सम्पादकीय

राजस्थान के अशोक गहलौत

Subhi
27 July 2022 3:02 AM GMT
राजस्थान के अशोक गहलौत
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भारत का ऐसा अद्भुत राज्य है जिसके कण-कण में शूरवीरता की कहानियां भरी पड़ी हैं। सातवीं से लेकर दसवीं शताब्दी के अन्त तक यह राज्य खास कर इसकी मेवाड़ रियासत पूरे भारत की इस तरह संरक्षक रही कि यहां मुस्लिम आक्रान्ता अपना आतंक नहीं मचा सके।

आदित्य चोपड़ा; भारत का ऐसा अद्भुत राज्य है जिसके कण-कण में शूरवीरता की कहानियां भरी पड़ी हैं। सातवीं से लेकर दसवीं शताब्दी के अन्त तक यह राज्य खास कर इसकी मेवाड़ रियासत पूरे भारत की इस तरह संरक्षक रही कि यहां मुस्लिम आक्रान्ता अपना आतंक नहीं मचा सके। इसके बाद भी यह राज्य भारत की स्वतन्त्रता मिलने तक अपनी विशिष्टता बनाये रखे रहा और स्वराज्य व स्वतन्त्रता की अलख यहां किसी न किसी रूप में जगती रही। स्वतन्त्रता मिलने के बाद यह राज्य इस वजह से अनोखा रहा कि यहां हिन्दू-मुस्लिम एकता को जब कभी भी हानि पहुंचाने की कोशिश की गई तो उसका विरोध आम जनता की तरफ से ही पुरजोर तरीके से हुआ। यही वजह रही कि जब 1971 में इस राज्य में हुए मध्यावधि चुनावों के बाद कांग्रेस विजयी रही तो तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. इंदिरा गांधी ने एक मुस्लिम नेता स्व. बरकतुल्लाह खान को इस राज्य का मुख्यमन्त्री बनाया। श्री खान जुलाई 1971 से अक्तूबर 1973 तक अपने अन्तिम समय तक मुख्यमन्त्री रहे और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजस्थान की राजपूती शान में चार चांद लगाने का काम ही किया। उनके शासन में राजस्थान की राजपूती व हिन्दू परंपराओं व रस्मो-रिवाजों को पूरा सम्मान दिया गया। राजस्थान की जनता का धार्मिक भाईचारे का उदाहरण इससे बढ़ कर कोई दूसरा नहीं हो सकता क्योंकि इस राज्य में मुसलमानों की जनसंख्या केवल 9 प्रतिशत के आसपास ही है। इसके बावजूद स्व. खां को मुख्यमन्त्री बनाये जाने पर कोई सवाल किसी हिन्दू की तरफ से नहीं उठाया गया था। स्व. बरकतुल्लाह खां मुख्यमन्त्री बनने के बाद उदयपुर जिले के उस 'एकलिंग जी महादेव' के मन्दिर में गये थे जिसे 'बप्पा रावल' ने आठवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रान्ताओं को परास्त करने पर बनवाया था। मगर वर्तमान में हम राजस्थान के जो हालात देख रहे हैं वे काफी चुनौतीपूर्ण लगते हैं और अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार के खादिन चिश्तियों ने अपनी करतूतों से बहुत जहरीला बना दिया है। इस माहौल को सामान्य बनाते हुए इसे पुनः भाईचारे के रंग में रंगने का काम जिस तरह मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलौत ने किया है उसका संज्ञान प्रत्येक भारतवासी ने लिया है और उनकी योग्यता व शासन कौशल की प्रशंसा भी की है। सभी जानते हैं कि उदयपुर जैसे सैलानियों के खूबसूरत ऐतिहासिक शहर की फिजा पिछले दिनों दो मुस्लिम कट्टरवादी युवकों ने किस तरह बिगाड़ने की कोशिश की और एक भोले-भाले दर्जी का काम करने वाले कन्हैयालाल का गला किस तरह रेता और बाद में वीडियो बना कर हत्या किये जाने की घटना का इंटरनेट पर प्रसारण इन दो तास्सुबी युवकों द्वारा किया गया। