाश करता है, प्रभु का नित्य स्मरण करो, क्योंकि अंत में सब नाश हो जाना है, जब यह फारसी पढ़ने मौलवी के पास गए तो वहां भी उन्होंने यही कहा, मुझे वही पढ़ाइए जिससे भगवान का भजन बने, मृत्यु से तो छुटकारा हो ही नहीं सकता, जब मौत आएगी, उस समय कोई भी मित्र या संबंधी सहायता नहीं कर सकेगा, उस समय भगवान का भजन ही सहायता करेगा.
गुरुनानक ने हिंदू-मुसलमान दोनों से कहा कि वे एक ही ईश्वर की संतान हैं. रब ने सबको समान रूप से बनाया है. ना कोई बड़ा है ना कोई छोटा. अच्छे कर्म करो, जिससे परमात्मा के दरबार में लज्जित ना होना पड़े. गुरुनानक प्रभु के सच्चे दिवाने थे. एक बार अनाज तोलते समय एक दो तीन चार करते-करते जब वह तेरह पर पहुंचे तो अपनी सुध-बुध ही खो बैठे, तेरह-तेरह तेरा ही करते रह गए. वे कहते थे कि भगवान सब जगह व्याप्त है कोई स्थान खाली नहीं है, हर फूल फल और पत्ते की बनावट को देखो, उस कारीगर ने कितनी सुन्दरता से रंग भरे हैं, अनार का मोतियों जड़ा सौंदर्य, केले की मिठास, कठोर नारियल की कोमलता.
उस रचनाकार के कहां तक गुण गाएं, वह बिना आंखों वाला, पैरों से रहित अदृश्य होते हुए भी संसार के कार्यों को बखूबी निभाता है, उसके न्याय में रत्ती भर भी चूक नहीं होती. उन्होंने कहा रब को सच्चे मन से याद करो, संयम से जीवन बिताओ, परिश्रम करके सच्ची कमाई करो, झूठ मत बोलो, ईर्ष्या द्वेष, निंदा का परित्याग करो, साधु-संतों की सेवा करो. जब-जब समाज में विषमताएं बढ़ती हैं नानक जैसे दिव्य पुरुषों की वाणी सुप्त आत्माओं को जगाती है. संतों की आवाज लोक सीमा से परे होती है, ईश्वर भक्ति, परहित भावना व परोपकार के लिए सद् व्यवहार का पालन अति आवश्यक है.
नानक ने कहा सबके अंतस में उसी की ज्योति है, कोई व्यक्ति भले ही किसी धर्म का बिल्ला अपने साथ चिपका ले, किंतु व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार ही परमात्मा के समीप और दूर होता है, शरीर कर्मफल से मिलता है और मुक्ति प्रभु के प्रसाद से. वर्तमान समाज की विभीषिका से डगमगाते कदमों को सही रास्तों पर चलाने के लिए हमें आज गुरुनानक जैसे संतों की ही चरण रज चाहिए. उन्हीं संतों के दिव्य उपदेशों की जरुरत है. आज भी मंदिर-मस्जिद के वही प्रश्न हैं, आज भी व्यक्ति अज्ञानी हैं, सही राह दिखाने के लिए नानक जैसे संतों के अमूल्य उपदेशों की बहुत आवश्यकता है.
गुरुनानक ने समाज में फैले बिखरे मोतियों को एकता के सूत्र में पिरोया. हमारा परमपिता खण्डित होकर शत-शत टुकड़ों में बंट रहा है. ऐसे संतों की वाणी की आज भी आवश्यकता है, सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा के समान स्निग्ध कांतिमान गुरुनानक देव जी का पूर्ण व्यक्तित्व सद्गुणों से प्रकाशमान था. उन्होनें अपने विचार और कर्मो से समाज के विभिन्न जातिगत भेदभाव व तुच्छ मानसिकता को दूर किया. ये महामानव जन्म लेकर अपने अलौकिक यश को धरती के कोने कोने तक फैलाकर कभी ना मिटने वाली पहचान को पाकर लोगों के मन में स्थान बना लेते हैं.
आज भी गंगा की पवित्र लहरें और जनमानस का सैलाब कार्तिक पूर्णिमा और गुरुनानक जैसे सन्तों की महानता से अभिभूत होकर स्वयं को पवित्र बनाते है. ये महान सन्त समय समय पर हमारी सोयी चेतना को जाग्रत कर हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं. समय के अंतराल पर हमें इन संतों की बहुत जरुरत है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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रेखा गर्ग, लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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