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के कथित समर्थन में केवल ट्वीट या डिजिटल मीडिया पर कुछ शब्द लिखे जाने की सजा क्या किसी सभ्य समाज में गला रेतना भी हो सकती है, इससे राजस्थान का ही नहीं बल्कि पूरे भारत का हिन्दू समाज पूरे गुस्से में आ गया था। इस स्थिति को जिस तरह मुख्यमन्त्री अशोक गहलौत ने संभाला और अपने राज्य को साम्प्रदायिक दंगों से दूर ही नहीं रखा बल्कि अपने त्वरित कार्यों से यह समदेश देने का प्रयास भी किया कि उनके राज्य में कानून के साथ गुस्ताखी करने वाले को कड़े से कड़ा दंड दिया जायेगा। श्री गहलौत स्वयं एक पिछड़ी जाति 'माली' समुदाय से आते हैं और जानते हैं कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए किस तरह संघर्ष करना पड़ता है। अतः उनकी सरकार ने पूरा संयम दिखाते हुए अजमेर शरीफ के जहर उगलने वाले चिश्तियों को भी सही राह पर लाने के लिए समुचित कानूनी कदम उठाये। मगर चिश्तियों ने राजस्थान का बहुत बड़ा नुकसान कर डाला है और संदेश दे दिया है कि बेशक दरगाह पर इबादत कराने वाले चिश्ती इंसानियत और इंसाफ की बातें करते हों मगर भीतर से वे 'बरेलवी इस्लामी स्कूल' के कट्टर मुस्लिम ही हैं। उनके अपने मजहब के आगे इंसानियत के कोई मायने नहीं होते हैं। इससे उस राजस्थान के महाराणाओं खास कर महाराणा प्रताप का अपमान हुआ है जिनका सेनापति एक मुसलमान पठान सरदार 'हाकिम खां सूर' था। मेवाड़ के इस रणबांकुरे ने अकबर की सेना का मुकाबला करते हुए वीरगति प्राप्त की थी।संपादकीय :मेरा असली जन्मदिन है बुज़ुगों के चेहरों पर मुस्कानअमृत महोत्सव :अर्थव्यवस्था की छलांग-9अमृत महोत्सव : रक्षा आत्मनिर्भरता-8श्रावण मास में 'हर-हर महादेव'अमृत महोत्सव : अब जाकर कम हुआ दर्द-7उत्तर प्रदेश का 'बाबा माडल' राजस्थान का समाज अर्ध सामन्ती हो सकता है और विचारों से राष्ट्रवादी भी हो सकता है मगर राजनैतिक तौर पर यह बहुत निरपेक्ष भी है। इस राज्य में 1974 तक प्रमुख विपक्षी दल स्वतन्त्र पार्टी होती थी जो स्व. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की पार्टी थी और इसमें पूर्व राजे-रजवाड़ों व नवाबों का अधिपत्य था। परन्तु दिसम्बर 1974 में इस पार्टी का स्व. चौधरी चरण सिंह की लोकदल पार्टी में विलय हो गया था और इसके छह महीने बाद देश में इमरजेंसी लग गई थी। इसके बाद ही राज्य में जनसंघ या भाजपा प्रमुख विपक्षी पार्टी जिसके सरपरस्त स्व. भैरोसिंह शेखावत थे। मगर यह भी हकीकत है कि मेवाड़ के महाराणा बहुत पहले से ही जनसंघ के समर्थक थे और स्वतन्त्र पार्टी के रहते भी वह जनसंघ के पक्ष में चुनाव प्रचार किया करते थे। उस समय मेवाड़ में चुनावों के समय यह नारा गूंजा करता था 'महाराणा रो कैणा है वोट दिवा नू देणा है'। तब जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक या दीया हुआ करता था। लेकिन अब राजनैतिक परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं और राजस्थान की चुनौतियां भी बदल चुकी हैं। यह राज्य अपनी शान्ति प्रियता की वजह से देश का आकर्षण बना हुआ है और ऐतिहासिक पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र है। मुख्यमन्त्री अशोक गहलौत की सामाजिक कल्याण की योजनाओं से इस राज्य के औसत आदमी की आय में खासा इजाफा भी हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में भी इसने उल्लेखनीय तरक्की की है । अतः आम जनता भी जानती है कि तरक्की के लिए राज्य का सामाजिक माहौल शान्तिपूर्ण बने रहना कितना जरूरी है। शायद यही बात समझाने में श्री गहलौत सफल रहे हैं। जिसकी वजह से राजस्थान की रंग-बिरंगी धरती पुनः अपनी चहचहाट बिखरेने लगी है।

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